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अतर्राबांदा

‘मीत बनते ही रहेंगे’ तथा ‘पंखुड़ियां’ पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

अतर्रा(बांदा)। शैक्षिक संवाद मंच द्वारा 3-4 जनवरी को चित्रकूट में आयोजित शैक्षिक संगोष्ठी एवं शिक्षक सम्मान समारोह में दो शिक्षिकाओं सीमा मिश्रा (फतेहपुर ) एवं प्रतिमा यादव (सिद्धार्थनगर) की काव्य कृतियों क्रमशः ‘मीत बनते ही रहेंगे’ तथा ‘पंखुड़ियाँ’ का लोकार्पण मुख्य अतिथि पद्मश्री बाबूलाल दाहिया (सतना), संगोष्ठी अध्यक्ष गोपाल भाई, सारस्वत अतिथि डॉ. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ललित नाट्यकर्मी डॉ. धांसू अन्नू सिंह धाखड़ (कोटा), बाबूलाल दीक्षित, शिक्षाविद आलोक मिश्रा (दिल्ली) तथा शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय के कर कमलों प्रदेश भर से आये रचनाधर्मी शिक्षक-शिक्षिकाओं के मध्य संपन्न हुआ हुआ। इस अवसर पर मंचस्थ अतिथियों ने दोनों कवयित्रियों की रचनाओं पर अपना अभिमत प्रकट करते हुए उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन पश्चात सीमा मिश्रा फतेहपुर की प्रथम काव्य ‘कृति मीत बनते ही रहेंगे’ का लोकार्पण संपन्न हुआ। तत्पश्चात प्रतिमा यादव (सिद्धार्थनगर) की पहली काव्य पुस्तक ‘पंखुड़ियाँ’ का विमोचन किया गया। सीमा मिश्रा ने अपनी पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि कोरोना काल की विषम परिस्थितियों में जब हम सीमाओं में बँध गये थे। तत्कालीन विचारशीलता का प्रतिफल था कि जो भाव अंतस में वर्षों से सुप्तावस्था में विद्यमान थे वे पुष्पित और पल्लवित होने लगे, स्नेह का नीर पाकर मन के भाव कविता और गीत के रूप में व्यक्त होने लगे। मानव मूल्य, संस्कृति, संवेदनाएँ और प्रकृति से प्रेम ही मेरी रचनाओं के मुख्य विषय हैं। स्वप्नों को आकार देने हेतु मन व्याकुल हो जाता है। इसी व्याकुलता का परिणाम है “मीत बनते ही रहेंगे” जिसमें स्वप्नों की मृदुल उजास है। प्रेम, मधुरता, मैत्री भाव, शांति एवं संवेदनशीलता के रंग हैं। मीत बनकर ही हम मानवीय संवेदना, सहनशीलता, मूल्यों एवं भावों को प्रबलता प्रदान कर एक बेहतर दुनिया की बुनावट कर सकते हैं “मीत बनते ही रहेंगे” कृति मानवीय आदर्श एवं मूल्यों की स्थापना में सहायक सिद्ध होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। तो प्रतिमा यादव (सिद्धार्थनगर) ने अपनी पहली कविता पुस्तक के बारे में अनुभव साझा करते हुए कहा कि पंखुड़ियां में सम्मिलित रचनाएं मेरे मन के भावों का प्रकट रूप हैं। इनमें जीवन के अनुभव हैं, मानवीय चेतना एवं प्रेम के चित्र हैं। बेहतर दुनिया के रचने की सपना है। उल्लेखनीय है कि दोनों पुस्तकों की भूमिका शिक्षक, संपादक एवं साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय (बांदा) ने लिखी है। रुद्रादित्य प्रकाशन, प्रयागराज से प्रकाशित दोनों पुस्तकों का मुद्रण और कागज उत्तम गुणवत्ता का है।

दोनों रचनाकारों को शाम के कविता पाठ सत्र में कामतानाथ प्रमुख मुखारबिंद अधिकारी महंत मदन गोपाल दास जी महाराज का आशीर्वाद भी मिला।

उपस्थित शिक्षक-शिक्षिकाओं ने बधाई देते हुए प्रसन्नता व्यक्त की। रामकिशोर पांडेय, डॉ. अरविंद द्विवेदी, डॉ. रचना सिंह, दुर्गेश्वर राय, डॉ. श्रवण गुप्त, संतोष कुशवाहा, अनीता मिश्रा, विवेक पाठक, अपर्णा नायक एवं धर्मानन्द गोजे आदि उपस्थित रहे।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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