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गोरखपुर

एम्स के डायरेक्टरों को ले डूबा पुत्रमोह, बेटे को डॉक्टर का रूतबा दिलाने में खुद निपट गए

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संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट

गोरखपुर। प्रो. जीके पाल पर आरोप है कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पटना से पहले बेटे का ओबीसी प्रमाणपत्र बनवाते हुए नॉन क्रीमी लेयर का लाभ लिया। 

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) खुला तो 10 करोड़ से अधिक आबादी को बेहतर इलाज की उम्मीद जगी थी। लेकिन एम्स भ्रष्टाचार का केन्द्र बन गया है।

पिछले एक साल के अंदर दो निदेशक पुत्र मोह में निपट गए। पहले पूर्व निदेशक डॉ.सुरेखा किशोर दो बेटों के मोह में फंसी। अब पटना एम्स के साथ गोरखपुर एम्स का कार्यभार देख रहे डॉ.जीके पाल को बेटे के फर्जी प्रमाण पत्र के आरोप में हटा दिया गया। 

एम्स की पूर्व निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर ने अपने दो बेटों की नियुक्ति एम्स में करवा दी थी। उन्होंने अपने बेटे डॉ. शिखर किशोर को माइक्रोबायोलॉजी और डॉ. शिवल किशोर वर्मा को रेडियोथेरेपी विभाग में जूनियर रेजीडेंट के पद पर तैनाती देकर चर्चा में आई थी। शिकायत यह भी कि बेटों की बायोमीट्रिक उपस्थिति दूसरे लोग दर्ज करते थे।

इसके बाद तीन साल के कार्यकाल के बीच में ही 18 महीने के बाद ही हटा दिया गया। कार्यकारी निदेशक प्रो. डॉ. जीके पाल को भी पुत्र मोह में हटना पड़ा है।

प्रो. जीके पाल पर आरोप है कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पटना से पहले बेटे का ओबीसी प्रमाणपत्र बनवाते हुए नॉन क्रीमी लेयर का लाभ लिया। इसी प्रमाणपत्र के आधार पर बेटे ओरो प्रकाश पाल का पीजी के माइक्रोबायोलॉजी पाठ्यक्रम में प्रवेश दिलाया। हालांकि मामला उछलने के बाद बेटे ने इस्तीफा दे दिया था। एम्स के कार्यकारी निदेशक पद से अचानक हटाए जाने के बाद प्रो.जीके पाल के खिलाफ और शिकायतों का पुलिंदा तैयार होना शुरू हो गया है। एम्स में उनके समय में हुई खरीदारी से लेकर एम्स में आए सामानों की भी शिकायतें होंगी। इसके लिए कुछ डॉक्टरों ने मंत्रणा तैयार कर ली है। माना जा रहा है कि यह शिकायत दो से तीन दिनों के अंदर स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर एम्स प्रशासन के पास पहुंच सकती हैं। 

तीन सदस्यीय कमेटी कर रही थी जांच

डॉ.पाल के मामले की शिकायत एम्स के सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. गौरव गुप्ता ने की। शिकायत के बाद स्वास्थ्य मंत्री के आदेश पर तीन सदस्यीय केंद्रीय कमेटी बनाई गई, जिसकी जांच अभी चल ही रही है। उसकी रिपोर्ट तीन दिन बाद आ जाएगी। इससे पहले ही उन्हें 27 सितंबर को हटा दिया गया। प्रो. डॉ.जीके पाल ने स्वास्थ्य मंत्रालय को बेटे को प्रवेश दिलाने के बाद इसकी सूचना स्वास्थ्य मंत्रालय को दी। वहां से अनुमति के बाद ही उन्हें एम्स में प्रवेश दिलाना होता है।

आरोप है कि बीते 27 अप्रैल को एम्स पटना के कार्यकारी निदेशक के आवास के पते से प्रमाणपत्र बनवाया। इसमें अपनी और पत्नी की सालाना आय आठ लाख रुपये बताई। जबकि, दोनों का पैकेज 80 लाख रुपये से ज्यादा है। मामले की शिकायत के बाद बेटे ने पीजी की सीट चार दिनों के अंदर ही छोड़ दी।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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