दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
लखीमपुर जिले से करीब 55 किलोमीटर दूर निघासन तहसील के गांव तमोली पुरबा तक पहुंचने के लिए तहसील से 20 किलोमीटर अंदर जाना पड़ता है। इसी गांव के एक फूस और छप्पर से बने घर में वो 2 नाबालिग लड़कियां पैदा हुई थीं, जिनसे गैंगरेप किया गया, पीटा गया, गला दबाकर कत्ल किया गया और फिर आत्महत्या दिखाने के लिए पेड़ पर एक ही दुपट्टे के सहारे लटका दिया।
यूपी सरकार ने सख्ती दिखाई, 6 आरोपी अरेस्ट हुए, 14 दिन में चार्जशीट भी फाइल हुई। 25 लाख रुपए मुआवजा, एक घर और सरकारी नौकरी का ऐलान हुआ। कांग्रेस, सपा, बसपा और दूसरी पार्टियों के नेता पहुंचे। फोटो खिंचवाते हुए चेक दिए गए। साथ निभाने और न्याय दिलाने के वादे भी किए।
68 दिन गुजर गए, पीड़ित परिवार करीब 45 बार कोर्ट के चक्कर लगा चुका है। अभी बयान दर्ज हो रहे हैं। यूपी सरकार ऐलान करके भूल गई, यूपी कांग्रेस कमेटी का 2 लाख का चेक, कांग्रेस विधायक वीरेंद्र कुमार चौधरी का एक लाख का चेक और यूपी नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष अमित जानी का दिया एक लाख का चेक बाउंस हो चुका है। एक चेक सिग्नेचर मैच न होने से रिजेक्ट हो गया।
पीड़िता के पिता केस की बाबत पूछे जाने पर झल्ला जाते हैं, कहते हैं, 6 आरोपियों के 6 वकील हैं। एक वकील 6-6, 7-7 बार बयान लेता है। सब बार-बार एक ही तरह के सवाल पूछते हैं। लड़कियों की मां को रोज-रोज बयान दर्ज कराने बुला लेते हैं।’
पास खड़ा भाई भी उखड़ जाता है, बताता है- मां से वकील अजीब-अजीब सवाल पूछते हैं। तुम्हारी शादी कब हुई थी? उस दिन खाने में क्या बना था? पंचायत में गांव कितने हैं? चुनाव में प्रधान कितने खड़े हुए? लड़कियों ने उस दिन क्या पहना था? कब खाना खाया था? गंदे-गंदे सवाल भी पूछते हैं- लड़कियों ने कपड़े पहने थे या नहीं? कपड़े कितने फटे थे, कहां से फटे थे?’
मां से बेटियों की याद आती है? पूछने पर झल्ला जाती हैं, कहती हैं- ‘हम लोग गरीब हैं। हमारे पास मोबाइल नहीं था। बेटे के पास मोबाइल था, लेकिन वह बाहर रहता था। जिन्हें पैदा किया, पाल-पोसकर इतना बड़ा किया, उन्हें याद करने के लिए मुझे तस्वीरों की जरूरत नहीं। हमारे पास बैठती थीं, खाना बनाकर खिलाती थीं। 3 साल तक मेरी बीमारी में खूब सेवा की।
लड़कियों की एक तस्वीर भी इस परिवार के पास नहीं है, कभी सोचा ही नहीं था कि ऐसी वजहों के लिए जरूरत पड़ जाएगी।
मां कहती हैं, ‘हमायी एकै इच्छा हय, उनकै घर गिरै जाएं आउ हमाए सामने उनकै फांसी लग जाय’।
पिता बताते हैं- ‘हर बार 4-5 लोगों को कोर्ट जाना पड़ता है। हमें ऐसे दौड़ते हुए तीसरा महीना भी लग गया है। कहा गया था एक महीने के भीतर घर, सरकारी नौकरी और 25 लाख रुपए की सहायता मिलेगी। अब तक एक फूटी कौड़ी नहीं मिली। सरकार की तरफ से कोई कुछ बताता भी नहीं।’
आरोपियों के घरवालों की कहानी जुदा, बेटों को बचाने के तर्क भी
इस मामले में सबसे पहले जिस आरोपी को लड़कियों की मां ने पहचाना, उसका नाम छोटू उर्फ सुनील था। लड़की की मां का कहना है कि लड़कियों को जबरदस्ती उठाकर जो 4 लोग ले जा रहे थे, उनमें सुनील भी शामिल था। वह पीड़ित के घर से महज 300 मीटर की दूरी पर रहता था। पुलिस सुनील के जरिए ही अन्य आरोपियों तक पहुंची थी। बाकी आरोपी लालपुर के रहने वाले हैं।
सुनील की पत्नी सरोजिनी का दावा है कि ‘जिस दिन ये सब हुआ सुनील घर पर ही नहीं था। उसे फंसाया जा रहा है, क्योंकि पीड़ित परिवार उन्हीं की बिरादरी का है। छोटू को ससुराल से खेत मिलने की वजह से वे लोग उनसे जलते हैं। मां और पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है।
उधर, एक और आरोपी जुनैद के अब्बू इसरायल के मुताबिक, उनका बेटा तो यहां रहता ही नहीं। वह दिल्ली में पढ़ाई करता है। वह घटना के वक्त घर पर ही था। वह दिल्ली से कब आया? के जवाब में कहता है, एक हफ्ते पहले ही घर आया था।
उसका आधार कार्ड दिखाते हुए इसरायल दावा करते हैं कि मेरा बेटा नाबालिग है। पुलिस उसे बालिग साबित करने में तुली है। दूसरी तरफ सुहेल की मां आलिया बेगम कहती हैं, मेरा बेटा तो क्रिकेट खेलने गया था। जब पुलिस ने गिरफ्तार किया, तो वह घर में सो रहा था।
मुआवजा, घर, नौकरी कुछ नहीं मिला, कांग्रेस से मिले चेक बाउंस हुए
लड़कियों के पिता बताते हैं- ‘हर बार 4-5 लोगों को कोर्ट जाना पड़ता है। हमें ऐसे दौड़ते हुए तीसरा महीना भी लग गया है। कहा गया था एक महीने के भीतर घर, सरकारी नौकरी और 25 लाख रुपए की सहायता मिलेगी। अब तक एक फूटी कौड़ी नहीं मिली। सरकार की तरफ से कोई कुछ बताता भी नहीं।’
पीड़िताओं के भाई मुझे 3 चेक दिखाते हैं। इनमें से एक 2 लाख का है, जिस पर कांग्रेस उत्तर प्रदेश कमेटी लिखा है, किसी वाईके शर्मा के साइन हैं। एक चेक 1 लाख रुपए का है, जो विधानसभा क्षेत्र फरेंदा, महाराजगंज से कांग्रेस के विधायक ने दिया है। एक और 1 लाख रुपए का चेक है, जो यूपी नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष अमित जानी ने दिया था। इनमें से दो चेक बाउंस हो गए हैं और एक पर किए गए साइन मैच नहीं हुए।
आरोपियों के घरवालों की कहानी जुदा, बेटों को बचाने के तर्क भी
इस मामले में सबसे पहले जिस आरोपी को लड़कियों की मां ने पहचाना, उसका नाम छोटू उर्फ सुनील था। लड़की की मां का कहना है कि लड़कियों को जबरदस्ती उठाकर जो 4 लोग ले जा रहे थे, उनमें सुनील भी शामिल था। वह पीड़ित के घर से महज 300 मीटर की दूरी पर रहता था। पुलिस सुनील के जरिए ही अन्य आरोपियों तक पहुंची थी। बाकी आरोपी लालपुर के रहने वाले हैं।
मेरा बेटा शुगर की दवाई लेने गया था, डॉक्टर का नाम नहीं पता
छोटे उर्फ अंसारी के पिता अहमद हुसैन की माने तो उनका बेटा पास के ही इलाके पालिया में उनके लिए शुगर की दवाई लेने गया था। हालांकि न उनके पास प्रिस्क्रिप्शन है, न डॉक्टर का नाम बता पाते हैं। कहते हैं कि किसी डॉक्टर से नहीं, बल्कि किसी वैद्य से दवाई लेने गया था। वैद्य का फोन नंबर उनके पास मौजूद नहीं था।
हफीजुर्रहमान के अब्बू अजीजुर्रहमान किसी बात का सही से जवाब दे नहीं पाते। क्योंकि उस वक्त वे घर में नहीं थे, बल्कि कश्मीर में थे। वह वहां पर सेब के बागान में मजदूरी करते हैं। टीवी पर खबर चल रही थी। बेटे का नाम देखा तो भागे-भागे घर आए। लेकिन उनकी मां बताती हैं कि उनके बेटे की तबियत ठीक नहीं थी, वह घर पर ही आराम कर रहा था।
करीमुद्दीन के अब्बा भी हादसे के वक्त अपने बेटे के घर पर ही होने की बात पर टिके हैं। सुहेल और करीमुद्दीन खानदान के रिश्ते से भाई लगते हैं।
जज बदला, लेकिन केस में अभी गवाही ही चल रही
योगी सरकार ने इस मामले को एक महीने में निपटाने का वादा किया था। 14 दिन में चार्जशीट भी हो गई थी। सुनवाई शुरू हुई तो सरकार जज की धीमी रफ्तार से भी खफा हुई। जज का तबादला हुआ और नए आ गए। इस केस की सुनवाई पहले लखीमपुर की कोर्ट में जज मोहन कुमार कर रहे थे। डेढ़ महीने बीतने के बाद जब केस आगे नहीं बढ़ा तो प्रशासन ने उनकी जगह राहुल सिंह को केस दे दिया।
पीड़ित परिवार से यह पूछे जाने पर कि, आपके वकील क्या कहते हैं? लड़कियों के भाई ने कहा, ‘कह रहे थे कम से कम डेढ़ महीना और लगेगा। अब तक तो हमें नहीं लग रहा कि आधा भी काम हुआ है। अभी तो बयान ही नहीं पूरे हो पा रहे।’
पीड़ित परिवार के वकील ब्रजेश पांडेय कहते हैं- इस केस में बहुत तेजी से काम हो रहा है। 14 सितंबर को हादसा हुआ। 29 सितंबर को पुलिस की तरफ से कोर्ट में चार्जशीट भी लगा दी गई। 30 सितंबर को अभियुक्तों के ऊपर आरोप भी लगा दिए गए। 3 अक्टूबर को सबूतों की पड़ताल शुरू हो गई। 3 आरोपी जुनैद, सोहेल और हफीजुर्रहमान के वकील आई विटनेस से जिरह कर चुके हैं।
आरोपियों को नाबालिग बताया, उम्र की छानबीन में 45 दिन लगे
केस तब धीमा हुआ, जब आरोपी के वकीलों ने उन्हें नाबालिग बता दिया। इससे केस जुवेनाइल कोर्ट में चला गया। इनकी उम्र की छानबीन में 45 दिन लग गए। लखीमपुर में इनके स्कूल से एजुकेशनल रिकॉर्ड निकलवाया गया। उनके टीचर को तलब किया गया। मुख्य आरोपी जुनैद दिल्ली में पढ़ता है, इसलिए वहां से भी टीचर को बुलाया गया। जुनैद के लखीमपुर और दिल्ली के स्कूल में उसकी डेट ऑफ बर्थ में फर्क था।
फिलहाल 3 आरोपियों की कोर्ट में पहचान हो गई है। लड़कियों की मां और इस केस के दूसरे गवाह लड़की के चाचा अरविंद की गवाही हो चुकी है। केस में 6 आरोपी हैं। सबके अपने वकील हैं। एक-एक गवाह से कई-कई बार जिरह होती है। दूसरे 3 आरोपियों के वकीलों ने अपने क्लाइंट को नाबालिग घोषित करने की कोशिश की। इसके लिए ज्यादा टाइम लग रहा है।
लोग कहते हैं कि बाबा योगी इस केस को खुद देख रहे हैं। कोई बोलेगा तो जेल में डाल दिया जाएगा। बड़ी बेटी की एक सहेली धीरे से कहती है- जुनैद और उसके बीच पहले से बातचीत होती थी। मैंने उन्हें साथ-साथ देखा था।
कुछ और लोग बताते हैं- अब हम क्या कहें, लेकिन घर में उन लोगों को आना-जाना था। जब कांड हो गया तो रिपोर्ट दर्ज करा दी गई। गांव में लव एंगल और लव जिहाद जैसी चर्चाएं भी हैं।
लड़कियों की मां ने कोर्ट में बताया है कि बाइक से लड़के आए। आंगन से घसीटते हुए लड़कियों को ले गए। मैंने रोकने की कोशिश की तो लात मार दी। मैं गिर पड़ी। गांव के लोग इस पर सवाल भी करते हैं। लड़के गांव से लड़कियों को दिन में ले जा रहे थे। लड़कियां चिल्लाती रहीं और गांव के एक भी शख्स ने उन्हें चिल्लाते न सुना न देखा। क्या ऐसा हो सकता है?
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."