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November 22, 2024 12:40 pm

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खुद लोगों की छींटाकशी से जूझीं तो माता पिता ने भी कम तानें नहीं सुने लेकिन ‘जिद थी दुनिया जीतने की’ और जीत भी ऐसे लिया….

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

शश‍िकला वर्मा (Shashikala Verma) उत्‍तर प्रदेश सरकार में अफसर है। उन्‍होंने पहले ही प्रयास में UPPCS क्‍वालिफाई कर लिया था। कभी उनके कॉन्फिडेंस का यह हाल था कि वह लोगों के सामने बोलने में भी थरथराने लगती थीं। अपने परिवार वालों तक से बात करने में उन्‍हें झ‍िझक महसूस होती थी। उनके पिता सेना में थे। बेटी की इस कमी को उन्‍होंने पहचान लिया था। फिर उन्‍होंने शशि को ऐसे ट्रैक पर डाला कि बेटी इंटरव्‍यू बोर्ड के मेंबरों को भी चौंकाकर आई। हालांकि, जब शश‍ि ने सिविल सर्विस एग्‍जाम की ओर कदम बढ़ाए तो न सिर्फ उन्‍हें बल्कि घर वालों को भी खूब ताने सुनने को मिले। कुछ ने कहा कि इतनी रात कौन सी कोचिंग चलती है, तो कई ने घर वालों को सुनाकर कहा कि बेटी की कमाई खानी है क्‍या। हालांकि, शशि ने इन बातों से अपने फोकस को शिफ्ट नहीं होने दिया। वह अपने रास्‍ते बढ़ती गईं। पहले ही प्रयास में यूपीपीसीएस क्रैक करके उन्‍होंने सबकी बोलती बंद करा दी।

शशि बलिया जिले के असनवार गांव से आती हैं। वह ट्रेजरी ऑफिसर (फाइनेंस एंड अकाउंट्स, यूपी गवर्नमेंट) हैं। उनके दादा किसान थे। पिता सेना में थे। पिता की अलग-अलग जगह पोस्टिंग होने के कारण शशि ने कई स्‍कूल बदले। आर्मी स्‍कूल में उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई। वह पढ़ने-लिखने में अच्‍छी थीं। लेकिन, बोलने में झ‍िझकती बहुत थीं। टीचर्स से पिता को इस बारे में पता चला। उन्‍होंने इसे गंभीरता से लिया। इसके बाद उन्‍होंने शशि को एनसीसी ज्‍वाइन करा दी। एनसीसी में उन्‍हें लीडरशिप क्‍वालिटी और कैरेक्‍टर बिल्डिंग जैसे पहलुओं में तो फायदा हुआ। लेकिन, सही से बोलने में उनकी तकलीफ बनी रही। उनके अंदर बहुत ज्‍यादा झ‍िझक थी। यह इस किस कदर थी कि एनसीसी में उनसे एक बार ‘परेड सावधान’ बोलने के लिए कहा गया तो वह यह तक नहीं बोल सकी थीं। घबराकर वह एनसीसी छोड़ने की जिद करने लगी थीं।

सबकुछ आते हुए भी प्रोफेसरों को नहीं दे पाती थीं जवाब

12वीं के फेयरवेल में भी कुछ ऐसा ही हुआ। फेयरवेल में श‍श‍ि से अपने मन से कुछ बोलने के लिए कहा गया। तब वह एक लाइन तक नहीं बोल पाई थीं। ग्रेजुएशन के दौरान भी उनकी यह समस्‍या बनी रही। वाइवा में वह आते हुए भी अपने प्रोफेसरों के सवालों का जवाब नहीं दे पाती थीं। फिर उन्‍होंने बायोकेमिस्‍ट्री से एमएससी की। लेकिन, सेल्‍फ कॉन्फि‍डेंस में कमी और झिझक ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। वहां सेमिनार में प्रजेंटेशन देने में उनके हाथ पांव फूल जाते थे। जैसे-तैसे उनकी पीजी हुई।

नेट-जेआरएफ के बजाय पिता ने शशि को आर्मी बीएड के लिए आर्मी सेंटर ऑफ एजुकेशन (पंचमढ़ी) भेजने का फैसला किया। शशि की कमी के बारे में वह जानते थे। वह चाहते थे क‍ि आर्मी एनवॉयरमेंट में रहकर शशि अपनी इस बचपन की कमी को दूर करें। उन्‍होंने आर्मी बीएड के लिए भेजते समय भी शश‍ि को कहा था कि उन्‍हें एक साल बाद ही ये बदलाव दिखाई देंगे। तब श‍श‍ि बहुत रोई थीं। तीन महीने तक उन्‍होंने घरवालों से बात तक नहीं की थी।

बीएड के दौरान व्‍यक्‍तित्‍व में हुआ बदलाव

वहां पहुंचने पर एक दिन शशि के साथ की सभी लड़कियां सीडीएस (कम्‍बाइंड डिफेंस सर्विस) एग्‍जाम देने जा रही थीं। लेकिन, वह एग्‍जाम में सिर्फ इसलिए अपियर नहीं हुईं क्‍योंकि इसमें इंटरव्‍यू था। बीएड करने के दौरान उन्‍होंने टीचिंग स्किल्‍स सीखीं। कम्‍यूनिकेशन स्किल्‍स पर भी काम किया। लेकिन, सेल्‍फ कॉन्फिडेंस से उनकी लड़ाई जारी थी। साल के अंत में एक डिबेट कॉम्पिटिशन था। उनकी सहेली ने बिना बताए उनका नाम इसमें डाल दिया था। जब मंच पर वह बोलने के लिए चढ़ीं तो उनके सामने अंधेरा छा गया। उनकी सहेली ने डिबेट से पहले उन्‍हें एक सलाह दी थी जो उन्‍हें काम आई। सहेली ने कहा था कि जब मंच पर बोलना तो सोच लेना कोई नहीं है बस अकेले तुम हो। फिर बोलती चली जाना। उस दिन यह टिप उनके बहुत काम आई। वह उस डिबेट कॉम्पिटिशन में सेकेंड आईं। इस एक साल ने उनका पूरा व्‍यक्तित्‍व बदल दिया था।

इसके बाद शशि बेसिक शिक्षा विभाग में अस‍िस्‍टेंट टीचर के तौर पर सेलेक्‍ट हुईंं। बच्‍चों को वह कल्‍चर‍ल एक्टिविटीज में बहुत ज्‍यादा पार्टिसिपेट कराती थीं। वह चाहती थीं कि जिस परेशानी से वह गुजरी हैं, उससे बच्‍चे नहीं गुजरें। सिविल सर्विस में जाने का शश‍ि का कोई इरादा नहीं था। उन्‍हें तो ठीक से इसका आइडिया तक नहीं था। एक दिन गांव में क्‍लास के बच्‍चों से बातचीत करते हुए उन्‍होंने पूछा कि वे क्‍या करना चाहते हैं। उनमें से किसी ने कहा कि वे आगे चलकर पान की दुकान खोलेंगे। किसी ने बोला कि मजदूरी करेंगे। इस पर शशि ने कहा कि क्‍या उनका मन नहीं करता कि वे डॉक्‍टर, इंजीनियर, टीचर या गांव में आने वाले बीडीओ साहेब जैसा बनें। उनमें से एक स्‍टूडेंट ने कहा कि मैडम आप तो पढ़ी-लिखी हैं। क्‍यों नहीं आप ही अफसर बन जाती हैं।

माता-पिता के साथ खुद भी सुने बहुत ताने

इसके बाद ही पहली बार शशि ने यूपीपीसीएस का सिलेबस देखा। प्री, मेन्‍स और फिर इंटरव्‍यू यह देखकर उन्‍हें भी बहुत कठिन लगा। हालांकि, उन्‍होंने सोचा कि अगर वह हार गईं तो बच्‍चों को क्‍या सीख देंगी। इसके बाद शशि ने प्रिपरेशन शुरू कर दी। उन्‍होंने इस बारे में पिता से बात की। पिता उन्‍हें एक छोटी सी कोचिंग लेकर गए। उनके टीचर ने कहा कि अगर सही दिशा में उन्‍होंने मेहनत की तो असंभव कुछ भी नहीं है। इस दौरान उनके परिवार वालों और खुद उन्‍हें बहुत ताने सुनने को मिले। कुछ लोगों ने कहा कि लड़की 30 साल की हो गई है, शादी नहीं करनी है। किसी ने कहा कि इतनी रात कौन सी कोचिंग चलती है। कोई बोला कि लड़की पहले से सरकारी सर्विस में है। मां-बाप लड़की को बैठाकर उसका पैसा खाना चाहते हैं।

सबकुछ अनसुना कर पढ़ाई पर क‍िया फोकस

शशि ने इन सभी बातों को अनसुना किया। प्रिपरेशन पर ध्‍यान देने लगीं। उन्‍होंने शुरू से प्री, मेन्‍स और इंटरव्‍यू की तैयारी की। जब उनका मेन्‍स क्‍लीयर हुआ और इंटरव्‍यू के लिए पहुंचीं तो उसकी भी कहानी दिलचस्‍प है। उनसे पहले इंटरव्‍यू देकर निकली लड़की रोते हुए आई थी। इंटरव्‍यू बोर्ड के सामने वह बिल्‍कुल सामान्‍य रहीं। यह जब पूरा हुआ तो उनके निकलने पर बोर्ड के एक मेंबर ने कहा कि वह शशि को अगले साल फिर यहीं पर देखना चाहेंगे। यह बात शायद डीमोटिवेट करने के लिए कही गई थी। इसी कारण से संभव है कि उनसे पहले वाली कैंडिडेट वहां से रोकर निकली थी। लेकिन, शशि ने बोर्ड मेंबर को पलटकर जवाब दिया कि वह जरूर आएंगी उनसे मिलने के लिए। लेकिन, सेलेक्‍शन के बाद। रिजल्‍ट आया तो वह पहले ही एटेम्‍प्‍ट में यूपीपीसीएस क्रैक कर चुकी थीं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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