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आपदा

…तो इसलिए भोले बाबा का नाम नहीं है एफआईआर में…. राजनीतिक प्रभाव का भी पूरा असर संभावित है….

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाथरस हादसे के दो दिन बाद गुरुवार को दो महिलाओं सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी उस समिति के सदस्यों की हुई जिसने सूरज पाल जाटव उर्फ़ ‘भोले बाबा’ के सत्संग का आयोजन किया था।

दो जुलाई को हाथरस के सिकन्द्राराऊ इलाके में आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत हो गई थी। पुलिस ने मुख्य अभियुक्त और कार्यक्रम के आयोजक देवप्रकाश मधुकर की जानकारी देने वाले को एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया है। 

हालांकि, एफआईआर में कहीं भी ‘भोले बाबा’ का उल्लेख नहीं है, और पुलिस ने उनसे अभी तक कोई पूछताछ नहीं की है। गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों ने अलीगढ़ के आईजी शलभ माथुर से कई बार पूछा कि ‘भोले बाबा’ का नाम एफआईआर में क्यों नहीं है और उन्हें अभियुक्त क्यों नहीं बनाया गया है।

अलीगढ़ के आईजी शलभ माथुर

शलभ माथुर ने जवाब में कहा कि भगदड़ के समय आयोजनकर्ता मौके से भाग गए थे और आयोजन की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की थी। इस कारण से उन्हीं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि फिलहाल ‘भोले बाबा’ से पूछताछ नहीं हुई है, लेकिन अगर विवेचना में उनका कोई रोल सामने आता है तो जांच की जाएगी। 

शलभ माथुर ने कहा, “अगर जरूरत पड़ी तो पूछताछ की जाएगी। अभी कहना जल्दबाजी होगी कि ‘बाबा’ का इसमें कोई रोल है या नहीं। एफआईआर में उनकी जिम्मेदारी फ्रेम करते हुए आयोजकों का नाम डाला गया है।”

पुलिस ने साफ किया कि हादसे के लिए आयोजकों और सेवादारों को जिम्मेदार ठहराया गया है और ‘भोले बाबा’ की भूमिका पर टिप्पणी करने से बचते हुए केवल यह कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर उनसे भी पूछताछ की जाएगी।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाथरस हादसे के बाद दो महिलाओं सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया है। यह हादसा दो जुलाई को हाथरस के सिकन्द्राराऊ इलाके में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान हुआ था, जिसमें भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत हो गई थी। इस कार्यक्रम का आयोजन एक समिति द्वारा किया गया था, जिसके मुखिया वेद प्रकाश मधुकर हैं। फिलहाल, वे अपने परिवार के साथ फरार हैं।

अलीगढ़ के आईजी शलभ माथुर ने बताया कि गिरफ्तार किए गए छह लोग आयोजन समिति के सदस्य हैं और ‘सेवादार’ के रूप में काम करते थे। गिरफ्तार लोगों में चार पुरुष और दो महिलाएं शामिल हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं:

  1. राम लड़ैते पुत्र रहबारी सिंह यादव, मैनपुरी
  2. उपेंद्र सिंह यादव पुत्र रामेश्वर सिंह, फिरोजाबाद
  3. मेघसिंह पुत्र हुकुम सिंह, हाथरस
  4. मंजू यादव पत्नी सुशील कुमार, हाथरस
  5. मुकेश कुमार पुत्र मोहर सिंह, हाथरस
  6. मंजू देवी पत्नी किशन कुमार यादव, हाथरस

शलभ माथुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि ये सभी लोग पहले भी कई आयोजनों में हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने कहा कि आयोजकों और उनकी सत्संग समिति की जिम्मेदारी थी कि भीड़ को नियंत्रित करें, चंदा जमा करें, बेरिकेडिंग करें, श्रद्धालुओं के लिए पंडाल की व्यवस्था करें, वाहनों की पार्किंग, कार्यक्रम स्थल पर बिजली, जेनरेटर और सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाएं।

पुलिस ने बताया कि सेवादारों ने ‘भोले बाबा’ के चरणरज लेने के लिए भीड़ को अनियंत्रित छोड़ दिया था, जिसके कारण महिलाएं और बच्चे एक दूसरे के ऊपर गिर गए और बाद में सेवादार वहां से फरार हो गए।

जिंदगी ले गई और यादों में चप्पल छोड़ गई

2007 से 2009 तक उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे विक्रम सिंह ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि हाथरस हादसे की जड़ में बाबा हैं। उन्होंने कहा, “एफआईआर घटना की सूचना होती है और विवेचना के दौरान इसमें और भी नाम शामिल हो सकते हैं, लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि सारी मुसीबत, फसाद और अपराध की जड़ बाबा हैं और एफआईआर में उनका नाम सबसे पहले होना चाहिए था।”

विक्रम सिंह का मानना है कि बाबा का नाम एफआईआर में ना देना, दिखाता है कि उनके प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया गया है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि पुलिस प्रशासन ने इससे पहले कुंभ, अर्धकुंभ, चुनाव, कांवड़ और वीआईपी ड्यूटी संभाली है, और कहीं भी ऐसी दुर्घटना नहीं हुई। पुलिस को इस कार्यक्रम में भीड़ की संख्या और अन्य व्यवस्थाओं का पता होना चाहिए था और उसे सही तरीके से समन्वय करना चाहिए था।

विक्रम सिंह ने कहा कि हादसे के लिए सिर्फ आयोजकों और सेवादारों को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है, इसमें पुलिस की भी बड़ी भूमिका है। पुलिस को पहले से ही इस तरह की घटनाओं की जानकारी और नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में ‘भोले बाबा’ के लाखों भक्त हैं और उनका दलित समाज में काफी प्रभाव है। स्थानीय पत्रकार वीएन शर्मा बताते हैं कि ‘भोले बाबा’ खुद जाटव समाज से आते हैं और उनके भक्तों में 80 प्रतिशत लोग इसी समाज से हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। इसके अलावा, ओबीसी वर्ग से भी कई लोग उनसे जुड़े हुए हैं।

वीएन शर्मा का कहना है कि उत्तर प्रदेश के 20 से अधिक जिलों में ‘भोले बाबा’ का नेटवर्क फैला हुआ है और लाखों दलित लोग उनसे जुड़े हुए हैं। ‘भोले बाबा’ खुद को हरि यानी विष्णु का अवतार मानते हैं। शर्मा ने बताया कि उन्होंने ‘भोले बाबा’ के 20 से अधिक कार्यक्रम देखे हैं, जिनमें हर कार्यक्रम में एक लाख से अधिक लोग जुटते हैं, और इनमें अधिकांश लोग दलित होते हैं।

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला कहते हैं कि ‘भोले बाबा’ का यह नेटवर्क हर पार्टी के लिए महत्वपूर्ण वोट बैंक है। शुक्ला का कहना है कि हर पार्टी पीड़ितों की बात तो कर रही है, लेकिन कोई भी ‘बाबा’ का नाम लेने को तैयार नहीं है, क्योंकि कोई भी अपना वोट बैंक खराब नहीं करना चाहता। ‘भोले बाबा’ का दलितों के बीच गहरा प्रभाव है और उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी करीब बीस प्रतिशत है।

हालांकि, वीएन शर्मा कहते हैं कि उन्होंने चुनावों में कभी नहीं देखा कि ‘भोले बाबा’ ने किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन किया हो। हालांकि, हाल ही में हाथरस हादसे के बाद सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें अखिलेश यादव ‘भोले बाबा’ के एक कार्यक्रम में मौजूद थे।

इस राजनीतिक दबाव के कारण ‘भोले बाबा’ का नाम एफआईआर में शामिल नहीं किया गया है। राजनीतिक पार्टियां बाबा का नाम लेकर अपने वोट बैंक को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहतीं, क्योंकि बाबा का दलित और ओबीसी समाज में बहुत प्रभाव है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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