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विशेष संपादकीय

“समाचार दर्पण 24” पढते हैं आप…सिर्फ पढ़ते हैं या उससे कुछ लाभ भी लेते हैं?

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अनिल अनूप

एक बिल्कुल सच्ची घटना है। लगभग 47-48 साल पहले इंग्लैंड की राजधानी लंदन में एक अजीब घटना घटी। लोगों ने देखा कि उनके पड़ोस के एक फ्लैट में से धुआं निकल रहा है। धुआं इतना ज्यादा था कि स्पष्ट नजर आ रहा था कि अंदर आग लगी हुई है। समस्या यह थी कि फ्लैट को ताला लगा हुआ था और अड़ोसी-पड़ोसी उस फ्लैट के मालिक के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। पड़ोसियों ने अग्निशमन विभाग को सूचना दी। दमकल के साथ अधिकारी लोग मौके पर पहुंचे और उन्होंने फ्लैट का ताला तोड़ कर आग बुझाने का काम शुरू कर दिया। आग बुझ जाने के बाद जांच में यह पाया गया कि तीन कमरों के उस शानदार फ्लैट के हर कमरे में रैक रखे हुए थे और हर रैक में सिर्फ किताबें ही थीं। पूरे फ्लैट में कोई बिस्तर नहीं था। एक कोने में एक मेज और कुर्सी रखे हुए थे, यानी, उस फ्लैट में कोई रहता नहीं था, बल्कि उसका प्रयोग सिर्फ अध्ययन के लिए ही होता था। फ्लैट का मालिक जब कभी वहां आता भी था तो अपने फ्लैट में बंद होकर किताबें पढऩे में समय लगाता था, यही कारण था कि अड़ोसी-पड़ोसी उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। पर जब किताबों को देखा गया तो एक बहुत ही आश्चर्यजनक सच सामने आया। उस फ्लैट में हजारों की संख्या में किताबें थीं, और हर किताब पर किसी न किसी पुस्तकालय की मोहर लगी हुई थी, यानी सभी किताबें अलग-अलग पुस्तकालयों से चोरी की गई थीं।

कोई व्यक्ति किताबों का इस हद तक रसिया था कि किताबें रखने के लिए उसने एक पूरा फ्लैट खरीद रखा था, अध्ययन के अलावा उस फ्लैट का और कोई उपयोग भी नहीं था, लेकिन पढऩे के लिए जो किताबें वहां उपलब्ध थीं, वो सब की सब चोरी की थीं। किताबों की खरीद पर कोई पैसा नहीं खर्चा गया था! 

मेरे एक मित्र हैं। वो भी किताबों के रसिया हैं। ढेर-सी किताबें खरीदते हैं। किताबें पढ़ते रहते हैं। औसतन हर हफ्ते एक किताब पढ़ लेते हैं। घर में शानदार लायब्रेरी बना रखी है। बहुत विद्वान हैं और बातचीत के समय किताबों से लिया गया ज्ञान स्पष्ट नजर आता है। 

मेरे एक अन्य मित्र भी हैं, वो साल भर में दो या तीन किताबों से ज्यादा नहीं खरीदते। एक बार जब हम तीनों दोस्त इकट्ठे बैठे थे तो किताबें पढऩे की आदत पर बात चल पड़ी। उस बातचीत ने मेरे ज्ञान चक्षु खोले। मेरे जो मित्र साल भर में दो या तीन किताबें ही खरीदते हैं, उन्होंने बताया कि वो एक ही किताब को कई-कई बार पढ़ते हैं। मतलब की बातों को अंडरलाइन कर लेते हैं। किताब को एक बार पूरा पढ़ लेते हैं ताकि अगर उसमें कोई नया विचार हो जिसके उपयोग से जीवन में कोई लाभ मिल सकता हो तो वो उसे अंडरलाइन कर लेते हैं, और यह ध्यान रखते हैं कि आगे के पृष्ठों पर उसी विचार की व्याख्या में अगर कोई और बात भी हो तो उनके ध्यान से न छूटे ताकि वो उस नए विचार और उसकी उपयोगिता को पूरी तरह से आत्मसात कर लें। फिर वो उस एक विचार को अपने जीवन में कार्यान्वित करते हैं, उसकी उपयोगिता परखते हैं, उसके लाभ-हानि का विश्लेषण करते हैं और अगर उन्हें वह सटीक लगे तो उस नए विचार को जीवन का हिस्सा बना लेते हैं। हर किताब के हर उपयोगी विचार के बारे में उसका यही नजरिया है। परिणाम यह है कि हर नई किताब उनका जीवन कुछ और अच्छा बना देती है, कुछ और आसान बना देती है।

उनका यह विश्लेषण इतना अद्भुत था कि उसी दिन से वह नजरिया मेरे जीवन का हिस्सा बन गया। 

मैं कम पढ़ता हूं, पर जो पढ़ता हूं वह लाभदायक हो तो उसे अपना भी लेता हूं। इस तरह मुझे अपने अध्ययन का पूरा लाभ मिल पाता है। आप अगर मेरा यह लेख पढ़ रहे हैं तो स्पष्ट है कि आप ‘समाचार दर्पण24’ पढ़ते हैं। 

सवाल यही है कि हम सिर्फ पढ़ते हैं या उससे कुछ लाभ भी लेते हैं? ‘समाचार दर्पण 24’ में प्रकाशित लेखों में ज्ञान का खजाना होता है, हम उससे कितना लाभ उठा पाते हैं, यह हमारे नजरिये पर और हमारे कामकाज के तौर-तरीकों पर निर्भर करता है। 

लेख ही नहीं, समाचार भी सूचनाप्रद होते हैं, हम उनसे भी सीख सकते हैं। सरकार की नई नीतियों के बारे में जानकर उनका लाभ उठा सकते हैं। यहां तक कि अगर कोई स्कैम हुआ तो उसके बारे में जानकारी लेकर खुद की सुरक्षा का इंतजाम कर सकते हैं। हम कोई भी अखबार पढ़ें, कोई भी किताब पढ़ें, किसी सेमिनार में जाएं, मित्रों की किसी भी चर्चा में शामिल हों, हर जगह से कोई नया ज्ञान मिल सकता है जो हमारे लिए उपयोगी हो सकता है। उस नए विचार को नोट कर लेना और उस पर अमल शुरू कर देना तो हमारे हाथ में ही है न!

आध्यात्मिकता में सत्संग का बहुत महत्व बताया गया है। कारण यही है कि सत्संग हमें वह वातावरण देता है कि हम अच्छी बातों को जान सकें और उन्हें जीवन में उतार सकें। महत्व फिर इसी बात का है कि हम अच्छी बातों को जीवन में उतार सकें।

इसीलिए कहा गया है कि हमारी असली पूजा तब शुरू होती है जब हम पूजा खत्म करके पूजा-स्थल से बाहर आते हैं और लोगों के साथ व्यवहार में पूजा के उन सूत्रों को व्यावहारिक रूप देते हैं, अमलीजामा पहनाते हैं, वरना पूजा स्थलों में की गई पूजा का कोई अर्थ नहीं है। 

देखना यह होता है कि हम उन लोगों से कैसा व्यवहार करते हैं जिनसे हमें कोई काम न हो। हम उन लोगों से कैसा व्यवहार करते हैं जिनका सामाजिक-आर्थिक स्तर हमारे बराबर नहीं है। हम अपने अधीनस्थ साथियों से कैसा व्यवहार करते हैं? क्या हम अपने लेन-देन में ईमानदार हैं? क्या अगर गलती से कोई हमें ज्यादा पैसे दे दे तो हम वो पैसे चुपचाप रख लेते हैं या लौटा देते हैं? क्या हम दूसरों की गलतियां ढूंढऩे, उनकी निंदा करने, उनका अपमान करने में अपनी शान समझते हैं? क्या हम पीठ पीछे किसी की चुगली करते हैं? 

हमारे जीवन का हर व्यवहार हमारी अपनी मानसिकता का द्योतक है। हम क्या हैं और क्या बनना चाहते हैं, यह इसी बात पर निर्भर करता है कि विभिन्न स्रोतों से मिले ज्ञान का उपयोग हम कैसे करते हैं। यह साल खत्म होने को है, अगला साल आने ही वाला है। हमारा प्रयत्न यही होना चाहिए कि अगला हर साल हमारे जीवन को और बेहतर बनाए। आमीन!

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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