कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में फर्जी प्रमाण पत्र बनाने का एक और चौकाने वाला मामला सामने आया है, जहां कुछ लोगों ने संपत्ति विवाद को हल करने के लिए एक व्यक्ति की मृत्यु का प्रमाणपत्र 20 साल पहले की तारीख से बनवाया।
यह घटना जिले के पुवायां इलाके में स्थित बड़ागांव के निवासी अब्दुल मजीद से जुड़ी हुई है। अब्दुल मजीद की वास्तविक मृत्यु 19 अक्टूबर 1979 में हुई थी, लेकिन कुछ लोगों ने उसकी मृत्यु का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाया, जिसमें उसकी मृत्यु का साल 1959 दिखाया गया।
यह मामला तब सामने आया जब अब्दुल मजीद के प्रपौत्र, आशिक अली ने 2 मई 2024 को यह जानकारी प्राप्त की कि उनके परिवार के ही एक सदस्य ने अब्दुल मजीद के नाम पर एक दूसरा मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाया था, जिसमें 1959 की तारीख दर्ज की गई थी।
इस फर्जी प्रमाणपत्र के निर्माण के पीछे जमीन से जुड़ा विवाद था। दरअसल, अब्दुल मजीद ने अपनी 1965-66 की वसीयत में शहर के एक मकान को किसी अन्य व्यक्ति के नाम कर दिया था।
इस वसीयत को झूठा साबित करने के लिए मृतक के परिवार के किसी सदस्य ने उसकी मृत्यु का प्रमाणपत्र बदलवाया, ताकि भूमि पर मालिकाना हक जताया जा सके।
आशिक अली ने जब इस फर्जीवाड़े का पता चलने के बाद संबंधित विभाग और जनप्रतिनिधियों से शिकायत की, तो कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने बरेली जाकर कमिश्नर सौम्या अग्रवाल से शिकायत की, जिसके बाद मामले की जांच शुरू की गई।
कमिश्नर ने यह मामला गंभीरता से लिया और जांच के आदेश दिए। रजिस्टर में की गई छेड़छाड़ का पता लगाने के लिए हैंडराइटिंग विशेषज्ञ और फॉरेंसिक लैब से विस्तृत जांच कराई जा रही है।
यह घटना यह साबित करती है कि कैसे कुछ लोग संपत्ति पर कब्जा करने के लिए न केवल क़ानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं, बल्कि उनके द्वारा किए गए फर्जी प्रमाण पत्रों से ना केवल प्रशासनिक प्रक्रिया में गड़बड़ी आती है, बल्कि परिवारों के बीच विवाद भी उत्पन्न होते हैं।
जांच अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।