जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
आजमगढ़ का नामकरण और उसका ऐतिहासिक महत्व एक दिलचस्प कथा से जुड़ा हुआ है।
मूलतः, आजमगढ़ का नाम आजमशाह के नाम पर पड़ा, जो इस क्षेत्र के संस्थापक माने जाते हैं। यह इलाका अवध क्षेत्र का हिस्सा था और लंबे समय तक कोशल महाजनपद का भाग था।
इतिहास की गहराई में जाएं तो पता चलता है कि आजमगढ़ की स्थापना 17वीं सदी के आसपास हुई थी। स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस क्षेत्र पर पहले गौतम राजपूत राजा विक्रमजीत का शासन था।
विक्रमजीत की पत्नी मुसलमान थीं और उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया। विक्रमजीत के दो बेटे हुए—आजम और अजमत।
आजम ने इस क्षेत्र का नाम आजमगढ़ रखा, जबकि अजमत ने अजमतगढ़ बसाया, जो आज भी एक स्थान के रूप में मौजूद है।
पौराणिक काल में आजमगढ़ को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र माना जाता है। यहाँ पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था, जहाँ रामायण लिखा गया था।
तमसा नदी, जो आजमगढ़ के पास बहती है, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। यही वह नदी है जिसके तट पर महर्षि वाल्मीकि ने आश्रम स्थापित किया और रामायण की रचना की।
कई ऋषियों की तपोस्थली रही
इसके अलावा आजमगढ़ कई ऋषियों की तपोस्थली भी रही। यहां दुर्वासा ऋषि का आश्रम है। जहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन बड़े मेले का आयोजन होता है।
इसके अलावा यहां पास में ही दत्तात्रेय का आश्रम, चंद्रमा ऋषि का आश्रम, बाबा मुसई दास की तपस्थली भी है। आजमगढ़ को रामायण काल के कौशल राज का हिस्सा भी बताया जाता है।
इस जिले में एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र (Lok Sabha constituency) और पांच विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। (Assembly constituency)
2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक आजमगढ़ की जनसंख्या (Population) लगभग 46 लाख है और यहां प्रति वर्ग किलोमीटर 1,138 लोग रहते हैं (Density). यहां का लिंग अनुपात (Sex Ratio) 1,019 है। इसकी 70.93 फीसदी जनसंख्या साक्षर है। इनमें पुरुष 81.34 फीसदी और महिलाओं की साक्षरता दर 60.91 फीसदी है ( Azamgarh literacy)।
आजमगढ़ का इतिहास ब्रिटिश शासन के दौरान भी महत्वपूर्ण रहा। 1857 की स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र ने सक्रिय भाग लिया और ब्रिटिश सेना के साथ संघर्ष किया। 1832 में आजमगढ़ को एक जिला बनाया गया और अंग्रेजों ने यहाँ की भौगोलिक स्थिति और लोगों की वीरता को गंभीरता से लिया।
समकालीन परिदृश्य में, आजमगढ़ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। आजमगढ़ का ऐतिहासिक गौरव, महापुरुषों की उपस्थिति और पौराणिक महत्व धीरे-धीरे अवहेलना का शिकार हो रहे हैं।
इसकी पहचान को आतंकवाद, जातिवादी राजनीति और अपराधों से जोड़ा जा रहा है, जो कि इसके ऐतिहासिक महत्व के विपरीत है।
अंततः, आजमगढ़ के पौराणिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को पहचानना और इसे संरक्षण प्रदान करना आवश्यक है ताकि इसकी गौरवमयी धरोहर की रक्षा की जा सके।
यह ज़िले का मुख्यालय भी है और तमसा नदी के तट पर बसा हुआ है। जिले में प्राचीन शिव मंदिर है आजमगढ में एक महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय है।
आजमगढ़ एक यादव बाहुल्य इलाका है , मुगल शासन काल में कुछ राजपूतों ने धर्म परिवर्तन कर लिए,पर बाकी अपने धर्म पे टिके रहे और मुगलों का मुकाबला भी किया । राजपूतों की भी अच्छी आबादी है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."