जिंदगी एक सफरस्मृति

आमफहमी का हुनर और द‍िल में मां का कोना, इतना आसान नहीं है “मुनव्वर” होना…..

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

उर्दू साहित्य के मशहूर सितारे मुनव्वर राना इस दुनिया में नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद रविवार को उनका निधन हो गया। राना के इंतकाल पर देश भर में शोक की लहर है। लोग उन्हें उनके ही शेरों को कोट करते हुए याद कर रहे हैं। मां पर लिखी अपनी शानदार शायरी के अलावा मुनव्वर राना ने जिंदगी और मृत्यु को लेकर ढेर सारे शेर लिखे थे। अब उनके फानी दुनिया से कूच करने के बाद उन शेरों से उनके चाहने वाले उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मुनव्वर राना के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने उनका एक शेर कोट करते हुए लिखा है-

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तो अब इस गांव से रिश्ता हमारा खत्म होता है

फिर आंखें खोल ली जाएं कि सपना खत्म होता है।

सोशल मीडिया पर एक यूजर ने मुनव्वर राना को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है-

“तुम्हें भी नींद सी आने लगी है, थक गए हम भी

चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं।”

उनका एक ऐसा अनोखा स्टाइल था जहां उन्होंने अपनी शायरियों में फारसी और अरबी के शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। माना जाता है कि युवाओं के बीच में अपनी पैठ आसानी से बनाने के लिए मुनव्वर राणा ने ऐसा किया था। अब जब उनके पूरे जीवन को देखते हैं, कहना गलत नहीं होगा कि आज युवाओं के बीच में ही राणा की शायरियां सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। मां को लेकर तो उनकी अनेक शायरियां लोगों की जुबान पर अमर हो चुकी हैं।

उनका एक ऐसा अनोखा स्टाइल था जहां उन्होंने अपनी शायरियों में फारसी और अरबी के शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। माना जाता है कि युवाओं के बीच में अपनी पैठ आसानी से बनाने के लिए मुनव्वर राणा ने ऐसा किया था। अब जब उनके पूरे जीवन को देखते हैं, कहना गलत नहीं होगा कि आज युवाओं के बीच में ही राणा की शायरियां सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। मां को लेकर तो उनकी अनेक शायरियां लोगों की जुबान पर अमर हो चुकी हैं।

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकान आई, मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में मां आई… मुनव्वर राणा का ये शेयर सही मायनों में अमर हो चुका है। नजाने कितनी कितनी, कितनी जगह इसी शेर के सहारे लोगों ने अपनी भावनाओं व्यक्त करने का काम किया है। ये मुनव्वर के कलम की ताकत थी कि वे दिल से जो भी लिख जाते थे, उसका समाज पर गहरा असर रहता था। उनकी शेरों-शायरी के लिए ऐसी दीवानगी देखने को मिलती थी कि कई मुलकों में उनके सफल कार्यक्रम हुए। वहां भी हिंदी और अवधी का एक ऐसा तालमेल वे बैठाते थे कि शायरों की भीड़ में भी उनकी पहचान हमेशा अलग रहती थी।

इसी वजह से अंग्रेजी से लेकर गुरुमुखी और बांग्ला भाषा में भी मुनव्वर राणा की कविताओं, शायरियों का प्रकाशन हुआ था। उनके विचारों से कोई कभी सहमत होता या ना होता, लेकिन उनकी शायरियों के प्रति सभी हमेशा वफादार रहे। अब विचारों की बात कर ही दी है, तो ये समझना भी जरूरी है कि मुनव्वर राणा अपनी तीखी जुबान के लिए प्रचलित थे। उनका विवादों के साथ एक ऐसा नाता था जो कभी खत्म नहीं हुआ। विवादित बयानों की उनकी एक अपनी सूची रही जिसने उन्हें कई बार मुश्किलों में डाला।

फ्रांस में जब धर्म को आधार बनाकर एक स्टूडेंट ने ही अपनी टीचर की गला रेतकर हत्या कर दी थी, पूरी दुनिया में उबाल था। हर कोई परेशान था, लेकिन मुनव्वर राणा ने उस आरोपी स्टूडेंट को ही बचाने का काम किया। उन्होंने कह दिया था कि अगर मजहब मां समान है, तो अगर कोई उस पर कार्टून बनाता है, उसका मजाक बनाता है, गाली देता है, उस स्थिति में कोई भी मजबूर हो सकता है। उस बयान की वजह से उनके खिलाफ FIR दर्ज हुई थी।

इसी तरह किसान आंदोलन के दौरान भी उनका एक ट्वीट चर्चा का विषय बन गया था। उन्होंने शायराना अंदाज में कह दिया था कि संसद को गिरा खेत बना देना चाहिए और सारे गोदामों में आग लगा देनी चाहिए। उनकी तरफ से उस ट्वीट को डिलीट जरूर किया गया था, लेकिन तब तक विवाद छिड़ चुका था। जब देश में सीएए कानून को लेकर हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे, राणा ने यूपी सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि उन्हें यहां रहने में डर लगने लगा है। बीजेपी देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है।

तो कुछ ऐसे ही थे मुनव्वर राणा जिन्होंने एक तरफ अपनी शायरियों से सही मायनों में मां का मतलब बताया, तो वहीं तल्ख टिप्पणियों से सियासी गलियारों में भी समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

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"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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