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कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और राष्ट्रीय समारोह में पहली पंक्ति में जगह नहीं… आइए जानते हैं क्यों बैठे पीछे राहुल… 

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

देश ने 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 98 मिनट लंबा भाषण दिया। इस अवसर पर लाल किले पर हुए कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को पांचवीं पंक्ति में बैठाने पर विवाद उत्पन्न हो गया। 

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने राहुल गांधी को उचित सम्मान नहीं दिया। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए कहा कि 4 जून के बाद की नई वास्तविकता को समझने का समय आ गया है, और स्वतंत्रता दिवस समारोह में राहुल गांधी को आखिरी पंक्तियों में बैठाना उनके अहंकार को दर्शाता है।

इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में भी बहस छिड़ गई है, जहां कुछ लोग मानते हैं कि राहुल गांधी के साथ अन्याय हुआ है और उन्हें जानबूझकर पीछे बैठाया गया। 

हालांकि, गृह मंत्रालय ने इस आरोप को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि ओलंपिक विजेताओं को प्राथमिकता देने के कारण राहुल गांधी को चौथी पंक्ति में बैठाया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में कई मुद्दों पर बात की। उन्होंने विकसित भारत का रोडमैप पेश किया, परिवारवाद की चर्चा की, और विपक्ष पर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग प्रगति नहीं देख सकते और ऐसे लोग देश के लिए हानिकारक होते हैं।

लाल किले में होने वाले स्वतंत्रता दिवस समारोह की जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की होती है। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि ओलंपिक मेडल विजेताओं को आगे की पंक्तियों में बैठाने के कारण राहुल गांधी को चौथी पंक्ति में बैठाया गया। 

यह पहली बार है जब 10 साल बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हुए थे, क्योंकि 2014 और 2019 में कांग्रेस को पर्याप्त सीटें नहीं मिली थीं कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जा सके। 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतीं और राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष का पद मिला।

नेता प्रतिपक्ष का पद पहली बार 1956 में आया था, जब लोकसभा के स्पीकर जीवी मावलंकर ने निर्देश दिया था कि जिस पार्टी के पास कम से कम 10% सीटें होंगी, उसके किसी सांसद को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जाएगा। 

1969 में लोकसभा में पहली बार कांग्रेस (ओ) के नेता राम सुभाग सिंह को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिला था। 1977 में ‘सैलरी एंड अलाउंसेस ऑफ लीडर ऑफ अपोजिशन एक्ट’ लाया गया, जिसमें नेता प्रतिपक्ष के पद को संवैधानिक मान्यता दी गई। हालांकि, 10% वाले नियम का जिक्र इस कानून में नहीं किया गया है। 

कुल मिलाकर, यह कानून स्पष्ट करता है कि लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा चेयरमैन को सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देना अनिवार्य है, चाहे उस पार्टी के पास 10% से भी कम सीटें हों।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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