आजमगढ़ और पूर्वांचल के शिक्षा जगत के स्तंभ प्रोफेसर बजरंग त्रिपाठी का निधन, जिन्होंने शिब्ली कॉलेज से शिक्षण शुरू कर शिक्षा संस्थानों का साम्राज्य खड़ा किया। उनके योगदान और संघर्षों की कहानी प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
आजमगढ़। पूर्वांचल के शिक्षा जगत को उस वक्त गहरा आघात पहुंचा जब गुरुवार की सुबह यह खबर आई कि शिक्षा क्षेत्र के मार्गदर्शक, ऑल इंडिया चिल्ड्रन केयर एजुकेशनल एंड डेवलपमेंट सोसाइटी के संस्थापक और दर्जनों शिक्षण संस्थानों के निर्माता प्रोफेसर बजरंग त्रिपाठी अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन से न केवल आजमगढ़, बल्कि सम्पूर्ण पूर्वांचल शोक में डूब गया है। शिक्षा के इस युगपुरुष के निधन को समाज, शिक्षा जगत और उनके हजारों छात्रों ने अपूरणीय क्षति करार दिया है।
उनकी स्मृति में सोसाइटी द्वारा संचालित समस्त शिक्षण संस्थान तीन दिनों के लिए बंद कर दिए गए हैं। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को अंबेडकर नगर जनपद के रामबाग घाट पर किया जाएगा।
संघर्ष से सफलता तक का सफर
बजरंग त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर जिले के जहांगीरगंज कस्बे में एक सामान्य परिवार में हुआ था। सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने अपने जीवन को शिक्षा के माध्यम से न केवल संवारा बल्कि हजारों युवाओं के भविष्य को भी दिशा दी।
1963 में शिब्ली कॉलेज, आजमगढ़ से स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में एनसीसी सेवा और फिर गृह मंत्रालय में कार्य किया। हालांकि, उनका मन सदैव शिक्षा की ओर ही रहा। इसी जुनून ने उन्हें 1970 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. करने को प्रेरित किया।
इसके बाद 1970-71 में उन्होंने साकेत कॉलेज, फैजाबाद में लेक्चरर के रूप में कार्यभार संभाला और 1972 में शिब्ली कॉलेज लौटे, जहां उन्होंने 28 वर्षों तक शिक्षा-कार्य कर हजारों छात्रों को ज्ञान का प्रकाश दिया।
शिक्षा से सेवा तक – एक जीवन मिशन
1977 में उन्होंने आजमगढ़ नगर के हरबंशपुर में एक किराए की बिल्डिंग में “चिल्ड्रन स्कूल” की नींव रखी। यही वह मोड़ था जहां से उनका सपना साकार होने लगा। समय के साथ उन्होंने सर्फुद्दीनपुर में एक विशाल परिसर बनवाकर चिल्ड्रन कॉलेज की स्थापना की, जिसे 1986 में ICSE और 1992 में CBSE से मान्यता मिली।

यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। वर्ष 1999 में उन्होंने 300 बेड वाला फार्मेसी कॉलेज, 2005 में डेंटल कॉलेज, और 2006 में नर्सिंग डिग्री कॉलेज की नींव रखी। इसके अलावा अंबेडकरनगर में संत कमला पब्लिक स्कूल और कई गर्ल्स स्कूल की स्थापना से उन्होंने समाज में शिक्षा की ज्योति फैलाई। वर्तमान में उनके द्वारा स्थापित दो दर्जन से अधिक संस्थान हजारों छात्रों के भविष्य को गढ़ रहे हैं।
दूरदृष्टा और प्रेरणास्रोत
प्रो. त्रिपाठी अपने गुरुओं को सदैव सम्मानपूर्वक याद करते थे। वे मानते थे कि उनकी सफलता में कैप्टन अशफाक खान, मेजर एम.जे. हसन और डॉ. दीनानाथ लाल श्रीवास्तव जैसे गुरुओं का अमूल्य योगदान रहा है।
उत्तर प्रदेश के पहले ऐसे प्राध्यापक जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर शिक्षा के क्षेत्र में निजी प्रयास किए, प्रो. त्रिपाठी ने जब शिब्ली कॉलेज छोड़ा, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह शिक्षा का एक इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर देंगे।
समर्पण की मूर्ति – एक विचार, एक आंदोलन
वरिष्ठ पत्रकार धर्मेन्द्र श्रीवास्तव कहते हैं, “प्रो. बजरंग त्रिपाठी केवल एक शिक्षक नहीं थे, वह एक विचार थे – एक ऐसा आंदोलन, जिसने शिक्षा को समाज के अंतिम पायदान तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया।”
उनकी जीवनगाथा, उनके संघर्ष, उनकी संगठनात्मक कुशलता और शिक्षण में समर्पण की भावना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
शिक्षा की दुनिया का एक सितारा अस्त हुआ
प्रो. त्रिपाठी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि एक व्यक्ति अगर सच्चे संकल्प और सेवा भाव से कार्य करे तो वह न केवल खुद का भविष्य संवार सकता है, बल्कि समाज को भी एक नई दिशा दे सकता है। उनका जाना शिक्षा की दुनिया के लिए एक अप्रतिम क्षति है – एक ऐसा खालीपन जिसे भरना असंभव है।