राकेश तिवारी की रिपोर्ट
आगरा। राम तुम्हारे युग का रावण (Ravan) अच्छा था, दस के दस सिर बाहर रखता था। इस पंक्ति पर तर्क-वितर्क हो सकता है, मगर अमीरूद्दीन के लिए रावण सचमुच अच्छा है। पांच पीढ़ियों से रावण उनके परिवार का पेट पालने का काम करता आ रहा है। उनके परदादा ने मात्र 2500 रुपये से रावण का पुतला बनाने का काम शुरू किया। अमीरूद्दीन इसी काम से एक महीने में 15 हजार रुपये कमा लेते हैं। इस काम से उन्हें इतना लगाव है कि जब रावण के पुतले में आग लगती है तो वह रो पड़ते हैं।
शहर के रामलीला मैदान में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले तैयार हैं। इस काम को अमीरूद्दीन और उनकी टीम ने पूरा किया है। मथुरा के भरतपुर गेट निवासी अमीरुद्दीन की पांच पीढि़यां इसी काम को करती आ रही हैं। रामलीला कमेटी के मीडिया प्रभारी राहुल गौतम ने बताया, आगरा में इस काम को करने वाला कोई ढंग का कलाकार नहीं है। ऐसे में यहां भी पुतला बनाने उनके अग्रज तभी से आ रहे हैं।
अमीरुद्दीन के परदादा अमीरबख्श ने रावण का पुतला बनाने का काम शुरू किया। अब अमीरुद्दीन और उनके तीन भाई इस काम को कर रहे हैं। इस वर्ष भी अमीरुद्दीन ने आगरा में, उनका बड़ा भाई छोटेलाल ने मथुरा में और छोटा भाई शहजाद ने मुंबई में पुतला बनाया है। अमीरुद्दीन कहते हैं, उनके संयुक्त 12 सदस्यों वाले परिवार का पेट इसी काम से भरता है। दशहरा गुजरने के बाद उनका परिवार छोटे-छोटे पुतले बनाकर बेचता है। समय-समय पर देवी और देवताओं की मूर्ति भी बना लेते हैं। मगर, कभी ताजिया नहीं बनाया। पूछने पर कहते हैं, कभी मन ही नहीं किया।
अमीरुद्दीन बताते हैं, रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला बनाने में करीब 45 दिन का समय लगता है। इतनी मेहनत के बाद जब दशहरा के दिन उन्हें जलते देखते हैं तो आंख गीली हो जाती है। कई बार तो राम में तीर संधान के बाद आग भी उन्हें ही लगानी पड़ती है।
दशहरा दहन में बनने वाले पुतलों में कुंभकर्ण का केवल सिर बनाया जाता है। इस बार यह सिर 45 फीट का बना है। रामलीला कमेटी इस बारे में दिलचस्प बात बताती है। राहुल गौतम बताते हैं कि पहले कुंभकर्ण का पुतला बनता था। मगर, एक बार किसी ने टोका। कहा, रामायण के हिसाब से कुंभकर्ण का शरीर कहीं अधिक विशाल था। ऐसे में उसका पूरा पुतला कैसे बनता। तब से केवल सिर ही बनाया जाता है।
पुतला बनाने के पहले करते हैं इबादत
अमीरुद्दीन रामलीला मैदान में पुतला बनाना शुरू करने से पहले और उन्हें खड़ा करते समय इबादत अवश्य करते हैं। साथ ही, प्रसाद भी बांटते हैं। वे कहते हैं, ऐसा कर अपने बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। उनके काम को वे आगे बढ़ा रहे हैं यह खुशनसीबी है।
पुतले को बनाने में लगती है यह सामग्री
अमीरुद्दीन और उनकी 12 सदस्यीय टीम रोज सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे और फिर शाम पांच से रात नौ बजे तक पुतला बनाने का काम करती है। पुतला बनाने के लिए पहले बांस और बल्लियों से ढांचा तैयार किया जाता है। इसमें पांच हजार बांस, 50 किलो सन की रस्सी, 20 किलो सुतली, 30 किलो बान, एक कुंतल सादा कागज, लेई बनाने के लिए दो किलो मैदा, डेढ़ कुंतल कपड़ा, एक कुंतल भूसा और जलाने के लिए करीब 50 लीटर डीजल लगता है।
Author: samachar
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