अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के करवरिया परिवार का अवैध शराब और रेत खनन का धंधा एक लंबे समय से चला आ रहा है। इस धंधे की शुरुआत कुख्यात माफिया भूक्कल महाराज के पिता, जगत नारायण करवरिया ने की थी।
जगत नारायण ने राजनीति में भी अपने धंधे के लिए समर्थन प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। 70 के दशक में उसने अपने बेटे वशिष्ठ नारायण करवरिया, जिसे भूक्कल महाराज के नाम से जाना जाता है, को आगे बढ़ाया।
भूक्कल महाराज ने अपने पिता की अपेक्षा अधिक चालाकी और कुशलता के साथ धंधे को बढ़ाया और राजनीति में भी अपनी पहचान बनाई। हालांकि, चुनावी राजनीति में उसे सफलता नहीं मिली।
भूक्कल महाराज के बड़े बेटे सूरजभान करवरिया और छोटे बेटे कपिल मुनि करवरिया भी धंधे में शामिल थे, लेकिन वे कुछ खास नहीं कर पाए। इसके विपरीत, मंझला बेटा उदयभान करवरिया पढ़ाई में होशियार था और उसे मारपीट के धंधे में कोई रुचि नहीं थी।
उसने इंटरमीडिएट की पढ़ाई अच्छे अंकों से पूरी की और इलाहाबाद के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आईईआरटी में दाखिला लिया। यहाँ से उसने इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की और अपनी कक्षा में तीसरे स्थान पर रहा।
उदयभान को दिल्ली की एक प्रतिष्ठित कंपनी से अच्छे पैकेज पर नौकरी का ऑफर मिला था, और उसने अपने खानदान के धंधे को छोड़कर दिल्ली जाने का निर्णय किया। लेकिन, जब उसके पिता भूक्कल महाराज की हत्या की खबर आई और यह पता चला कि अतीक अहमद ने उसे मारा है, तो उदयभान का जीवन बदल गया।
उसने नौकरी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और अतीक अहमद को सबक सिखाने का फैसला किया। इसके बाद, उसने पुश्तैनी धंधे को फिर से शुरू किया और राजनीति में भी कदम रखा। 1996 में वह कौशाम्बी में जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष चुना गया।
अध्यक्ष रहते हुए, उदयभान करवरिया मुरली मनोहर जोशी के संपर्क में आया और उनकी संगठन क्षमता के कारण विशेष महत्व प्राप्त किया। वह जनता के बीच अच्छा प्रदर्शन करने की कोशिश करता रहा, लेकिन रेत खनन, अवैध शराब और रियल एस्टेट जैसे धंधे भी समानांतर रूप से जारी रखे। जब प्रतिद्वंद्विता बढ़ी, तो उसने सपा विधायक जवाहर यादव की हत्या कर दी।
राजनीति में उसकी उपस्थिति के कारण 2012 में हुए चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद, उसने अपनी पत्नी नीलम करवरिया को 2017 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतारा और खुद जेल में रहते हुए चुनाव की रणनीति बनाई। नीलम चुनाव जीत गई, लेकिन 2019 में उदयभान को सजा हो गई। 2022 के चुनाव में, उदयभान की पत्नी नीलम हार गई, जिसके कारण उदयभान की राजनीति और धंधे पर असर पड़ा।
साल 2007 में, उदयभान ने मायावती से सेटिंग कर अपने बड़े भाई सूरजभान करवरिया को बीएसपी से एमएलसी बनवाया और छोटे भाई कपिल मुनि करवरिया को फूलपुर लोकसभा सीट से टिकट दिलवाया। इस चुनाव में कपिल ने सपा के उम्मीदवार को हराया और अतीक अहमद को पहली बार राजनीतिक शिकस्त दी।
इसके बाद, इलाहाबाद में उदयभान करवरिया की हनक इतनी बढ़ गई कि अतीक अहमद को किसी चुनाव में सफलता नहीं मिली और दोनों के बीच रेत खनन और रियल एस्टेट जैसे अपराध के क्षेत्र में भी टकराव होने लगा।
Author: samachar
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