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विशेष संपादकीय

शिक्षक की ऐसी करतूत….संस्कार की बिगड़ती शक्ल का कौन है जिम्मेदार?

शिक्षा में जातिगत भेदभाव और बच्चों की पिटाई : एक समस्या और समाधान

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मोहन द्विवेदी 

आज हम बेहद आहत हैं। नींद और मानसिक चैन गायब हो गए हैं। हमने ऐसे स्कूल और शिक्षक की कल्पना भी नहीं की थी। ऐसा स्कूल, जहां सहपाठी की पिटाई महज इस आधार पर कराई जाए कि वह मुसलमान है! स्कूलों और कक्षाओं में कब से हिंदू-मुसलमान होने लगा? यह स्थिति तब बेहद नाजुक और संवेदनशील हो जाती है, जब एक महिला शिक्षक अपने छात्रों को आदेश दे कि मुस्लिम सहपाठी को थप्पड़ मारो! शिक्षिका को यह अधिकार किस संविधान और कानून में दिया गया है? कानून तो स्पष्ट है कि अब कोई भी अध्यापक, किसी भी छात्र को, स्कूल परिसर या क्लास-रूम में, शारीरिक रूप से पीट कर आहत, चोटिल नहीं कर सकता। उसे मानसिक आघात नहीं पहुंचा सकता, जो जिंदगी भर उसे मथता रहे। फिर भी हमारे ग्रामीण, पिछड़े इलाकों के स्कूलों में छात्रों को पिटाई का दंड दिया जाता है। चलो, इसे गुरु-शिष्य की प्राचीन परंपरा का एक उदाहरण माना जा सकता है, लेकिन शिक्षक ही ‘सांप्रदायिक जहर’ फैलाने लगे, तो उसका दंड क्या होना चाहिए? पश्चिमी उप्र के मुजफ्फरनगर जिले के एक गांव में ऐसा ही हुआ है। मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के लिए कुख्यात रहा है। स्कूली छात्र यूकेजी का विद्यार्थी है। उसे ‘5’ का पहाड़ा आता था अथवा नहीं, लेकिन महिला शिक्षिका ने कक्षा के छात्रों को आदेश दिया कि वे उस छात्र के गाल पर थप्पड़ मारें। सहपाठियों को वैसा ही करना पड़ा, लेकिन छात्र का चेहरा लाल हो गया, तो शिक्षिका ने कमर पर मारने के निर्देश दिए। यदि किसी छात्र को पहाड़े नहीं आते या याद नहीं हैं अथवा उसने गृह-कार्य नहीं किया है, तो किस कानून की धाराओं में प्रावधान हैं कि उस बच्चे को थप्पड़ मारे जाएं? सिर्फ यही नहीं, उस शिक्षिका का यह कथन भी सार्वजनिक हुआ है- मैंने तो डिक्लेयर कर दिया, जितने भी मुहम्मडन बच्चे हैं, इनके वहां चले जाओ।’ शिक्षिका की मानसिकता साफ है कि मुस्लिम छात्र किसी दूसरे इलाके के स्कूल में चले जाएं अथवा मदरसों में चले जाएं।

क्यों चले जाएं….भारत में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और नि:शुल्क है। यदि शिक्षक स्कूल में पढ़ा रहे हैं और किसी भी छात्र का प्रवेश किया गया है, तो शिक्षक जाति, धर्म, मत, संप्रदाय और नस्ल के आधार पर कोई फैसला नहीं ले सकता। स्कूल में हिंदू-मुसलमान विभेद करने वाली शिक्षिका को ऐसे अधिकार किसने दिए हैं? दरअसल हम शिक्षिका का दोहरा अपराध मानते हैं। एक तो उसने थप्पड़ कांड कराया है। दूसरे, उसने एक छात्र को चोटिल, आहत किया है। जीवन भर के मानसिक घाव दिए हैं। वह शिक्षिका दंड की भागी है। लगभग ऐसी ही घटना जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के एक स्कूल में हुई है। वहां प्रधानाचार्य और अध्यापक ने 10वीं कक्षा के छात्र को इसलिए पीटा, क्योंकि उसने ब्लैक बोर्ड पर ‘जय श्रीराम’ लिख दिया था। वहां छात्र हिंदू था और शिक्षक मुसलमान थे। यह कैसी शिक्षा-संस्कृति पनपती जा रही है? ऐसी घटनाएं राजस्थान, झारखंड, मध्यप्रदेश, कश्मीर, बंगाल आदि राज्यों में होती रही हैं। कश्मीर में एक प्राध्यापक ने अनुच्छेद 370 रद्द करने का विरोध किया, तो उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। किसी ने प्रधानमंत्री मोदी का पुतला जलाया, तो उस पर रासुका थोप दिया गया और जेल में ठूंस दिया गया।

बिना भेदभाव और हिंसा के, हमारे समाज में अधिक समरस और सामंजस्यपूर्ण माहौल को बढ़ावा देना हम सभी की जिम्मेदारी है। इसके लिए हमें निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

1.शिक्षा में सुधार

सरकारों को शिक्षा प्रणाली में सुधार करने के लिए अधिक नकरात्मक मामलों को ध्यान में रखना चाहिए। शिक्षकों को धर्म, जाति, और साम्प्रदायिक भेदभाव से दूर रहकर छात्रों को समाज में सामरस्य और सामंजस्य के मूल्यों की महत्वपूर्ण बातें सिखाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।

2.सजा कार्रवाई 

हिंसा और भेदभाव के मामलों में त्वरित कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। दोषियों को सजा होनी चाहिए ताकि यह दूसरों को डराने का प्रतिष्ठान न बने।

3.सशक्तिकरण और जागरूकता

समाज में सामाजिक सामंजस्य और समरसता को बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक करना और सशक्त करना हम सभी की जिम्मेदारी है।

4.दायित्वपूर्ण मान्यता 

हमें एक समरस समाज के बिना किसी भी तरह के भेदभाव और हिंसा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए, और हमें दायित्वपूर्ण नागरिक के रूप में अपना काम करना चाहिए।

5.शिक्षा में सामाजिक समरसता

शिक्षा प्रणाली में सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करना चाहिए जो छात्रों को समाज में अधिक जागरूक और सामंजस्यपूर्ण बना सकते हैं।

इन कदमों के माध्यम से हम समरस और सामाजिक सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं जिसमें सभी लोग एक साथ आपसी समरसता में रह सकते हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि शिक्षा संविदानिकता, सामाजिक सामंजस्य, और समझ को प्रोत्साहित करे, न कि भेदभाव और हिंसा को। समाज के हर व्यक्ति को उसकी साक्षरता और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में समर्थन प्राप्त करना चाहिए। इसके अलावा, शिक्षा प्रणाली को इस तरह तैयार करना चाहिए कि छात्रों को सामाजिक सहयोग, समरसता, और तोलरेंस की महत्वपूर्ण बातें सिखाई जाएं, ताकि वे आने वाले समय में एक बेहतर और सामरिक समाज का हिस्सा बन सकें।

यह सच है कि स्कूलों में बच्चों की पिटाई और जातिगत भेदभाव के मामले कुछ स्थानों पर उचित नहीं हैं और इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है। बच्चों की सुरक्षा और उनके मानसिक स्वास्थ्य का सही धारा में संरक्षण सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी होती है।

यहां कुछ कदम और मामूली सुझाव दिए गए हैं:

1.कानूनी कार्रवाई: ऐसे मामलों में, कानूनी कार्रवाई की आवश्यकता होती है। शिक्षकों या अन्य कर्मचारियों को बच्चों को पिटने या उन पर भेदभाव करने पर कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

2.शिक्षा संस्थानों में सुरक्षा: सरकार और स्थानीय प्राधिकृतियों को शिक्षा संस्थानों में बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त नियमों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

3.शिक्षा कर्मियों का प्रशिक्षण: शिक्षा कर्मियों को जातिगत और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ प्रशिक्षण दिलाना चाहिए, ताकि वे समाज में सामरसता और सामंजस्य को प्रोत्साहित कर सकें।

4.छात्रों के बीच सामाजिक सशक्तिकरण: छात्रों को सामाजिक सामंजस्य और समरसता के मूल्यों की महत्वपूर्ण बातें सिखाने के लिए उत्साहित करना चाहिए।

5.मानवाधिकार शिक्षा शिक्षा प्रणाली में मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के मुद्दे शामिल करना चाहिए, ताकि बच्चे इन मुद्दों के महत्व को समझ सकें।

6.जागरूकता कार्यक्रम सामाजिक सामंजस्य और भेदभाव के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रमों को स्थानीय समुदायों में प्रोत्साहित करना चाहिए।

समाज में सामरसता, समझ, और सहयोग को प्रोत्साहित करना हम सभी की जिम्मेदारी होती है, और शिक्षा संस्थानों में इसके लिए सही वातावरण बनाना आवश्यक है।

यह क्या हो रहा है हमारे देश में? एनसीआरईटी के लंबे समय तक निदेशक रहे प्रो. जेएस राजपूत की टिप्पणी बेहद मर्माहत लगती है कि उन्होंने 1962 में पढ़ाना शुरू किया था, लेकिन आज वह अध्यापक होने पर ही शर्मिन्दा महसूस कर रहे हैं। बेशक आरोपित शिक्षिका के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है, लेकिन धाराएं कमजोर और जमानती हैं। यही नहीं, गांव और समाज के प्रधाननुमा चेहरे, पिटने वाले बच्चे के पिता और पुलिस पर, दबाव बना रहे हैं कि समझौता कर लिया जाए। मुद्दे को सांप्रदायिक रंग न दिया जाए, लेकिन थप्पड़ कांड वाली शिक्षिका की जिम्मेदारी कौन तय करेगा? घरों में चलने वाले ऐसे स्कूल छात्रों को कैसी तालीम दे रहे हैं? सांप्रदायिक जहर पढ़ाया जाएगा, तो देश के हालात कैसे हो सकते हैं? वैसे भी हमारी राजनीति, समाज और सोच सांप्रदायिक तौर पर विभाजित है। कमोबेश ऐसे स्कूलों पर ताला लटका दिया जाना चाहिए।

स्कूलों में इस प्रकार के भिन्नाभिन्न धर्म और सम्प्रदायों के छात्रों के बीच भेदभाव और हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। ऐसे मामलों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, और कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।

इसके अलावा, शिक्षा प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है ताकि सभी छात्र समान अवसर प्राप्त कर सकें और हिंसा और भेदभाव के खिलाफ शिक्षा संविदानिक तौर पर सजा सके। शिक्षा और समझ में सामाजिक सामंजस्य बनाए रखना हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण है।

Author:

हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं

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