चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार रात को एक भीषण आग लगने की घटना में दस नवजात शिशुओं की मौत हो गई। इस हादसे ने पूरे इलाके में अफरा-तफरी मचा दी। मरने वाले दस नवजात में से तीन की पहचान अब तक नहीं हो पाई है, जबकि अन्य की पहचान करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस भयानक दुर्घटना के बाद अपने बच्चों की तलाश कर रहे कई माता-पिता बेहद परेशान और दुखी हैं।
परिजनों का दर्द: अपनों की तलाश में भटकते परिजन
झांसी के गरौठा के कृपा राम और उनकी बहन शील कुमारी अपने नवजात शिशु की तलाश में मेडिकल कॉलेज के चक्कर काट रहे हैं। कृपा राम बताते हैं कि दस दिन पहले उनके बेटे का जन्म हुआ था, लेकिन अब उसका कुछ अता-पता नहीं है। उन्हें अस्पताल प्रशासन ने निजी अस्पताल में जाकर बच्चे की तलाश करने को कहा, लेकिन वहां भी कोई सुराग नहीं मिला।
पंचना से आई संतोषी का भी हाल कुछ ऐसा ही है। उन्होंने बताया कि हादसे के बाद से वे अपने बच्चे की तलाश कर रही हैं। अस्पताल के कर्मचारियों ने आश्वासन दिया कि बच्चा मिल जाएगा, लेकिन अब तक कोई खबर नहीं है।
महोबा से आए कुलदीप और उनकी पत्नी नीलू भी अपने बच्चे की तलाश में काफी परेशान थे। कुलदीप ने हादसे के दौरान चार नवजातों की जान बचाई, लेकिन अपने ही बच्चे का पता नहीं लगा पाए। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि उनके बच्चे के चेहरे पर तिल है, जिससे उसकी पहचान हो सकी और परिवार ने राहत की सांस ली।
चश्मदीदों का बयान: बचाव कार्य में लोगों ने दिखाई बहादुरी
अस्पताल में आग लगते ही वहां मौजूद लोग और स्टाफ बच्चों को बचाने के लिए दौड़ पड़े। सिस्टर मेघा जेम्स ने बताया कि आग सबसे पहले ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर में लगी थी और तेजी से फैल गई। उस समय वार्ड में सिर्फ चार लोग ड्यूटी पर थे। उन्होंने और उनके साथियों ने बच्चों को बचाने की भरसक कोशिश की।
ललितपुर से आए मन्नू लाल ने आरोप लगाया कि आग बुझाने वाले सिलेंडर सही जगह पर नहीं लगे थे और किसी को उनका इस्तेमाल करना नहीं आता था। उन्होंने अपनी बच्ची को सुरक्षित निकालकर एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया।
वहीं, चश्मदीद ऋषभ यादव ने बताया कि आग लगने के बाद वहां अफरा-तफरी मच गई थी। लगभग 50 नवजातों को लेकर लोग इमरजेंसी की ओर भागे। कुछ परिवारों को अब तक नहीं पता कि उनकी संतान कहां है, जिससे उनका दुख और बढ़ गया है।
प्रशासन का पक्ष: हादसे की जाँच और सुधार की प्रक्रिया
झांसी के ज़िलाधिकारी अविनाश कुमार ने बताया कि घटना के दौरान कुल 49 नवजात भर्ती थे, जिनमें से 38 सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि प्रशासन हर बच्चे की पहचान कर परिजनों को सौंपने का प्रयास कर रहा है। सात नवजातों के शव परिजनों को सौंप दिए गए हैं, जबकि तीन की पहचान अब भी शेष है।
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल नरेंद्र सिंह सेंगर का कहना है कि आग बुझाने के उपकरण पूरी तरह कार्यशील थे और समय-समय पर उनकी जाँच की जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि घटना की वजह शॉर्ट सर्किट हो सकती है, लेकिन इसकी जांच जारी है।
सरकार का रुख: उच्च स्तरीय जाँच के आदेश
उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक घटना के बाद मौके पर पहुंचे और आश्वासन दिया कि हादसे की उच्च स्तरीय जांच कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि इस घटना की जांच तीन स्तरों पर होगी — स्वास्थ्य विभाग, पुलिस प्रशासन, और मजिस्ट्रेट द्वारा।
पाठक ने कहा, “हम हर संभव कोशिश करेंगे कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और प्रदेश की जनता के सामने सच्चाई लाई जाए।”
अस्पताल प्रशासन पर सवाल
कुछ परिजनों ने आरोप लगाया कि अस्पताल में आग बुझाने वाले सिलेंडर की मियाद पूरी हो चुकी थी और उन्हें बाद में लाकर रखा गया। हालांकि, मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने इन आरोपों को निराधार बताया और कहा कि फरवरी और जून में सभी उपकरणों की जांच की गई थी।
इस दर्दनाक हादसे ने न केवल कई परिवारों को गहरे सदमे में डाल दिया है बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना की पूरी सच्चाई सामने आने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि लापरवाही किस स्तर पर हुई और इसके लिए कौन जिम्मेदार है।