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2 March 2025 12:04 pm

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ममता हार गई, लालसा जीत गई ; जीते जी रोटी नहीं दी, मरने के बाद अग्नि देने से भी इंकार…. 

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अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट

बलरामपुर, रामानुजगंज में एक हृदयविदारक घटना सामने आई, जिसने समाज की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया। 90 वर्ष से अधिक उम्र की बुजुर्ग महिला, जो जीवनभर स्वावलंबी रही, उसकी मौत के बाद उसके ही बेटों ने उसे मुखाग्नि देने से इनकार कर दिया। यह घटना न केवल रिश्तों की गिरती गरिमा को दर्शाती है बल्कि यह भी बताती है कि कैसे संपत्ति का लालच इंसानियत पर भारी पड़ रहा है।

बुजुर्ग मां का अकेला संघर्ष

गुरुवार देर शाम अचानक हृदय गति रुकने से अकेले रह रही इस बुजुर्ग महिला का निधन हो गया। मोहल्ले के लोगों ने जब उन्हें गिरते हुए देखा तो इंसानियत दिखाते हुए तुरंत सहायता की, डॉक्टर को बुलाया, लेकिन तब तक वह इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थीं। जीवनभर संघर्षशील रहने वाली यह महिला अपने अंतिम क्षण तक आत्मनिर्भर थी। उन्होंने अपने बच्चों से किसी भी तरह की सहायता की अपेक्षा नहीं की, बल्कि खुद ही अपने लिए भोजन बनातीं और घर का सारा कामकाज भी स्वयं करती थीं।

बेटों का असंवेदनशील रवैया

शुक्रवार को जब उनका अंतिम संस्कार करने की बारी आई, तो समाज ने जो दृश्य देखा, वह किसी त्रासदी से कम नहीं था। मृतका के पांच पुत्र अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार ही नहीं थे। मोहल्ले के लोग और जनप्रतिनिधि लगातार समझाइश देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बेटे टस से मस नहीं हो रहे थे। जिस मां ने जीवनभर अपनी संतान को पाला, वही संतान उसकी चिता को अग्नि देने तक को तैयार नहीं थी।

बेटियों ने निभाया फर्ज

जब समाज और रिश्तों की यह दयनीय स्थिति सामने आई, तब मृतका की दो बेटियों ने आगे बढ़कर अपनी मां को कंधा देने की बात कही। उन्होंने कहा कि अगर बेटे नहीं तैयार हैं, तो वे स्वयं अपनी मां को मुक्तिधाम तक ले जाएंगी और अंतिम संस्कार करेंगी। उनकी इस पहल के बाद बेटों की सोई हुई संवेदनाएं जागीं और वे किसी तरह अंतिम संस्कार के लिए तैयार हुए।

यह घटना समाज में बढ़ती संवेदनहीनता का जीता-जागता उदाहरण है। जीवनभर जिन पांच बेटों ने अपनी मां को दो वक्त की रोटी तक नहीं दी, वे उसकी मृत्यु के बाद कफन तक के लिए लड़ाई करने लगे। मृतका की करोड़ों की संपत्ति थी, लेकिन वह अपने अंतिम समय तक खुद के लिए रोटी बनाकर खाती रहीं। उनकी मृत्यु के बाद बेटे संपत्ति को लेकर एक-दूसरे से लड़ते रहे और अंतिम संस्कार का जिम्मा एक-दूसरे पर डालने की कोशिश करते रहे।

समाज के लिए एक कड़वा सबक

यह घटना केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक आईना है। जहां माता-पिता बच्चों को पालने में कोई कसर नहीं छोड़ते, वहीं आज की पीढ़ी उन्हें उनके अंतिम समय में अकेला छोड़ देती है। बुजुर्ग महिला के पांचों बेटे संपत्ति के बंटवारे को लेकर असंतुष्ट थे और इस कदर अमानवीय हो गए कि उन्होंने अपनी ही मां के अंतिम संस्कार से मुंह मोड़ लिया।

समय के साथ बदलते रिश्तों की यह कहानी समाज के लिए एक चेतावनी है कि अगर इंसान अपने मूल्यों और रिश्तों को भूलकर केवल धन-संपत्ति के पीछे भागेगा, तो उसका अंत कितना भयावह हो सकता है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सच में हम एक संवेदनहीन समाज की ओर बढ़ रहे हैं?

👉☝प्रदर्शित चित्र मात्र प्रतीकात्मक है।

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