चित्रकूट जिले में गौशालाओं की बदहाल स्थिति प्रशासन की लापरवाही को उजागर करती है। गौवंशों के लिए चारा, पानी और शेड की भारी कमी है, जबकि भूसे के भुगतान में भी गड़बड़ी हो रही है। क्या प्रशासन इस समस्या का समाधान करेगा? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
जिले में अन्ना प्रथा पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से प्रत्येक ग्राम पंचायत में गौशालाओं का निर्माण कराया गया था। हालांकि, प्रशासन की बेरुखी और लापरवाही के चलते अब इन गौशालाओं की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। जिले के बरगढ़ और मानिकपुर क्षेत्र की गौशालाओं में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी देखी जा रही है। गौवंशों को उचित चारा और पानी नहीं मिल पा रहा, जिससे उनका भरण-पोषण मुश्किल होता जा रहा है।
गौशालाओं में अव्यवस्थाओं का अंबार
मऊ ब्लॉक की कोटवा माफी गौशाला की स्थिति चिंताजनक
मऊ ब्लॉक की ग्राम पंचायत कोटवा माफी में स्थित गौशाला में लगभग 200 गौवंश हैं। लेकिन, यहां टीन शेड की बेहद कमी है, जिससे सभी गौवंशों को पर्याप्त छाया नहीं मिल पाती। ग्राम प्रधान एवं प्रधान संघ अध्यक्ष प्रभात कुमार पांडेय ने बताया कि गौशाला में चरही की संख्या भी बेहद कम है। जब चारा डाला जाता है, तो बड़े गौवंश छोटे गौवंशों को मारते हैं, जिससे उनका उचित भरण-पोषण नहीं हो पा रहा है।
इसके अलावा, गौशाला में चारे के भंडारण की भी गंभीर समस्या है। यहां मात्र 200 कुंतल भूसा रखने की व्यवस्था है, जबकि कम से कम 1000 कुंतल भूसे की जरूरत पड़ती है। यदि प्रशासन अतिरिक्त टीन शेड और चरही का निर्माण करा दे, तो गौशाला का संचालन बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
ग्राम पंचायत कोनिया की गौशाला – पेयजल और छाया का संकट
ग्राम पंचायत कोनिया की गौशाला की स्थिति और भी दयनीय है। पेयजल की समुचित व्यवस्था न होने के कारण गौवंशों को पानी के लिए तरसना पड़ता है। जब सप्लाई का पानी आता है, तभी गौवंशों को पर्याप्त पानी मिल पाता है, लेकिन यदि दो-तीन दिन तक पानी की आपूर्ति बंद रहती है, तो स्थिति बेहद खराब हो जाती है।
ग्राम प्रधान विकास सिंह के अनुसार, गौशाला में बिजली की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कई बार शिकायतें दर्ज कराई गईं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यहां लगभग 250 गौवंश हैं, लेकिन उनके लिए पर्याप्त टीन शेड भी उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा, गौशाला के आसपास कोई पेड़-पौधे न होने के कारण भीषण गर्मी में गौवंशों को सीधी धूप में रहना पड़ता है, जिससे उनकी जान पर बन आती है।
भूसे के भुगतान में गड़बड़ी, ग्राम प्रधानों को हो रही परेशानी
झांसी-मिर्जापुर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बसे कोनिया क्षेत्र में गौवंशों की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए दो गौशालाओं का संचालन शुरू किया गया था। शुरुआत में दोनों गौशालाएं बेहतर तरीके से चलाई गईं, लेकिन अब प्रशासन ने भूसे के भुगतान में भारी कटौती कर दी है।
ग्राम प्रधान के अनुसार, दिसंबर 2025 में गौशालाओं में लगभग साढ़े तीन लाख रुपए की लागत से भूसा खरीदा गया था। हालांकि, प्रशासन ने भुगतान में 70% तक कटौती कर दी, जिससे गौवंशों को सही मात्रा में चारा नहीं मिल पा रहा है।
सरकारी धन का गबन, गौशालाओं की स्थिति बेहद खराब
सरकार द्वारा गौशालाओं के संचालन के लिए लाखों रुपए जारी किए जाते हैं, लेकिन कई जगह यह धनराशि सही उपयोग में नहीं लाई जा रही। फर्जी बिलों के जरिए भुगतान किया जा रहा है, जबकि गौशालाओं में चारा, भूसा और चरवाहों के वेतन का भुगतान नहीं हो रहा। इस कारण न सिर्फ गौवंशों की स्थिति दयनीय होती जा रही है, बल्कि चरवाहों को भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
क्या प्रशासन करेगा ठोस कार्रवाई?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन इन गौशालाओं की दुर्दशा पर ध्यान देगा और भूसे के भुगतान में कटौती की जांच कर उचित कदम उठाएगा? या फिर जिम्मेदार अधिकारी ऐसे ही ग्राम प्रधानों को परेशान करते रहेंगे?
गौशालाओं की बदहाल स्थिति में सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। प्रशासन को चाहिए कि वह भूसे के लंबित भुगतान को पूरा करे, टीन शेड और चरही का निर्माण कराए, बिजली और पानी की व्यवस्था सुनिश्चित करे, ताकि गौवंशों को बुनियादी सुविधाएं मिल सकें। यदि इस ओर जल्द ध्यान नहीं दिया गया, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
➡️संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की