मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट
बांग्लादेश में हाल ही में हुए घटनाक्रम ने दक्षिण एशिया की राजनीति में हलचल मचा दी है, जिसमें बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा और देश छोड़कर भाग जाना प्रमुख घटनाएं हैं।
शेख हसीना, जो भारत की सरकार के सबसे करीबी नेताओं में मानी जाती थीं, अब सत्ता से बाहर हो चुकी हैं, और इस स्थिति ने भारत की रणनीतिक योजनाओं पर गहरा असर डाला है।
शेख हसीना का भारत के प्रति झुकाव और उनके दमनकारी तरीकों ने उन्हें बांग्लादेश की राजनीति में लंबे समय तक टिकाए रखा। उन्होंने विपक्षी दलों, विशेषकर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की, जिससे ये दल राजनीतिक रूप से कमजोर हो गए।
बीएनपी की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया को भी उनके कार्यकाल में जेल भेज दिया गया, और विपक्ष को लगभग अप्रासंगिक बना दिया गया। हसीना की सरकार में किसी भी प्रकार की आलोचना को सहन नहीं किया जाता था, और उन्होंने अपने शासन को बनाए रखने के लिए कई कठोर कदम उठाए।
हालांकि, हाल के हफ्तों में बांग्लादेश में छात्रों के आंदोलन और राजनीतिक अस्थिरता के कारण हालात बिगड़ गए। भारत सरकार, जो इस घटनाक्रम पर नजर रख रही थी, शायद इस गंभीर स्थिति का सही आकलन नहीं कर पाई।
ऐसा लगता है कि भारत ने हसीना पर पूरी तरह से भरोसा किया कि वे अपने तरीकों से इस संकट को संभाल लेंगी। लेकिन छात्रों के आंदोलन को दबाने में असफल रहने के बाद, हसीना को इस्तीफा देना पड़ा और देश छोड़ना पड़ा।
भारत के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है, क्योंकि अब बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है और वहां के विपक्षी दल, जो पहले भारत विरोधी रहे हैं, फिर से उभर रहे हैं। बीएनपी और जमात जैसे दल, जिनका पाकिस्तान और चीन के साथ करीबी रिश्ता रहा है, अब बांग्लादेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
भारत को यह डर सता रहा है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन से देश में भारत विरोधी गतिविधियों का बढ़ना तय है, जैसा कि बीएनपी के शासनकाल में हुआ करता था। इसके अलावा, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी बांग्लादेश में प्रभाव बढ़ने की संभावना है।
बांग्लादेश में शेख हसीना के हटने से वहां की सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। भारत के साथ लगती सीमा पर घुसपैठ की संभावना के चलते कर्फ्यू लगा दिया गया है। अगर बांग्लादेश में नागरिक युद्ध जैसी स्थिति पैदा होती है, तो यह भारत के लिए गंभीर समस्या बन सकती है।
शेख हसीना का इस्तीफा और उनके भारत आने के बाद, उनकी राजनीतिक वापसी की संभावना कम हो गई है। उनके बेटे ने भी घोषणा की है कि हसीना अब राजनीति में वापस नहीं आएंगी। इससे भारत के लिए समस्या यह है कि अब बांग्लादेश की सत्ता में उसका कोई प्रमुख समर्थक नहीं रहेगा, और चीन का प्रभाव बढ़ सकता है।
चीन ने हमेशा बांग्लादेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उसके बीएनपी और अवामी लीग दोनों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं।
बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति में भारतीय नीति निर्धारकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे अब तक शेख हसीना पर निर्भर थे और उनके बाद की स्थिति के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई थी।
इस समय भारत के लिए सबसे बड़ा संकट यह है कि बांग्लादेश में अस्थिरता बनी हुई है, और वहां की अंतरिम सरकार, जो भारत के प्रति विद्वेषपूर्ण मानी जा रही है, के साथ काम करना आसान नहीं होगा।
इस अस्थिरता के बीच, भारत ने बांग्लादेश की घटनाओं पर चुप्पी साध रखी है और देख रहा है कि चीजें किस दिशा में जाती हैं। दक्षिण एशिया में भारत और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच, बांग्लादेश की स्थिति ने चीन को एक कूटनीतिक बढ़त दे दी है, और भारत को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."