संपादकीय

पुण्यतिथि पर विशेष ; सलाम 🙏 कलाम🙏

अनिल अनूप 

सूरज की तरह चमकने के लिए सूरज की तरह जलना पड़ता है के अपने विचार को चरितार्थ करने वाले भारत के पूर्व 11 वें राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक, शिक्षक  कभी न भुलाए जा सकने वाले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आज पुण्य तिथि है। 

27 जुलाई 2015 को शिलांग गए थे। वहां आईआईएम शिलांग में एक फंक्शन के दौरान अब्दुल कलाम साहब की तबियत खऱाब हो गई थी। वे वहां एक कॉलेज में बच्चों को लेक्चर दे रहे थे, तभी अचानक वे गिर पड़े, जिसके बाद उन्हें शिलोंग के हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया और उनकी स्थिति नाजुक होने के कारण उन्हें आईसीयू में एडमिट किया गया, जिसके बाद उन्होंने अपनी अंतिम सांसें ली और दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका जन्म 15 अक्तूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम शहर में हुआ था। एक समय अपनी सरकार के गिरने से तानों से तंग आकर कि वो एक ‘कमज़ोर’ प्रधानमंत्री हैंस इंदर कुमार गुजराल जी ने तय किया कि वो भारतवासियों और दुनिया वालों को बताएंगे कि वो भारतीय सुरक्षा को कितनी ज़्यादा तरजीह देते हैं। उन्होंने मिसाइल मैन के नाम से मशहूर एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला लिया। इससे पहले 1952 में सीवी रमण को छोडक़र किसी वैज्ञानिक को इस पुरस्कार के लायक नहीं समझा गया था। 1 मार्च 1998 को राष्ट्रपति भवन में भारत रत्न के पुरस्कार वितरण समारोह में कलाम नर्वस थे और अपनी नीली धारी की टाई को बार-बार छू कर देख रहे थे। कलाम को इस तरह के औपचारिक मौकों से चिढ़ थी जहां उन्हें उस तरह के कपड़े पहनने पड़ते थे जिसमें वो अपने आप को कभी सहज नहीं पाते थे। सूट पहनना उन्हें कभी रास नहीं आया।

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यहां तक कि वो चमड़े के जूतों की जगह हमेशा स्पोर्ट्स शू पहनना ही पसंद करते थे। वाजपेई जी की कलाम साहिब से पहली मुलाकात अगस्त 1980 में हुई थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें और प्रोफेसर सतीश धवन को एसएलवी 3 के सफलतापूर्ण प्रक्षेपण के बाद प्रमुख सांसदों से मिलने के लिए बुलवाया था। कलाम को जब इस आमंत्रण की भनक मिली तो वो घबरा गए और धवन से बोले, सर मेरे पास न तो सूट है और न ही जूते। मेरे पास ले दे के मेरी चेर्पू है (चप्पल के लिए तमिल शब्द)। तब सतीश धवन ने मुस्कराते हुए उनसे कहा था, ‘कलाम तुम पहले से ही सफलता का सूट पहने हुए हो। इसलिए हर हालत में वहा पहुंचो। 

तमिलनाडु के एक साधारण दक्षिण भारतीय परिवार में 1931 को एपीजे का जन्म हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहिणी थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें छोटी उम्र से ही काम यथा समाचार पत्र वितरण, पिता भाई के साथ काम करना पड़ा। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढाई-लिखाई में सामान्य छात्र थे, पर नई चीज सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे।  

प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1955 में वे मद्रास चले गए। हालांकि वह एक लड़ाकू पायलट बनना चाहते थे, लेकिन वे आईएएफ (भारतीय वायुसेना) द्वारा उसके लिए दक्षता प्राप्त नहीं कर पाए थे। मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू पायलट बनने की चाह रखने वाला युवक की सफलता की उंचाई हर गुजरे वक्त के साथ बढ़ती गई।

कलाम पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा गठित ‘इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च’ के सदस्य भी थे। इस दौरान उन्हें प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ कार्य करने का अवसर मिला। वर्ष 1969 में उनका स्थानांतरण होने के कुछ समय उपरांत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में सैटेलाइट लांच व्हीकल  परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गए थे।

सत्तर और अस्सी के दशक में अपने कार्य और सफलता से डॉ कलाम भारत सहित विदेश में भी बहुत प्रसिद्ध हो गए और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में उनका नाम गिना जाने लगा। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने कैबिनेट के मंजूरी के बिना ही उन्हें कुछ गुप्त परियोजनाओं पर कार्य करने की अनुमति दे दी थी।  

मशहूर पत्रकार राज चेंगप्पा अपनी किताब ‘वेपेंस ऑफ पीस’ में लिखते हैं, ‘उस बैठक में जब इंदिरा गांधी ने कलाम का अटल बिहारी वाजपेई से परिचय कराया तो उन्होंने कलाम से हाथ मिलाने की बजाय उन्हें गले लगा लिया। ये देखते ही इंदिरा गांधी शरारती ढंग से मुस्कराई और उन्होंने वाजपेई जी की चुटकी लेते हुए कहा, ‘अटलजी लेकिन कलाम मुसलमान हैं।’ तब वाजपेई जी ने जवाब दिया, ‘जी हां, लेकिन वो भारतीय पहले हैं और एक महान वैज्ञानिक हैं।’ 18 दिन बाद जब वाजपेई दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कलाम को अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया। अगर कलाम इसके लिए राज़ी हो जाते तो वाजपेई को एक काबिल मंत्री मिलता। कलाम ने इस प्रस्ताव पर पूरे एक दिन विचार किया। अगले दिन उन्होंने वाजपेई जी से मिल कर बहुत विनम्रतापूर्वक इस पद को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि रक्षा शोध और परमाणु परीक्षण कार्यक्रम अपने अंतिम चरण में पहुंच रहा है। वो अपनी वर्तमान जि़म्मेदारियों को निभा कर देश की बेहतर सेवा कर सकते हैं। दो महीने बाद पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद ये स्पष्ट हो गया कि कलाम ने वो पद क्यों नहीं स्वीकार किया था। बाद के दिनों में वह राष्ट्रपति बने और देश की सेवा की। उन्होंने भारत को सुरक्षित बनाने की दृष्टि से पृथ्वी, अग्नि जैसी मिसाइल दी।

एक रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर उनकी उपलब्धियों और प्रसिद्धि के मद्देनजर एन. डी. ए. की गठबंधन सरकार ने उन्हें वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उमीदवार बनाया। डॉ. कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे, जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले ही भारत रत्न ने नवाजा जा चुका था। इससे पहले डॉ. राधाकृष्णन और डॉ. जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति बनने से पहले ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा चुका था।  उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें ‘जनता का राष्ट्रपति’ कहा गया।

अब्दुल कलाम के जीवन की एक कहानी बड़ी ही प्रेरणादायक लगी। यह उस समय की बात है जब कलाम जी राष्ट्रपति थे। तब उन्होंने अपने परिवार के 52 लोगो को राष्ट्रपति भवन बुलाया। उनके परिवार के लोग 8 दिनों तक राष्ट्रपति भवन में रुके। सब वापस चले गये तो कलाम ने राष्ट्रपति भवन के अधिकारियों से 8 दिन का हिसाब माँगा। तो पता चला कि उनके परिवार के पीछे कुल 3 लाख, 52 हजार रूपये खर्च हुए।

जानते है अब्दुल कलाम जी ने क्या किया? अपने निजी बैंक का 3 लाख, 52 हजार का चेक काटकर राष्ट्रपति कार्यलय में जमा करा दिया। अधिकारी कहते रह गये कि इसकी कोई जरूरत नही है। राष्ट्रपति के परिवार का खर्च उठाना भी राष्ट्रपति भवन का दायित्व है, लेकिन कलाम ने किसी की एक नही सुनी। राजकोष का एक भी पैसा व्यक्तिगत कारणों से खर्च नही किया। अपयश का कोई कारण अपने पीछे नही छोड़ा।

उन्होंने हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक भगवत गीता का अध्ययन किया था। कलाम अकसर कहा करते थे कि ‘पैगंबर मोहम्मद ने कहा था कि मुल्क से मुहब्बत ईमान की निशानी है’। भारत की व्यापक संस्कृति से उनका बहुत लगाव था। अपने खाली समय में वे भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनते थे ।

राष्ट्रपति पद से सेवामुक्त होने के बाद डॉ. कलाम शिक्षण, लेखन, मार्गदर्शन और शोध जैसे कार्यों में व्यस्त रहे और देश विदेश के शैक्षिक  संस्थानों से विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर जुड़े रहे।  लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी। कलाम हमेशा से देश के युवाओं और उनके भविष्य को बेहतर बनाने के बारे में बातें करते थे।

इसी संबंध में उन्होंने देश के युवाओं के लिए ‘व्हाट कैन आई गिव’ पहल की शुरुआत भी की, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार का सफाया है। पूरी जिंदगी अपनी मजहब को व्यक्तिगत रखा, रोजा, नमाज भी करते थे, कभी इसे प्रदर्शित करने की कोशिश नहीं की, इफ्तार पार्टी कभी नहीं दी। 

कलाम साहेब  ने अपनी पुस्तक -टर्निंग प्वाइंट’ में एक घटना का जिक्र करते हुए लिखते था,  उनके पिता, इलाके का सरपंच चुने  गये , कुछ दिन बाद कोई अपरिचित शख़्स उनके घर आकर उनके हाथ में कुछ उपहार दे गया, पिता के अनुपस्थिति में कलाम ने उपहार लिया बाद में जब पिता को ये बात बताई तो  इसपर वह बेहद नाराज़ हुए ,उन्होंने एक हदीस शरीफ का हवाला देते हुए ‘पद  के  दुरूपयोग’ न करने की सख्त नसीहत दी। राष्टपति रहते हुए, पूर्व और बाद में भी कलाम ने सादगी से जीवन जीने का संदेश दिया।  

कलाम के पूर्व प्रेस सचिव  एस एम खान ने अपनी किताब  ‘महानतम इंसान के साथ मेरे दिन’ में जिक्र किया है कि एपीजेअब्दुल कलाम के मन में  2006 में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने का विचार भी आया था, तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधानसभा भंग करने  का प्रस्ताव भेजा , कैबिनेट ने अनुमोदित कर उनके पास भेजा। उस पर राष्ट्रपति ने ना चाहते हुए भी हस्ताक्षर किया, बाद में  इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश को खारिज कर दिया था।  तब कलाम को लगा था कि उन्हें हस्ताक्षर नहीं करना  चाहिए था।  कमाल का व्यक्त्वि था उनका।  

वर्ष 2011 में प्रदर्शित हुई हिंदी फिल्म ‘आई एम कलाम’ उनके जीवन से प्रभावित है। भारत के विकास और युवा शक्ति पर उनका विचार नयी पढ़ी को नई दिशा देगा।  शिक्षण के अलावा उन्होंने 30 से ज़्यादा किताबें लिखीं जिनमें विंग्स ऑफ़ फ़ायर, इग्नाइटेड माइंड और इंडिया 2020: विज़न फ़ॉर मिलेनियम सबसे ज़्यादा चर्चित हैं।

उन्होंने इंडिया 2020: विज़न फ़ॉर मिलेनियम में विस्तार से भारत के 2020 के लिए  एजेंडा तय किया । उन्होंने वकालत की कि देश का ध्यान जीडीपी, विदेशी मुद्रा का विनिमय, आयात-निर्यात, तकनीक और अर्थव्यवस्था की तरफ तो होना ही चाहिए, साथ ही लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषक भोजन भी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए।

देश के समावेशी  विकास के लिए  तकनीक, विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में सरकार को क्या करना चाहिए और इसमें आम नागरिक को क्या भूमिका निभानी चाहिए आदि उनके जीवन से एक प्रेरणा मिलती है कि एक जिज्ञासु छात्र ही एक अच्छा शिक्षक या नायक बन सकता हैं।

उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल है, जो भविष्य की पीढ़ी खास कर युवा वर्ग का  मार्गदर्शन करती रहेगी। ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में विख्यात रहे कलाम साहब देश को शक्तिशाली एवं आत्म निर्भर बनाना चाहते थे। उन्हें सलाम है।

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"ज़िद है दुनिया जीतने की" "हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं"
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