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सरकार से दूर, संगठन के करीब आकर कौन सी चाल चल रहे हैं केशव प्रसाद मौर्य? 

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद बीजेपी में सियासी उथल-पुथल बढ़ गई है। पार्टी के भीतर संगठन और सरकार के बीच चल रही विवाद की स्थिति ने हाल ही में और ज्यादा तूल पकड़ लिया है। 

बीजेपी के प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में संगठन बनाम सरकार की लड़ाई की स्थिति खुलकर सामने आ गई है। लखनऊ स्थित बीजेपी कार्यालय में हाल ही में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें दोनों डिप्टी सीएम—केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक—पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने शिरकत की। इस बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल नहीं हो सके, क्योंकि उनके पहले से आजमगढ़ और वाराणसी में अन्य बैठकें निर्धारित थीं।

केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक का बीजेपी कार्यालय में मौजूद रहना और मुख्यमंत्री का अनुपस्थित रहना सियासी अटकलों को जन्म दे रहा है। केशव मौर्य लगातार संगठन के साथ तालमेल बनाए हुए हैं और उन्होंने कई बार यह बयान दिया है कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। चुनावी नतीजों के बाद, उन्होंने कैबिनेट की बैठकों से दूरी बना ली है लेकिन पार्टी के संगठन के साथ अपने रिश्ते मजबूत बनाए रखे हैं। 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अनुपस्थिति के चलते, सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का लखनऊ में केशव मौर्य से मुलाकात करना भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना है। यह मुलाकात बीजेपी के अंदर चल रही खींचतान और लामबंदी के संदर्भ में देखी जा रही है।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी की सीटें 62 से घटकर 33 पर पहुंच गईं। इस हार के बाद पार्टी में निरंतर बैठकों का दौर जारी है। सीएम योगी ने हार की वजह अति आत्मविश्वास को बताया, जबकि केशव मौर्य ने संगठन की ताकत को प्रमुख बताया। इसके बाद से पार्टी में खींचतान का माहौल है।

केशव मौर्य ने 14 जुलाई को लखनऊ में हुई बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में संगठन की अहमियत पर जोर दिया और सोशल मीडिया पर भी इसे साझा किया। उन्होंने लिखा कि संगठन सरकार से बड़ा है और हमेशा रहेगा। इसके अलावा, उन्होंने सरकार से सवाल किए कि संविदा और आउटसोर्सिंग की भर्तियों में आरक्षण के नियमों का पालन कितना हुआ है।

लोकसभा चुनाव में हार के बाद सीएम योगी और केशव मौर्य के बीच की दूरियां बढ़ गई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह दूरी सरकार और संगठन के बीच की खींचतान को दर्शाती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत के बावजूद, सीएम योगी को कुर्सी मिली और केशव मौर्य को डिप्टी सीएम का पद। इसके बाद से उनके बीच सियासी टकराव की चर्चाएं होती रही हैं।

2022 में सिराथू से हार के बावजूद केशव को डिप्टी सीएम का पद मिला, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद इस पद पर उनकी स्थिति पर सवाल उठने लगे हैं। इस बीच, केशव मौर्य संगठन के साथ अपने रिश्ते को बनाए रखते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के संपर्क में बने हुए हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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