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आध्यात्म

चैती छठ ; आज भगवान भास्कर को अर्पित किए जाएंगे सांध्यकालीन अर्घ्य 

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट 

नहाय खाय के साथ चैती छठ के पर्व की शुरुआत हो गई है और कल खरना तिथि पर पूरी शुद्धता के साथ छठ माता का प्रसाद तैयार किया गया और प्रसाद ग्रहण करके 36 घंटे का व्रत भी शुरू हो गया है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व का पहला दिन नहाय खाय, दूसरा खरना, तीसरा अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसी के साथ पर्व का समापन हो जाता है।

नहाय खाय के दिन देवी कूष्मांडा, खरना के दिन स्कंदमाता की पूजा की गई। छठ व्रत को सबसे कठिन व्रत माना जाता है और मान्यता है कि नियमों का पालन करते हुए जो भक्त छठ माता की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं माता पूरी करती हैं।

खरना के दिन छठ माता की पूजा के लिए प्रसाद बनाने की परंपरा है और इस पूरे दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और शाम के समय गुड़ चावल की खीर और रोटी बनाकर खरना किया। खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है।

इस प्रसाद को व्रती महिलाएं सबसे पहले ग्रहण करती हैं और उसके बाद प्रसाद को परिजनों में बांट दिया जाता है। आज भगवान सूर्य की पूजा की जाएगी। खरना के प्रसाद को लेकर कई नियमों का पालन किया जाता है। खरना की खीर ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का व्रत शुरू हो चुका है।

27 मार्च को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को देंगे अर्घ्य

चार दिवसीय इस पर्व में महिलाएं परिवार में सुख समृद्धि और दीर्घायु के लिए कठिन व्रत रखती हैं। पहले दिन व्रतियों ने घर में अपना अलग पवित्र स्थल और पूजन स्थल तैयार कर लिया। खरना के दिन शाम के समय चूल्हे और आम की लकड़ी पर प्रसाद बनाएंगी। खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास भी शुरू हो जाएगा। इसके बाद सोमवार को यानी 27 मार्च को छठी व्रती अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देंगे। फिर 28 मार्च को उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देंगे। इसी के साथ चार दिन का छठ पर्व समापन हो जाएगा।

भगवान राम ने शुरू की थी यह परंपरा

छठ महापर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक कार्तिक के शुक्ल पक्ष में और दूसरा चैत माह के शुक्ल पक्ष में। चैती छठ महापर्व में रविवार को खरना होगा तो सोमवार शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा जबकि अगले दिन मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व संपन्न किया जाएगा। इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहते हैं। इसमें अमूमन सामूहिक घाट पर आयोजन नहीं होंगे मगर लोग अपने-अपने घरों में इस पर्व को मनाएंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चैती छठ की परंपरा भगवान राम ने शुरू की थी।

जब भगवान राम का राज्याभिषेक हो रहा था, तब भगवान राम ने माता सीता के साथ अपने कुलदेवता भगवान भास्कर की पूजा की और सरयू नदी में अर्घ्य दिया।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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