google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
आज का मुद्दा

‘राजदंड’ का ‘लोकतंत्र’ में कैसा है औचित्य?

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

मोहन द्विवेदी 

नए संसद भवन का लोकार्पण कर दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने ही किया। तमिलनाडु के अधीनम (पुजारियों) ने प्रधानमंत्री को ‘सेंगोल’ सौंप दिया। सेंगोल, यानी राजदंड, चोल वंश के साम्राज्य के दौरान सत्ता-हस्तांतरण का प्रतीक रहा होगा। स्वतंत्र, संप्रभु और लोकतांत्रिक भारत में किसकी सत्ता का हस्तांतरण हुआ है? अभी तो नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। यदि ‘सेंगोल’ को ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक विरासत के तौर पर तमिल पुजारियों ने प्रधानमंत्री को सौंपा है, तो उस ‘राजदंड’ को लोकसभा स्पीकर के आसन की बगल में स्थापित क्यों किया गया है? देश के प्रधानमंत्री ने अयोध्या में भगवान राम और महादेव की मूर्तियों के सामने भी दंडवत प्रणाम किया था। ‘सेंगोल राजदंड’ को भी दंडवत प्रणाम किया गया। क्या वह दैवीय और अवतारीय है? क्या लोकसभा का सदन ‘राजदंड’ के जरिए ही संचालित किया जाएगा? लोकतंत्र में हमारे पास संविधान है, जिस पर संविधान सभा के हमारे पुरखों ने खूब विमर्श किया था और डा. भीमराव अंबेडकर ने संविधान को लिखा था। समय और आवश्यकता के अनुसार हमारी संसद ने संविधान में 100 से अधिक संशोधन पारित किए हैं। भारत संविधान और कानून के जरिए सौहार्र्द और सहजता से चलता रहा है।

इसे भी पढें  ‘इतनी बारिश के बाद भी खून के धब्बे रह जाते हैं’... NCERT बुक से हटी फैज की शायरी, इस्लामी साम्राज्य की कहानी और बहुत कुछ

अब संसद की नई इमारत में ‘राजदंड’ के मायने, लोकतंत्र के संदर्भ में, क्या हैं? क्या एक महान लोकतंत्र प्रतीक रूप में ही सही ‘राजदंड’ से हांका जा सकता है? कमोबेश प्रधानमंत्री मोदी को इसका स्पष्टीकरण देना पड़ेगा।

खुद प्रधानमंत्री मोदी अपने कार्यकाल के 9 लंबे साल शासन कर चुके हैं। अचानक ‘सेंगोल राजदंड’ और उसके महात्म्य की याद कहां से आई? मौजूदा प्रधानमंत्री से पहले कई और प्रधानमंत्री भारत का नेतृत्व कर चुके हैं। आपातकाल का दौर छोड़ दें, तो देश में लोकतंत्र और संविधान जीवंत तौर पर क्रियान्वित रहे हैं। भाजपा के शीर्षस्थ नेता अटलबिहारी वाजपेयी भी 6 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे। वह ज्यादा भारतीय, सांस्कृतिक, समन्वयवादी और उदार प्रधानमंत्री थे। उनके कार्यकाल में खुफिया एजेंसियों और वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों ने भी उन्हें खुलासा नहीं किया कि ‘सेंगोल राजदंड’ भी कोई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक बला है और इलाहाबाद के संग्रहालय में धूल फांक रही है। तमिलनाडु में शैव मठ के संतों और पुजारियों तथा आस्थावानों ने भी कभी यह मांग नहीं की कि सत्ता हस्तांतरण ‘सेंगोल राजदंड’ के जरिए की जाए।

दरअसल हमारा लोकतंत्र इतना सशक्त है कि किसी भी जनादेश के बाद केंद्र और राज्यों में सत्ता हस्तांतरण बड़े सहज और स्वाभाविक तौर पर हो जाता है। बेशक 28 मई ‘संसदीय महोत्सव’ की तारीख दर्ज कर ली गई, लेकिन भारत का लोकतांत्रिक और संसदीय परिदृश्य आधा अधूरा और विभाजित दिखा। विपक्ष पर दोषारोपण किया जा सकता है। हम इस बहस को नए सिरे से नहीं छेडऩा चाहते, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को मंथन करना चाहिए कि 10-11 मुख्यमंत्री नीति आयोग की अधिशासी परिषद की बैठक का भी ‘अघोषित बहिष्कार’ करते हैं। क्या यह विकसित भारत के लिए एक बेहतर प्रवृत्ति है? ‘सेंगोल राजदंड’ के जरिए प्रधानमंत्री और भाजपा नेतृत्व राजनीतिक तौर पर तमिलनाडु और केरल को संबोधित कर रहे हैं।

इसे भी पढें  गांव में ही गुम हो गई है बलिदानी के कुर्बानी की निशानी

91 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की
Back to top button
Close
Close