google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
जम्मू कश्मीर

“कश्मीर फाइल्स” न्याय से जुड़ा प्रश्न, बाहर आए गुम आवाज के दस्तावेज

IMG-20250425-WA1620
IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
Green Modern Medical Facebook Post_20250505_080306_0000
IMG-20250513-WA1941
77 पाठकों ने अब तक पढा

अरमान अली की रिपोर्ट

वर्ष 1989 में देश की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन हुआ था जब कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई थी। भाजपा के समर्थन से केंद्र में दो दिसंबर, 1989 को विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी थी। वर्ष 1990 के शुरुआती दिनों से ही कश्मीर में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनने लगी थीं। उससे यही पता चलता था कि वहां कश्मीरी पंडितों का गला घोंटा जा रहा है और आवाजें बंद की जा रही हैं। इस फिल्म के माध्यम से भी यह पता चलता है कि कश्मीरी हिंदुओं ने बेइंतहा कष्ट सहा है। अब तीन दशक के बाद ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने से तो यही लगता है कि आम भारतीय कश्मीरी हिंदुओं के बारे में बहुत कम जानता है।

दरअसल कश्मीर का परिवेश 1980 के बाद बदलने लगा था। वर्ष 1990 के बाद तो यह इतना बदल गया कि कुल आबादी का 15 प्रतिशत तक रहे कश्मीरी हिंदू घाटी में 1991 तक महज 0.1 प्रतिशत ही बचे। 14 सितंबर, 1989 को श्रीनगर में एक हत्या हुई। वहीं से कश्मीरी हिंदुओं के पलायन की त्रासद कहानी जन्म लेती है। यदि उसी समय समुचित कार्रवाई हो जाती तो इतिहास अलग होता।

उन दिनों कश्मीर में लाल चौक पर तिरंगा फहराना किसी युद्ध को जीतने जैसा समझा जाता था। कश्मीर में अलगाववादी अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में सफल हो रहे थे। सवाल है कि कश्मीरी हिंदुओं को पीड़ा देने वालों के खिलाफ कठोर कदम क्यों नहीं उठाए गए? तीन दशक से कश्मीर छोड़ने का कष्ट भोग रहे कश्मीरी हिंदुओं को न्याय अभी तक क्यों नहीं मिला?

वर्ष 1987 में जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में कट्टरपंथी हार गए थे, जो इस बात का सुबूत था कि जनता शांति चाहती है। कट्टरपंथियों ने हार को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। स्थानीय लोगों को यह कर भड़काने लगे कि इस्लाम खतरे में है। जुलाई 1988 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) बना। भारत को कश्मीर से अलग करने के लिए बड़ी साजिश रची गई। यहीं से कश्मीरी पंडितों पर भीषण जुल्म का दौर शुरू हुआ। हत्या का सिलसिला घाटी में जोर पकड़ने लगा। हैरत यह भी है कि इन अपराधों के लिए किसी के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

तमाम राज्य सरकारें और केंद्र सरकार तरह-तरह के पैकेज घोषित करती रहीं। कभी घर देने की बात तो कभी कुछ, पर किसी ने उनकी घर वापसी के लिए ठोस नीति बनाने की बात नहीं की। गृह मंत्रलय के अनुसार वर्ष 1990 से लेकर नौ अप्रैल, 1917 तक स्थानीय नागरिक, सुरक्षा बल के जवान और आतंकवादी समेत 40 हजार से ज्यादा मौतें कश्मीर में हो चुकी हैं। मोदी सरकार ने 2015 में कश्मीर पंडितों के पुनर्वास के लिए दो हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी, लेकिन पलायन की व्यापकता को देखते हुए यह कितना काम आया होगा इसे समझा जा सकता है। 

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की
Back to top button
Close
Close