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November 26, 2024 1:01 am

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जब गैंगवार से पूरे शहर में गिर रही थीं ‘अपनों’ की लाशें, शांतिदूत बनकर सामने आई माफिया की मां

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

लखनऊ: बात सत्तर-अस्सी के दशक की है। इस दौर में माफिया के बीच चल रही गैंगवार से शहर भर में दहशत का माहौल था। चारबाग में भंडारी और बक्शी की दोस्ती अदावत में बदल चुकी थी। महानगर में आजम घोसी और यादव बंधु (योगेंद्र मुरारी और बृजेंद्र मुरारी) आमने-सामने थे। इन सब पर भारी थी, डालीगंज में राम गोपाल मिश्रा और अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना के बीच चल रही खूनी रंजिश। राम गोपाल मिश्रा ऐसा गैंगस्टर था, जिसके शागिर्दों में खुद अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव तक रह चुका था। गैंगवार में आए दिन ‘अपनों’ की लाशें गिर रही थीं। ऐसे में अन्ना की मां ने पहल की और दूर के रिश्तेदारों की मदद से राम गोपाल से संपर्क साधा। अन्ना की मां को राम गोपाल मौसी कहता था। मुलाकात के दौरान अन्ना की मां ने कहा कि अब शांत हो जाओ, तो अन्ना की शादी कर दें। राम गोपाल का जवाब था ‘मौसी, आपने कहा है, तो अब अग्गी (शुरुआत) हमारी तरफ से नहीं होगी।

यहां से शुरू हुई रंजिश

फरवरी 1966 में बच्चू लाल दीक्षित उर्फ बच्चू महाराज की कमलापुर (सीतापुर) में हत्या के बाद अपराध जगत की सल्तनत उसके शागिर्द रहे रूढ़ा, कमलापुर निवासी राम गोपाल मिश्रा के हाथों में आ गई। भाई मन्नर उर्फ राधेश्याम मिश्रा और बहनोई रामानंद बाजपेयी की मदद से राम गोपाल का रुतबा बढ़ने लगा। देखते ही देखते लखनऊ, सीतापुर और उन्नाव तक में राम गोपाल की तूती बोलने लगी। राम गोपाल का लखनऊ में एक और साथी था प्रेम शंकर शुक्ला। प्रेम के पास नए अपराधियों की फौज थी। रिटायर्ड आईपीएस बृजलाल बताते हैं कि सत्तर के दशक के शुरुआत की बात है, राम गोपाल की बेटी की शादी थी। इसमें डालीगंज के व्यापारी ज्वाला प्रसाद ने एक बाइक और बीस हजार रुपये दिए थे। कुछ दिनों बाद प्रेम की बहन की शादी पड़ी। प्रेम चाहता था कि उसकी बहन की शादी में भी ज्वाला मदद करे। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। कहा गया का राम गोपाल के मना करने पर ही ज्वाला ने हाथ खींच लिए थे। इसे लेकर दोनों में शुरू हुआ मतभेद इतना बढ़ा कि प्रेम ने अपना अलग गैंग खड़ा कर लिया।

दूसरे हमले में मारा गया प्रेम

धीरे-धीरे दुश्मनी बढ़ती गई और दोनों के गैंगों में मारपीट और गोलीबारी शुरू हो गई। राम गोपाल से अलग होकर प्रेम तेजी से हाथ-पांव फैलाने लगा। 1976 में प्रेम पर जानलेवा हमला हुआ। इस मामले में राम गोपाल, उसका भाई और बहनोई नामजद हुए। निचली अदालत से सजा भी हुई, लेकिन हाई कोर्ट से मामला खत्म हो गया। इसके बाद डालीगंज क्रॉसिंग पर राम गोपाल की गाड़ी पर फायरिंग की गई। प्रेम के दो छोटे भाई थे। कैलाश शंकर शुक्ला उर्फ छोटे महाराज और अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना। रेलवे क्रॉसिंग पर हुए हमले के बाद राम गोपाल ने प्रेम को ठिकाने लगाने की ठान ली। उधर, प्रेम भी चौकन्ना था। 1977 में गर्मी के दिन थे। राम गोपाल को सुराग मिला कि प्रेम अपने भाई अन्ना और साले दिनेश के साथ पैतृक गांव लल्लापुर (कुर्सी रोड) में पड़ोसी की छत पर सो रहा है। इसी दौरान तीनों पर हमला हुआ। फायरिंग में प्रेम और दिनेश मौके पर ही मारे गए, जबकि अन्ना भी घायल हुआ था। इस मामले में भी निचली अदालत ने राम गोपाल, उसका साला राम नरेश और भाई मन्नर उर्फ राधेश्याम को उम्रकैद की सजा हुई। यह मामला अब भी हाई कोर्ट में लंबित हैं।

अन्ना ने लिया बदला

भाई की हत्या के बाद गैंग की कमान अन्ना ने संभाल ली। प्रेम की हत्या का बदला लेने के लिए अन्ना ने साथियों की मदद से राम गोपाल के बहनोई रामानंद को डालीगंज में सरेआम गोलियों से भून डाला। इससे अन्ना का आतंक और बढ़ गया। जरायम की दुनिया में अन्ना अब अन्ना महाराज कहलाने लगा। डालीगंज और सीतापुर रोड गल्ला मंडी से वसूली के साथ सरकारी ठेकेदारी में भी हस्तक्षेप शुरू कर दिया। रिटायर्ड आईपीएस बृजलाल बताते हैं कि 1984 में वह एसपी सिटी लखनऊ के पद पर तैनात हुए। इस समय तक अन्ना का आतंक सिर चढ़कर बोलने लगा था। अन्ना फरार चल रहा था। हालांकि सूचना थी कि वह लखनऊ के बड़े व्यापारियों के पास आता जाता है। 1985 में गर्मी के दिन थे। मुखबिर की सूचना पर बृजलाल ने अन्ना को डालीगंज की एक बिस्कुट फैक्ट्री से स्मिथ एंड वेसन अमेरिकन रिवॉल्वर के साथ गिरफ्तार किया और एनएसए के साथ गैंगस्टर के तहत कार्रवाई की।

मुलायम से बढ़ाई नजदीकी

राजनीतिक संरक्षण की जरूरत महसूस होने पर अन्ना ने मुलायम सिंह यादव से करीबी बनाई। साथियों के साथ मुलायम के चुनाव प्रचार में भी जाने लगा। एक बार प्रचार के दौरान अन्ना ने मुलायम सिंह के विरोधियों पर फायरिंग कर दी। इसके बाद मुलायम के करीबियों में शुमार होने लगा। 1989 में मुलायम के सीएम बनने पर अन्ना को लोग डिप्टी सीएम कहते थे। अन्ना सपा से एमएलसी बना और उन्नाव से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा। एक समय में अन्ना के ऊपर पुलिस रेकार्ड में सात दर्जन से अधिक हत्या, हत्या के प्रयास, धमकी, वसूली, एनएसए और गैंगस्टर एक्ट के मामले दर्ज थे।

राम गोपाल का कांग्रेसी ठिकाना

उधर, राम गोपाल के पास उस दौर में टॉप शूटरों की फौज हुआ करती थी। इनमें निजामुद्दीन उर्फ राजू घोसी, शंकर डे, सुरेश जायसवाल और शारिफ ऐसे थे, जो पुलिस पर भी गोली चलाने में नहीं चूकते थे। और तो और लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने आए ओम प्रकाश श्रीवास्तव बब्लू ने अपराध का ककहरा राम गोपाल की शागिर्दी में ही सिखा। राम गोपाल को सीतापुर के ही एक बड़े कांग्रेसी नेता के साथ लखनऊ के एक ट्रांसपोर्टर और गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी का संरक्षण मिला हुआ था। कांग्रेसी नेता की बदौलत ही राम गोपाल पहले कसमंडा ब्लॉक का प्रमुख, फिर सीतापुर का जिला पंचायत अध्यक्ष और बाद में कांग्रेस से विधान परिषद का भी सदस्य बना। राम गोपाल पर पुलिस रेकार्ड में एक समय पांच दर्जन से अधिक संगीन अपराधों के मामले दर्ज थे।

सुलह के बाद बंटे इलाके

अन्ना की मां की पहल पर हुई सुलह के बाद राम गोपाल ने डालीगंज छोड़ दिया और अपना दायरा चारबाग और सीतापुर तक सीमित कर लिया, जबकि अन्ना ने खुद को डालीगंज के साथ उन्नाव में समेट लिया। वरिष्ठ पत्रकार अम्बिका दत्त मिश्रा बताते हैं कि सुलह के बाद 1988 में अन्ना पर डालीगंज में जानलेवा हमला हुआ। हमला बबलू श्रीवास्तव ने अपने साथी के साथ किया था। हमले में अन्ना तो बच गया लेकिन ड्राइवर मारा गया। वजह, बबलू को सूचना थी कि जिप्सी खुद अन्ना चला रहा है। ऐसे में कार्बाइन से फायरिंग ड्राइवर सीट पर ही की गई थी। बाइक से भागते समय हुई जवाबी फायरिंग में बबलू की कार्बाइन भी मौके पर गिर गई और साथी भी मारा गया। इस मामले में बबलू के साथ रामगोपाल भी नामजद हुआ। हालांकि कहा यह जाता है कि हमला बबलू ने अपनी यूनिवर्सिटी की रंजिश को लेकर किया था। वर्तमान में दोनों अन्ना और राम गोपाल अपराध से किनारा कर चुके हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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