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December 5, 2024 7:07 am

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साहब, घर का राशन बेचकर पैसे लाया हूँ, मेरा हैसियत प्रमाण पत्र बना दीजिए, लेखपाल की हरकत की हो रही है कुचर्चा

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नौशाद अली की रिपोर्ट

महराजगंज जिले के फरेंदा तहसील में एक लेखपाल द्वारा रिश्वत लेने का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इस वीडियो ने सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को एक बार फिर उजागर कर दिया है।

वीडियो में देखा जा सकता है कि एक किसान, राजन चौरसिया, जो बृजमनगंज कस्बे का निवासी है, अपनी जरूरत और मजबूरी का हवाला देकर लेखपाल को रिश्वत के पैसे दे रहा है।

किसान की विवशता और लेखपाल की बेरुखी

वीडियो में किसान बता रहा है कि उसने तीन हजार रुपये की रकम बड़ी मुश्किल से जुटाई है। इसके लिए उसे अपने घर का राशन और चावल तक बेचना पड़ा। किसान ने पहले भी इस लेखपाल को पांच हजार रुपये दे दिए थे, लेकिन इसके बावजूद उसकी फाइल पर रिपोर्ट लगाने से मना कर दिया गया। जब किसान ने एक बार फिर पैसे जुटाए और लेखपाल को दिए, तो उसने 100 रुपये की कमी के बावजूद काम करने का आश्वासन नहीं दिया।

रिश्वत का तरीका और वायरल वीडियो

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि लेखपाल, पैसे लेकर उन्हें अपने मोबाइल और फाइल के नीचे छिपाने की कोशिश कर रहा है। यह रिश्वत 1.06 मिनट के इस वीडियो में पूरी तरह से उजागर हो रही है। किसान को पैसे देने के बाद भी लेखपाल ने उसे दो दिन बाद आने को कहा।

घटना का खुलासा और कार्रवाई का आश्वासन

यह मामला तब सुर्खियों में आया जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। फरेंदा तहसील के एसडीएम मुकेश सिंह ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने कहा कि अगर जांच में लेखपाल दोषी पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

रिटायर हो चुका है आरोपी लेखपाल

मामले को और गंभीर बनाता है यह तथ्य कि वीडियो में नजर आ रहा लेखपाल 30 नवंबर को रिटायर हो चुका है।

हालांकि, किसान ने पहले से ही कई बार इस लेखपाल को घूस दी थी और वीडियो बनाने के लिए अपने एक सहयोगी की मदद ली।

स्थानीय प्रशासन और राजनीति की प्रतिक्रिया

फरेंदा तहसील में रिश्वतखोरी का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी यहां ऐसे कई मामले सामने आए हैं। इस बार वीडियो वायरल होने के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने इसे अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर साझा किया, जिससे मामला और अधिक चर्चा में आ गया।

सिस्टम पर सवालिया निशान

यह घटना न केवल प्रशासनिक भ्रष्टाचार को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किसानों को अपने अधिकारों और सरकारी सेवाओं के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अब यह देखना बाकी है कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और क्या पीड़ित किसान को न्याय मिल पाता है।

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