अनिल अनूप की खास रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृंदावन को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है। इस घटना में पार्किंग संचालकों ने बाहर के श्रद्धालुओं से मारपीट की। इस मारपीट में श्रद्धालुओं के कपड़े तक फाड़ दिए गए। घटना का वीडियो वायरल होने से हडक़ंप मच गया। बताया जा रहा है कि घटना वृंदावन-सुनरख रोड की है।
बताया जा रहा है कि यह मारपीट अवैध वसूली को लेकर हुई। जैंत थाना क्षेत्र के वृंदावन-सुनरख रोड स्थित नगला रामताल पर बांके बिहारी श्री हरिदास पार्किंग में यह घटना हुई। पार्किंग संचालक अवैध वसूली कर रहा था जिसका विरोध करने पर उसने श्रद्धालुओं के साथ अभद्रता की। यही नहीं उसने महिलाओं और बच्चों को गालियां भी दीं।
एक वायरल हो रहे वीडियो में रामताल रोड पर छह शिखर मंदिर के पास एक पार्किंग पर संचालक दबंग श्रद्धालुओं को लाठी-डंडों से पीटते हुए दिखाई दे रहे हैं। वृन्दावन में पार्किंग के अवैध वसूली के बारे में, वहां जाने वाला हर श्रद्धालु जानता है, पर वहां की व्यवस्था नही जानती, ऐसा क्यों है। अभी पिछली जन्माष्टमी पर बांके बिहारी मंदिर में रात दो बजे मंगला आरती के दौरान दम घुटने से दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी । छह श्रद्धालुओं की तबीयत बिगडऩे के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि 50 से ज्यादा लोग बेहोश होकर गिर पड़े। धार्मिक स्थानों पर बुरा इंतजाम देश के अनेक भागों देखने में आता रहा है।
इसी तरह 31 दिसंबर 2021 की रात माता वैष्णो देवी दरबार में हुए हादसे में 12 लोगों की मौत होने से एक दर्जन घरों में नए साल का जश्न मातम में बदल गया था।
बताया जा रहा है कि आने-जाने वाले रास्ते पर बेरिकेडिंग की हुई थी जोकि भीड़ को देखते हुए हटा दी गई थी। पिछले 10 सालों पर नजर दौड़ाएं तो अभी तक करीब साढ़े छह सौ लोग इस तरह के हादसों में जान गंवा चुके हैं। सबसे बड़ा हादसा माता नैना देवी मंदिर परिसर में 2006 में हुआ था। हिमाचल प्रदेश में हुए इस हादसे में 160 लोगों की जान चली गई थी। वहीं करीब 400 लोग घायल हुए थे।
बात क्योंकि वृंदावन की हो रही है, इस तीर्थ स्थल का भगवान् श्री कृष्ण के भक्तों के लिए बहुत महत्व है। इसकी खास जानकारी पाठकों को होनी चाहिए। वृन्दावन मथुरा से 12 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में यमुना तट पर स्थित है। यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है। इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों की स्थिति का ज्ञान होता है।
श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंद जी कुटुंबियों और सजातियों के साथ वृन्दावन निवास के लिए आए थे। कहते हैं कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है।
श्रीमद्भागवत के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृन्दावन गोवर्धन के निकट था। गोवर्धन धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली (परम रासस्थली) के निकट था। एक तरफ जहाँ वृन्दावन मे श्रद्धालुओं को पीटा जा रहा है वहां वृन्दावन का नाम आते ही हम सब का मन पुलकित हो उठता है। योगेश्वर श्रीकृष्ण की मनभावन मूर्ति आँखों के सामने आ जाती है। उनकी दिव्य अलौकिक लीलाओं की कल्पना से ही मन भक्ति और श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है।
वृन्दावन को ब्रज का हृदय कहते है जहाँ राधा-कृष्ण ने अपनी दिव्य लीलाएँ की हैं। इस पावन भूमि को पृथ्वी का अति उत्तम तथा परम गुप्त भाग कहा गया है। पद्म पुराण में इसे भगवान का साक्षात शरीर, पूर्ण ब्रह्म से सम्पर्क का स्थान तथा सुख का आश्रय बताया गया है। इसी कारण से यह अनादि काल से भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, हितहरिवंश, महाप्रभु वल्लभाचार्य आदि अनेक गोस्वामी भक्तों ने इसके वैभव को सजाने और संसार को अनश्वर सम्पति के रूप में प्रस्तुत करने में जीवन लगाया है। यहाँ आनन्दप्रद युगलकिशोर श्रीकृष्ण एवं राधा की अद्भुत नित्य विहार लीला होती रहती है।
इस पावन स्थली का वृन्दावन नामकरण कैसे हुआ, इस संबंध में अनेक मत हैं। ‘वृन्दा’ तुलसी को कहते हैं। यहाँ तुलसी के पौधे अधिक थे। इसलिए इसे वृन्दावन कहा गया। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वृन्दा राजा केदार की पुत्री थी। उसने इस वनस्थली में घोर तप किया था। अत: इस वन का नाम वृन्दावन हुआ।
कालान्तर में यह वन धीरे-धीरे बस्ती के रूप में विकसित होकर आबाद हुआ। ब्रह्म वैवर्त पुराण में राजा कुशध्वज की पुत्री जिस तुलसी का शंखचूड़ से विवाह आदि का वर्णन है, तथा पृथ्वी लोक में हरिप्रिया वृन्दा या तुलसी जो वृक्ष रूप में देखी जाती हैं इन्हीं वृन्दा देवी के नाम से यह वृन्दावन प्रसिद्ध है। इसी पुराण में कहा गया है कि श्रीराधा के सोलह नामों में से एक नाम वृन्दा भी है। वृन्दा अर्थात राधा अपने प्रिय कृष्ण से मिलने की आकांक्षा लिए इस वन में निवास करती हैं और इस स्थान के कण-कण को पावन तथा रसमय करती हैं। विशेषकर यह वृन्दावन भगवान् श्रीकृष्ण का लीला क्षेत्र है।
किसी संत ने कहा है कि ‘वृन्दावन सो वन नहीं, नन्दगांव सो गांव। बंशीवट सो बट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम।’ वृन्दावन का इतना अधिक महत्व होने के बावजूद मीडिया रिपोट्र्स बताती हंै कि श्री कृष्ण की नगरी में जगह-जगह संचालित अवैध पार्किंग संचालक मानकों को दरकिनार कर आज भी मनमानी वसूली कर रहे हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई करने से पुलिस और नगर निगम के अधिकारी भी पीछे हट रहे हैं, जबकि यहां आए दिन विवाद होते हैं। हाल ही में प्रेम मंदिर के पीछे सुनरख मार्ग पर पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने को लेकर श्रद्धालुओं के साथ हुई मारपीट के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। रिपोट्र्स बताती हैं कि बीते लगभग एक साल से वृंदावन में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ी है। इससे शहर और बाहर पार्किंग की संख्या में इजाफा हुआ है। वृंदावन में रुक्मिणी विहार, प्रेम मंदिर, इस्कॉन, चैतन्य विहार, हरिनिकुंज, किशोरपुरा, गौतम पाड़ा, परिक्रमा मार्ग, अटल्ला चुंगी, पागल बाबा मंदिर के समीप, सुनरख मार्ग, नगला रामताल आदि क्षेत्रों में सौ से अधिक अवैध पार्किंग संचालित हो रही हैं। यहां हर दिन हजारों गाडिय़ां पुलिस और नगर निगम की मिलीभगत से पार्क हो रही हैं और संचालक चांदी काट रहे हैं। इन पार्किंग में न तो टॉयलेट की व्यवस्था है और न ही आग बुझाने के उपकरण। पिछले रविवार को हर रविवार की तरह वृंदावन स्थित ठाकुर बांके बिहारी के दर्शन के लिए रविवार को आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा था।
मंदिर की तरफ जाने वाले रास्ते श्रद्धालुओं से भरे नजर आए। भीड़ के आगे प्रशासन के सारे इंतजाम धरे रह गए। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं ठाकुर श्रीबांके बिहारीजी की झलक पाने के लिए भीड़ के साथ आगे बढ़े जा रहे थे। मंदिर की ओर जाने वाले मार्गों पर जनसैलाब हिलोरें मार रहा था। भीड़ में फंसे बच्चों और महिलाओं का बुरा हाल था। बच्चे बिलबिला गए और महिलाएं चीख उठीं, लेकिन चाहकर भी भीड़ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझा। इस बदइन्तजामी के लिए कौन जिम्मेवार है? वृन्दावन में अराजकता के लिए कौन जिम्मेवार है? वहां का प्रशासन श्री कृष्ण के भक्तों के साथ ज्यादतियों के लिए आँख क्यों बंद रखता है?
जरूरत है वृन्दावन में इंतजामों को बेहतर बनाने की। एक बेहतर कार्य योजना बनाई जाए ताकि आस्था की मर्यादा पर आंच न आए। इस तरह की घटनाओं से श्रद्धालुओं की आस्था को चोट लगती है तथा व्यवसाय प्रभावित होता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."