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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी की नियुक्ति  क्षेत्रीय-जातीय संतुलन का बड़ा दांव ; विरोधियों को कोई कदम जमाने की नहीं मिलेगी जगह

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राकेश तिवारी की रिपोर्ट 

मात्र छह से आठ प्रतिशत आबादी वाली जाट बिरादरी के भूपेंद्र चौधरी (Bhupendra Chaudhary) को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष (UP BJP President) क्यों बनाया? क्या जाटों के प्रभाव वाली लगभग 14 सीटों के ही लिए? यह प्रश्न उन्हीं अटकलों की कोख से उपजे हैं, जिनमें ब्राह्मण या दलित को अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर तमाम दलीलें थीं। मगर, इस ‘भगवा बिसात’ को गौर से देखें तो उत्तर मिलता है कि यह क्षेत्रीय-जातीय संतुलन का बड़ा दांव है।

यह ऐसा दांव है जिससे विरोधियों को कदम जमाने के लिए कोई जमीन खाली न मिले। प्रभावशाली नेताओं-मंत्रियों और गठबंधन सहयोगियों से पूरब का पलड़ा भारी है तो बुंदेलखंड भी ‘कमल’ के उर्वर हो चुका है। चुनौती सिर्फ पश्चिम में थी, जिसे संभालने की इस चाल के साथ भाजपा ने 80 सीटों की किलेबंदी की रणनीति बुन ली है।

यह पहले से सुनिश्चित था कि भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव के समीकरणों के आधार पर ही होगी। महीनों चले अटकलों के दौर में यदा-कदा तो पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र चौधरी का नाम चर्चा में आया, लेकिन अच्छी छवि के पुराने कार्यकर्ता होने के बावजूद इसलिए नाम हमेशा दबी जुबान से लिया गया, क्योंकि वह जाट बिरादरी से हैं।

यह तथ्य उनकी पैरवी में तब बहस को बल नहीं देता था कि जाटों की प्रदेश में आबादी मात्र छह से आठ प्रतिशत है और इस बिरादरी का प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब एक दर्जन सीटों तक सीमित है। मगर, अब जब निर्णय हो गया है तो पार्टी के ही नेता इसे हाईकमान के चश्मे से देखने को तैयार हैं। उनकी नजर में यह नियुक्ति लोकसभा चुनाव की ‘माइक्रो-प्लानिंग’ के तहत तय हुई है।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्वी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सांसद हैं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह नगर गोरखपुर है। इसी अंचल के प्रयागराज से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तो इससे जुड़े अवध का प्रतिनिधित्व उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक करते हैं।

केंद्र सरकार में भी अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश से राजनाथ सिंह और डा. महेंद्रनाथ पांडेय जैसे प्रभावशाली नेता हैं। साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के स्थानीय समीकरण साधने के लिए भाजपा के पास अपना दल (एस) और निषाद पार्टी जैसे सहयोगी गठबंधन में हैं।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के भी साथ आने की संभावना है। इसी तरह 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बुंदेलखंड की सभी चारों सीटें जीते बैठी भाजपा इस अंचल के प्रति पहले से आश्वस्त है। ऐसे में चुनौती वाला क्षेत्र पश्चिम ही नजर आता है, जिसे भौगोलिक-राजनीतिक दृष्टि से ब्रज क्षेत्र के साथ भी जोड़ा जा सकता है।

इसे साधने के लिए बिजनौर निवासी धर्मपाल सिंह को प्रदेश महामंत्री संगठन बनाने के बाद भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष भी मुरादाबाद से दे दिया है। इस क्षेत्रीय संतुलन में विपक्ष के पास कोई ऐसा अंचल खाली नहीं बचता, जहां वह भाजपा के कमजोर प्रभाव देखकर अपनी पैठ आसानी से बना सके।

देश का चुनाव, अन्य राज्यों पर भी नजर  यह लोकसभा चुनाव है, इसलिए भाजपा के इस निर्णय को उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्यों से भी जोड़कर देखा जा सकता है। यूपी से सटे दिल्ली में जाटों के प्रभाव वाली कुछ सीटें हैं। सीमा जाट बहुल हरिणाया और राजस्थान से भी सटी है। ऐसे में इन राज्यों को भी जाटों को पार्टी में प्राथमिकता का संदेश भूपेंद्र चौधरी की ताजपोशी से दिया गया है।

मुरादाबाद, रायबरेली और मैनपुरी का बदलेगा गणित

सपा-बसपा के गठबंधन की वजह से 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए सबसे अधिक चुनौती वाला माना गया। भाजपा गठबंधन ने कुल 80 में से 64 सीटें जीत ली थीं। उसे 16 सीटों पर हार मिली, जिसमें सबसे बड़ा झटका मुरादाबाद मंडल में ही मिला। यहां की सभी छह लोकसभा सीटें विरोधी जीत गए। अब अगर भाजपा की नजर 80 सीटों पर है तो उसके साथ में रणनीति का गणित भी है।

सपा संरक्षक मुलायम सिंह काफी वृद्ध हैं। 2024 में उनके चुनाव न लड़ने पर भाजपा वहां परिस्थिति बदलते देख रही है। यही स्थिति कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली को लेकर है। इधर, आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट को भाजपा उपचुनाव में जीत चुकी है। अब उसे पश्चिम में खास तौर पर ताकत लगानी है, जिसमें मुरादाबाद पर भूपेंद्र चौधरी का स्थानीय प्रभाव संगठन में कद के साथ बढ़ सकता है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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