अंजनी कुमार त्रिपाठी की खास रिपोर्ट
हाल ही में भगोड़े इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह कहता दिख रहा है कि अल्लाह उन लड़कियों के साथ बलात्कार की अनुमति देता है जो इस्लामी ड्रेस कोड का पालन नहीं करती हैं। नाइक का यह बयान बलात्कारियों के लिए एक ढाल के रूप में काम कर रहा है और आतंकवादियों के नजरिए से मेल खाता है। यह बयान न केवल महिलाओं के प्रति अत्यधिक हिंसा को उकसाने वाला है बल्कि यह धर्म का घृणित रूप से उपयोग करते हुए एक वर्ग विशेष को लक्षित करने का प्रयास भी करता है।
इस्लामिक स्टेट (ISIS) से बची यजीदी लड़कियों ने खुलासा किया है कि आतंकवादी उनके साथ बलात्कार करते समय दावा करते थे कि उनका बलात्कार इस्लाम के अनुसार सही है क्योंकि वे गैर-मुस्लिम हैं। जाकिर नाइक के हालिया बयान से यह साफ प्रतीत होता है कि वह ‘इस्लामिक स्टेट’ के आतंकियों की ही भाषा बोल रहा है।
यह तर्क न केवल बेतुका है बल्कि समाज में नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने वाला है। सवाल उठता है कि यदि कोई लड़की मुस्लिम नहीं है, तो वह इस्लामी ड्रेस कोड का पालन क्यों करेगी? और यहां तक कि कई मुस्लिम लड़कियां भी बुरका और हिजाब नहीं पहनतीं।
तो क्या उनके खिलाफ होने वाली हिंसा को सही ठहराया जा सकता है? जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय बिन अल-हुसैन जैसे इस्लामी नेताओं के परिवार में भी महिलाएं बिना हिजाब और बुर्के के रहती हैं, तो क्या इसका मतलब है कि उनके साथ बलात्कार को जायज ठहराया जा सकता है?
जाकिर नाइक का बयान धर्म के नाम पर हिंसा और अपराध को वैध ठहराने की कोशिश करता है, जो निंदनीय है।
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जाकिर नाइक ने भारत में अपने ‘पीस टीवी’ चैनल के माध्यम से सालों तक युवाओं के बीच इस प्रकार की कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार किया। कई गिरफ्तार आतंकियों ने कबूल किया है कि वे नाइक के वीडियो देखकर आतंकवादी बने। भारत सरकार ने उस पर आतंकवाद भड़काने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया, जिसके बाद वह भारत से फरार हो गया।
हाल ही में एक पाकिस्तानी यूट्यूबर के साथ इंटरव्यू में नाइक ने कहा कि वह मोदी सरकार के रहते भारत वापस नहीं आएगा। यह बात स्पष्ट है कि उसे कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा ‘शांतिदूत’ कहा गया है, जो उसकी कट्टर विचारधारा को लेकर गंभीर प्रश्न उठाता है।
विडंबना यह है कि न केवल जाकिर नाइक बल्कि मिस्र की अल-अजहर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सुआद सालेह भी गैर-मुस्लिम महिलाओं के बलात्कार को जायज ठहरा चुकी हैं। उनका बयान जाकिर नाइक से भी अधिक चरमपंथी था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अल्लाह गैर-मुस्लिम लड़कियों के बलात्कार की अनुमति देते हैं। यह वह मानसिकता है जो भारत पर इस्लामी आक्रमणों के समय से देखी जा रही है। महमूद ग़ज़नवी और मोहम्मद गौरी जैसे आक्रांताओं द्वारा भारत की महिलाओं के खिलाफ की गई हिंसा आज भी याद की जाती है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में गैर-मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और बलात्कार आज भी सामान्य बात है। श्रद्धा वॉकर के 35 टुकड़े करने वाला आफताब भी दावा कर चुका है कि उसे फांसी हो जाए तो भी गम नहीं, क्योंकि उसे जन्नत में हूरें मिलेंगी। यह मानसिकता समाज के लिए अत्यधिक खतरनाक है और इसका जहर फैलाना अपराधियों और कट्टरपंथियों को और अधिक ताकत देता है।
कानून बनाने और सुरक्षा उपाय करने के बावजूद, जब तक कट्टरपंथी विचारधारा को जड़ से नहीं खत्म किया जाता, तब तक ऐसी हिंसा और अपराधों को रोक पाना असंभव है। जाकिर नाइक जैसे उपदेशकों द्वारा फैलाए जा रहे जहर का प्रभाव गंभीर है और भारत सरकार को इस मुद्दे पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
समाज को भी अपनी बहन-बेटियों की सुरक्षा के लिए सजग होना होगा और सरकार से इस मुद्दे पर जवाबदेही मांगनी होगी। अन्यथा, देश में केवल कैंडल मार्च निकालने की घटनाएं ही देखने को मिलेंगी, जबकि जमीनी स्तर पर समस्या का समाधान नहीं होगा।
जाकिर नाइक और उनके जैसे उपदेशक धर्म के नाम पर समाज में नफरत और हिंसा फैला रहे हैं, जिसका समय रहते समाधान जरूरी है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."