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जम्मू कश्मीरश्रीनगर

बंदूकें हो गई खामोश; चारों ओर सिर्फ और सिर्फ मुहब्बत और अमन के बीच “जश्न ए गुरेज” का आगाज

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एहसान अली की रिपोर्ट

श्रीनगर,  आओ चलें आओ गुरेज चलें। वहां कोई डर नहीं हैं, यहां तो सिर्फ मुहब्बत है, अमन है। मुहब्बत और अमन के दुश्मन खत्म हो चुके हैं। हाजी गुलाम मोहम्मद लोन ने टैक्सी से उतरते सैलानियों को देखते ही कहा। उसने कहा कि आप बहुत सही समय पर आए हैं, आज ही तो जश्न ए गुरेज की शुरुआत है। उसकी बात सुनकर टैक्सी से उतरे युवक ने हंसकर जवाब दिया, हम यहां इसी जश्न का मजा लेने आए हैं। उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) से सटा गुरेज बदलते कश्मीर की कहानी सुनाता है।

प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत गुरेज कश्मीर के सबसे खूबसूरत क्षेत्रों में एक है, लेकिन आतंकी हिंसा और पाक गोलाबारी के कारण लोग यहां आने से गुरेज करते थे। प्रशासन भी सैलानियों को यहां रुकने की अनुमति नहीं देता था। गुरेज में गुलाम कश्मीर से आतंकियों की घुसपैठ लगभग समाप्त हो चुकी है। लोग भी अब बेखौफ होकर अपने खेत खलिहानों में काम करते हैं, मैदान और चरागाहों में घूमते हैं।

किशनगंगा दरिया किनारे स्थित गुरेज में पर्यटन की संभावनाओं को पूरा लाभ उठाने के लिए प्रदेश सरकार ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के दिशा निर्देश में स्पष्ट कार्ययोजना तैयार कर उस पर अमल शुरू किया था। इसमें सेना भी अहम भूमिका निभा रही है। गुरेज के पूर्व विधायक नजीर गुरेजी ने कहा कि जश्न-ए-गुरेज तो बहुत पहले होना चाहिए था, लेकिन यहां जो हालात रहे हैं उनका नुकसान हम लोगों ने उठाया है।

50 हजार से ज्यादा पर्यकों की उम्मीद : पर्यटन निदेशक जीएन इट्टू ने कहा कि हम जश्न-ए-गुरेज में 28 गतिविधियों का आयोजन कर रहे हैं। इनमें ट्रैकिंग, आफरोड वाहन रैली, कैंपिंग, घुड़दौड़, शाम ए वाजवान, तुलैल घाटी की यात्रा, गुरेज की लोक संस्कृति से जुड़े रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम, तीरदांजी, दमाली, रस्साकशी, हस्तशिल्प सामान के स्टाल भी शामिल हैं। यहां 12 हजार पर्यटक आए थे। इस बार हमें 50 हजार से ज्यादा पर्यकों की उम्मीद है। मेले में पुणे की दीपशिता ने कहा कि मैंने एक अखबार में गुरेज के बारे में पढ़ा था। यहां तीन दिन पहले अपने साथियों संग पहुंची थी। यह जगह वाकई बहुत खूबसूरत है।

पर्यटकों के लिए लोग घर के द्वार खुले रखते हैं : कुपवाड़ा से जश्न ए गुरेज का आनंद लेने आए शब्बीर बट ने कहा कि मैं यहां तीसरी बार आया हूं। यह इलाका सिल्करूट का हिस्सा रहा है। यहां की अपनी एक अलग भाषा है, यहां की अपनी एक संस्कृति है जिसे हम शीना कहते हैं। हाजी गुलाम मोहम्मद लोन ने कहा कि अगर आतंकी ङ्क्षहसा न होती तो गुरेज आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों की पहली पसंद होता। जम्मू कश्मीर में हालात बदल गए हैं। लोग अब अपने घरों के दरवाजे भी रात को खुले रखते हैं ताकि कोई भी पर्यटक खुले में रात न बिताए। 

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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