google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
जिंदगी एक सफरबात बेबाक

तिरस्कार की धरती पर पहचान की तलाश ; इंसानियत के खोए हुए हिस्से की कहानी

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

अनिल अनूप

सौ की भीड़ में आप अकेले हो सकते हो, लेकिन उस भीड़ में हम और भी अकेले होते हैं।”

जब किन्नर बनना शुरू किया तो रोना आता था। खुद को सजाकर, लिपस्टिक और पाउडर लगाए शीशे में देखता तो ऐसा लगता था कि कोई मर्दानगी को ललकार रहा है। सजा-संवरा रूप मुझे रातभर सोने नहीं देता था। कई रातें तो रोते हुए गुजारीं। दुनिया में जिम्मेदारियों से बड़ा कुछ नहीं होता। जब बेटे का चेहरा देखता था तब लगता था कि कुछ भी गलत नहीं कर रहा”

यह एक किन्नर की रुंआसी आवाज़ है, जिसमें उसकी पीड़ा, समाज से उपेक्षा और अकेलेपन की गहरी वेदना झलकती है। यह बयान सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि लाखों किन्नरों की वास्तविकता है, जिनकी ज़िंदगी जन्म से ही संघर्ष और तिरस्कार की दास्तां बन जाती है।

जन्म के साथ ही जब एक नवजात शिशु पहली सांस लेता है, तो घर में खुशियां गूंजती हैं। लेकिन यदि वह बच्चा किन्नर हो, तो वही घर मातम और अस्वीकार का केंद्र बन जाता है। किन्नरों का जीवन इस समाज की वह कड़वी हकीकत है, जो हर मोड़ पर उनके साथ अन्याय करता है।

जन्म और बचपन: परिवार से बेगानेपन की शुरुआत

किन्नरों के लिए सबसे बड़ा आघात तब होता है जब उनके अपने परिवार ही उन्हें स्वीकार नहीं करते। जन्म के बाद, जब यह पता चलता है कि बच्चा किन्नर है, तो समाज के दबाव और तथाकथित “इज्जत” की आड़ में उन्हें घर से दूर कर दिया जाता है। माता-पिता, जो जीवन का पहला सहारा होते हैं, वही सबसे पहले यह ठुकरा देते हैं। किन्नरों को लगता है जैसे उनका अस्तित्व ही एक गलती है।

समाज की परछाई में ज़िंदगी

समाज ने किन्नरों को हमेशा से हाशिये पर रखा है। उन्हें न इंसान समझा गया, न उनके अधिकार। भले ही भारतीय संविधान ने उन्हें “थर्ड जेंडर” का दर्जा देकर समान अधिकार दिए हों, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। शिक्षा, रोज़गार, और स्वास्थ्य सुविधाओं में उनके साथ भेदभाव आम है।

किन्नरों को जीविका के लिए दो ही रास्ते मिलते हैं – भीख मांगना या नाच-गाकर गुज़ारा करना। नौकरी करने की कोशिश करें, तो कार्यस्थलों पर बदसलूकी और उपेक्षा उन्हें वापस उन्हीं घुंघरुओं और ढोलक की ओर धकेल देती है, जिन्हें वे छोड़ना चाहते हैं।

सामाजिक उपेक्षा और स्वास्थ्य संकट

लोग किन्नरों से दूरी बनाकर रखते हैं, जैसे वे कोई “छूत की बीमारी” हों। यह मानसिकता न केवल उन्हें सामाजिक रूप से अलग-थलग करती है, बल्कि उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत पर भी गहरा असर डालती है। HIV और TB जैसी बीमारियों के साथ उनका नाम जोड़ना आम है, जबकि ये समस्याएं समाज के हर वर्ग में हैं।

[the_ad id=”122669″]

किन्नरों की वर्तमान स्थिति: अधिकार और वास्तविकता का अंतर

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले ने किन्नरों को पहचान और अधिकार दिए, लेकिन यह सिर्फ कागज़ों तक सीमित है। आज भी, किन्नरों को न तो रोज़गार में प्राथमिकता दी जाती है, न ही शिक्षा में।

सकारात्मक बदलाव

कुछ सामाजिक संगठन किन्नरों के लिए काम कर रहे हैं।

किन्नर समुदाय के कुछ लोग अब राजनीति और अन्य क्षेत्रों में कदम रख रहे हैं।

केरल, तमिलनाडु, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशें हो रही हैं।

जीवन की अनसुनी लड़ाई

किन्नर हर दिन खुद से लड़ते हैं – अपनी पहचान के लिए, सम्मान के लिए, और अपने अस्तित्व के लिए। वे भी सपने देखते हैं, जीना चाहते हैं, लेकिन यह समाज उन्हें बार-बार तोड़ता है।

समाज को आईना दिखाने की ज़रूरत

किन्नरों के साथ भेदभाव समाज की सोच का दोष है, न कि उनका। यह वक़्त है कि हम उनके साथ इंसानों जैसा व्यवहार करें। उनकी ताकत और संघर्ष को सराहें। उनकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए समाज, सरकार, और हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

“घुंघरू और ढोलक उनका मुकद्दर नहीं, यह समाज की बनाई जंजीरें हैं।”

समाज की कठोरता: इंसान या अभिशाप?

समाज किन्नरों को न तो समान अधिकार देता है और न ही उनकी गरिमा को स्वीकारता है। सड़क पर चलते हुए उनके साथ हंसी-ठिठोली की जाती है, उन्हें “मनोरंजन” का साधन समझा जाता है। लोग उनके पास खड़े होने से भी डरते हैं, मानो उनकी उपस्थिति से कुछ गलत हो जाएगा।

भीख मांगना, शादियों या बच्चों के जन्म पर नाच-गाना, या फिर देह व्यापार में धकेल दिया जाना – किन्नरों के पास अपनी जीविका के लिए यही विकल्प बचते हैं। वे पढ़ना चाहते हैं, काम करना चाहते हैं, सम्मान की ज़िंदगी जीना चाहते हैं, लेकिन समाज उन्हें यह मौका नहीं देता।

शिक्षा और रोजगार: मुख्यधारा से बाहर

कई किन्नर अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाने के लिए पढ़ाई करना चाहते हैं, लेकिन स्कूलों में उनका मज़ाक उड़ाया जाता है। यहां तक कि शिक्षण संस्थानों में उनका दाखिला लेना भी चुनौती बन जाता है।

रोजगार की बात करें, तो किन्नरों के लिए काम के अवसर लगभग न के बराबर हैं। यदि उन्हें कहीं नौकरी मिलती भी है, तो सहकर्मियों के अपमानजनक व्यवहार के कारण वे वहां टिक नहीं पाते।

मानसिक और शारीरिक संघर्ष

भेदभाव और अस्वीकार की इस आग में किन्नरों का मानसिक स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। अकेलापन, अवसाद, और आत्महत्या की प्रवृत्ति उनके बीच आम है। इसके साथ ही, स्वास्थ्य सेवाओं में भेदभाव और अज्ञानता के कारण वे गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

किन्नरों के अधिकार: कानून बनाम सच्चाई

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में किन्नरों को तीसरे लिंग का दर्जा देकर उनके अधिकारों की रक्षा की बात की थी। लेकिन इस निर्णय का असर समाज के व्यवहार में नहीं दिखता। कानून बनने के बाद भी किन्नरों को न तो सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाती है और न ही शिक्षा में कोई ठोस कदम उठाए गए हैं।

सकारात्मक प्रयास और उम्मीदें

हालांकि, समाज के कुछ हिस्से किन्नरों के प्रति अपनी सोच बदल रहे हैं। कुछ राज्यों में किन्नरों को स्वरोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

केरल में “ट्रांसजेंडर पॉलिसी” लागू की गई है।

कुछ किन्नर राजनीति में शामिल होकर अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में किन्नरों को कैफे, बेकरी, और अन्य व्यवसायों में रोजगार दिया जा रहा है।

समाज के नाम संदेश

किन्नरों की असल समस्या उनका लिंग नहीं, बल्कि समाज की सोच है। उनके साथ किया गया भेदभाव समाज के खोखलेपन का प्रमाण है। हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि किन्नर भी इंसान हैं, जिनके पास सपने, अधिकार, और आत्मसम्मान है।

“हमें इंसान समझो। हम भी आपकी तरह हंसना चाहते हैं, जीना चाहते हैं। हमारे जीवन को अभिशाप मत बनाओ।

[the_ad id=”121538″]

यह एक किन्नर की पुकार है, जिसे सुनना हर इंसान का कर्तव्य है।

जब तक समाज किन्नरों को उनकी गरिमा नहीं देगा, तब तक मानवता अधूरी रहेगी। उनके संघर्ष को समझना और उनका सम्मान करना ही सच्चे समाज की पहचान होगी।

302 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close