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देवरिया

सच्ची कहानी ढाई हजार वर्ष पहले स्थापित “थावे माता मंदिर” की, वीडियो ?

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राकेश तिवारी की रिपोर्ट 

देवरिया। बिहार के गोपालगंज जिला के थावे माता मंदिर की कहानी ढाई हजार वर्ष पहले मुनिया नाम एक लड़की से शुरू होती है। एक दिन मुनिया बगीचे की तरफ गई थी। जो माता जी की पूजा हमेशा करती थी। माताजी ने मुनिया को जंगल में दर्शन दी थी। माता के आशीर्वाद से मुनिया के हथेली से रहसु भगत का जन्म हुआ। रहसु भगत के जन्म होने के बाद तुरंत माताजी कौरी कामाख्या मंदिर पर साथ लेकर चली गई। वहां 15 वर्ष रहने के बाद फिर अपने गांव के तरफ रहसु भगत निकल पड़े। यहां आने के बाद देखे कि यहां सूखा पड़ा हुआ है। लोग भूखों मर रहे हैं। रहसु भगत ने माता जी से कहा कि इसका हल हमको बताया जाए जिससे यहां के लोग भूखे न मरे। माताजी ने सात बाघों की जोड़ी और सर्प दी और कहा कि जंगल से कतरा काट के आप बाघों से दवरी कराएंगे तो मनसरा चावल निकलेगा।

उस दिन के बाद प्रतिदिन जंगल में कतरा काटते थे और रात में बाघों से दवरी करते थे। जो चावल निकलता था उस चावल को पूरे क्षेत्र के लोगों में बांट देते थे।

यह बात धीरे धीरे राजा मनन सिंह के दरबार में पहुंचा। पहुंचने के बाद अपने सिपाहियों के द्वारा रहसु भगत को बुलाए और रहसू भगत से पूछे यह काम कैसे करते हैं। रहसु भगत बोले यह काम माता जी के शक्ति से ही करते हैं, जिससे हमारे परिवार के साथ साथ क्षेत्रवासियों का भरण- पोषण हो रहा है। राजा बोले की माता का दर्शन हम भी करेंगे। इस पर रहसु भगत ने कहा ऐसा जिद न करें नहीं तो आपका परिवार और हमारा परिवार सभी नष्ट हो जाएगा। राजा बहुत ज़िद्दी थे। राजा बोले कुछ भी हो जाए हम दर्शन करेंगे। दर्शन नहीं कराने पर आपके पूरे परिवार को भार झोकवा देंगे। तब रहसु भगत ने माता जी का सुमिरन किए कौड़ी कामाख्या से माताजी चल दी कोलकाता होते हुए विंध्याचल ,पटना के पटन देवी छपरा से आर्मी में गोठा में गढ़ देवी ,घोड़ा घाट में सात घोड़ों पर सवार होकर घोड़ा घाट से माँ चल दी। तभी भी रहसु भगत ने राजा से बहुत विनती निवेदन किए कि राजा मान जाएं लेकिन राजा नहीं माने तभी भूकंप जैसा पूरे क्षेत्र में हिलने लगा जिससे राजा का पूरा महल ध्वस्त हो गया।

मां का आगमन हुआ मां ने रहसू भगत के शरीर में प्रवेश करके उनके सर को फाड़ते हुए अपने हाथ की कंगन का दर्शन राजा को कराई। राजा देखते हुए अंधे हो गए और अपने प्राण को त्याग दिए। राजा का सब कुछ नष्ट हो गया। उसके बाद उस जंगल में बच्चे जाकर मिट्टी से खेलते थे और चढ़ाते थे।

कुछ दिन बाद गोपालगंज जिला के हथुआ के राजा भोरे प्रखंड मां ने सपना दिखाया के जंगल में मैं पढ़ी हुई हूं। बच्चे धूल मिट्टी चढ़ाते हैं राजा ने सुबह उठते ही ब्राह्मणों को बुलाया और और अपने सपनों को बताया। ब्राह्मणों को लेकर राजा उस जंगल में पहुंचे मां का दर्शन किए और ब्राह्मणों के द्वारा विधि विधान से पूजा किया गया और मां की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा उसी समय हथुआ के राजा ने कराया। उसके बाद भक्तों का दूर-दूर से माताजी के दर्शन के लिए आना शुरू हुआ।

आज भी मंदिर के अंदर की व्यवस्था राजघराने से ही चलती है। मंदिर के बाहर में न्यास समिति के द्वारा देखा जाता है। यहां पर चैत और अश्वनी माह में मेला लगता है। इस मेले में लोग बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। सबसे खुशी की बात है माता जी के दर्शन से हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

रहसु भगत की मंदिर के मुख्य पुजारी- बाबूलाल दास बताते हैं आज भी रहसू भगत की मंदिर की पूरी व्यवस्था रहसु भगत के परिवार के द्वारा किया जाता है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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