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आज का मुद्दा

गली-गली पत्रकार, हर मुहल्ले संपादक….जो चाहे बोले, वरिष्ठ पत्रकार…. गजब हाल में है ये “पत्रकारिता”

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आत्माराम त्रिपाठी की खास रिपोर्ट 

ठेले  वाला पत्रकार, अंडा वाला पत्रकार, टेंपो वाला पत्रकार, चूड़ी वाला पत्रकार, रखवा, मुर्गा और चिकन बेचने वाला पत्रकार, पत्रकारिता के स्तर को इस तरह से गिराया गया है कि अपने आप को पत्रकार कहने में भी शर्म आने लगी है।

पत्रकारो पर वसूली का इल्ज़ाम नया नहीं है। पूर्व में भी सैकड़ों पत्रकारों पर मुकदमे वसूली के मुकदमे लिख चुके हैं। परंतु जिस प्रकार उत्तर प्रदेश की राजधानी में दिन प्रतिदिन पत्रकारों की संख्या में बाढ़ आती जा रही है वैसे वैसे पत्रकारों पर वसूली के आरोपों की घटनाएं बढ़ती जा रही है।

बढ़ती बेरोजगारी में पढ़ें लिखे से लेकर अनपढ़ तक सभी पत्रकार हैं। जिन्हें कलम पकड़ना भी नहीं आता वो भी पत्रकार और जिन्हें खबरों का ज्ञान नहीं वो भी पत्रकार और हर पत्रकार अपने आप में बहुत बड़ा पत्रकार हैं। उन का अपना क्षेत्र है, अपने थाने हैं। जहां मात्र उनका ही सिक्का चलता है।

हद तो तब हूई जब यह जानकारी मिली कि कुछ तो न्यूज पेपर व पत्रकार संगठन भी वसूली के दम पर चल रहे हैं। महीने का जो ज्यादा वसूली का हिस्सा देगा उसे उतना बड़ा पद मिल जाए। ऐसे कृत्यों ने समाचार पत्रों और संगठनों को तो संचालित कर दिया मगर पत्रकारों के मान सम्मान को कहां पहुंचा दिया यह शायद उन लोगों को पता नहीं या ऐसे लोग इस से मतलब रखना भी नहीं चाहते। 

लखनऊ में और विशेष कर लखनऊ ट्रांसगोमती में ऐसे लोगों की लहर है। दिन के उजाले में बैठते हैं चौकी थानों पर और रात के अंधेरे ढूंढते हैं अपना शिकार। बिल्डरों की बिल्डिंग का फोटो खींच कर मांगते उनसे पैसा। नहीं दिया तो फोटो एलडीए के अधिकारी को भेजने के लिए डराते हैं बिल्डरों को। इन का अपना एक बड़ा गिरोह है जिस के मुखियाओं पर ही दर्जनों मुकदमे पंजीकृत हैं। और यह लोग अपनी बात मनवाने व वर्चस्व बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

चाहे अवैध खनन हो या अवैध मंडियां या अवैध स्टैंड या अवैध हास्पिटल या मानक विहीन स्कूल या किसी पर फर्जी मुकदमा लिखाना हो, ये सब करवा सकते हैं। हद तो तब हूई जब गुडम्बा व मड़ियांव थाना क्षेत्र के कुछ  व फुटपाथ दुकानदारों ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि शाम को प्रतिदिन 100 रू देना पड़ता है न दो तो पुलिस से दुकान फेंकवाने की धमकी दी जाती है। जिस कारण कोई दुकानदार भय के कारण इन तथाकथित लोगों के खिलाफ मुंह खोलने से बचते हैं। एक चाय के टपरी वाले ने बताया कि सुबह से शाम तक दसयों सिगरेट और चाय मुफ्त में दो न दो तो अवैध अतिक्रमण की खबर छप जाएगी । हम गरीब लोग हैं साहब, हमें तो हर चीज़ पर टैक्स देना ही है चाहे सरकार ले या गुन्डे या ये तथाकथित लोग ऐसे लोगों के खिलाफ खड़े होने पुलिस आफिसर को भी चाहिए के अपनी चौकी पर इनको न बैठाया जाए। हर जगह पुलिस चौकी पर जाकर बैठकर अपना रूआब जमाते हैं। कमिश्नर  को चाहिए इन लोगो की तत्काल जांच करनी चाहिए ताकी सही पत्रकार के मान सम्मान को ठेस न पहुंचे। आज सही पत्रकारिता करने वाले इन चौंकी थाने पर बैठने वालों की वजह से बदनाम हो रहे हैं। फर्जी पत्रकारिता करने वालों के खिलाफ यह सब लामबंध होकर अपने किसी चहेते से तहरीर दिलाकर और स्वयं गवाह बन फर्जी मुकदमा लिखाने से भी गुरेज नहीं करते। यही कारण है कि कोई सम्मानित पत्रकार या समाज सेवी इन का विरोध नहीं करता। 

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मान सम्मान, प्रतिष्ठा का इन से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं है। इन्हें कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों द्वारा ही अपने स्वार्थ के लिए पैदा किया गया है।जो आज तक गरीब हो या अमीर थाना हो या सड़क सब कहीं इन का कारोबार चलता है। अगर शासन प्रशासन द्वारा अलग से एक टीम का गठन कर अभियान चलाया जाए तो शायद उत्तर प्रदेश की राजधानी में ही पत्रकारों की लाखों की संख्या घटकर सैकड़ों में आ जाए। और आम जनमानस को भी वसूली से निजात मिल सके।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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