सोनू करवरिया की रिपोर्ट
नरैनी(बांदा): जिले के नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पंचायत पुकारी में संचालित अस्थायी गौशाला से लगभग 150 गौवंशों के गायब होने का मामला सामने आया है। इस गौशाला की देखरेख करने वाले ज़िम्मेदारों द्वारा जिला पशु चिकित्सा अधिकारी को दिए गए जवाब में 335 गौवंशों के संरक्षित होने का दावा किया गया है, लेकिन कई तथ्य इस दावे को संदेहास्पद बनाते हैं।
ग्राम प्रधान के जवाबों में विरोधाभास
ग्राम प्रधान ने अपनी सफाई में बताया कि 50 गौवंश ग्रामीणों को दे दिए गए थे, लेकिन यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी सरकारी अनुमति और औपचारिक प्रक्रिया के की गई। इसके अलावा, प्रधान ने यह भी कहा कि गौशाला का दरवाजा खुला रह जाने से कई गौवंश भाग गए। दिलचस्प बात यह है कि अधिकारियों के निरीक्षण की जिन तिथियों का जिक्र प्रधान द्वारा किया गया है, उन्हीं तिथियों को गौवंशों को हांककर गौशाला लाने की तिथियों के रूप में भी बताया गया है। यह गंभीर संदेह पैदा करता है।
विश्व हिंदू परिषद के आरोप और प्रशासन की कार्रवाई
गौशाला से गायब हुए गौवंशों के मामले में विश्व हिंदू परिषद गोरक्षा प्रकोष्ठ ने गंभीर आरोप लगाए हैं। संगठन का कहना है कि गौवंशों की तस्करी की जा रही है। इन आरोपों के बाद मुख्य विकास अधिकारी (CDO) ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए ग्राम प्रधान और सचिव को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा था।
22 जनवरी को ग्राम प्रधान और सचिव ने अपना जवाब सौंपा, जिसे आगे जिला मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी को भेज दिया गया। जवाब में यह स्वीकार किया गया कि ग्राम प्रधान ने अनभिज्ञता के कारण बिना प्रक्रिया पूरी किए 50 गौवंशों को ग्रामीणों को सौंप दिया। इस पर उपमुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (नरैनी) ने नाराजगी व्यक्त करते हुए गायों को वापस लाने का निर्देश भी दिया था।
अधिकारियों के निरीक्षण और तथ्यों में गड़बड़ी
उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने अपना वीडियो जारी कर गौशाला का दो बार निरीक्षण किए जाने का दावा किया था। उनके अनुसार, निरीक्षण के दौरान गौशाला में 190 गौवंश पाए गए। लेकिन उनके द्वारा दी गई रिपोर्ट में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया कि ग्राम प्रधान ने 50 गौवंश ग्रामीणों को दिए हैं।
इसके अलावा, गौशाला के केयरटेकरों की लापरवाही से दरवाजा खुला रह जाने और गौवंशों के भाग जाने का दावा किया गया है। अधिकारियों को भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि गौवंशों की तलाश कर अलग-अलग तिथियों में उन्हें हांककर गौशाला वापस लाया गया, और अब गौशाला में 335 गौवंश संरक्षित हैं।
प्रशासनिक अधिकारियों को गुमराह करने का प्रयास?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि CDO, पशु चिकित्सा अधिकारी, खंड विकास अधिकारी और तहसीलदार द्वारा की गई जांच के दौरान जिन तिथियों में निरीक्षण हुआ, उन्हीं तिथियों को गौवंशों को हांककर लाने की तिथियां बताया गया। यह तथ्य गंभीर संदेह पैदा करता है।
ग्राम प्रधान पर यह आरोप लग रहे हैं कि वे प्रशासनिक अधिकारियों को गुमराह कर अपने अमानवीय कार्यों को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। यह मामला न केवल गौवंशों की सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अनदेखी का भी एक गंभीर उदाहरण है। अब देखना होगा कि जिला प्रशासन इस मामले में क्या ठोस कदम उठाता है और गौवंशों की गुमशुदगी की सच्चाई सामने आती है या नहीं।