
चित्रकूट में ब्लैकलिस्टेड सेवा प्रदाता कंपनी ‘सुपर फास्ट’ द्वारा नियुक्त अवैध कर्मचारी अब भी कार्यरत हैं। एफआईआर के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं? जानिए पूरी खबर।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। एक तरफ़ शासन पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करता है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत चौंकाने वाली है। जनपद चित्रकूट में ब्लैकलिस्टेड सेवा प्रदाता सुपर फास्ट कंपनी द्वारा नियुक्त कर्मचारी अब भी कार्यरत हैं। जबकि इस कंपनी पर न केवल ईपीएफ, सर्विस टैक्स और जीएसटी चोरी के गंभीर आरोप हैं, बल्कि वर्तमान मुख्य विकास अधिकारी द्वारा एफआईआर भी दर्ज करवाई जा चुकी है।
दरअसल, यह वही कंपनी है जो तकनीकी सहायक, लेखा सहायक और अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी जैसे पदों पर नियुक्तियाँ करती रही है। सूत्रों के अनुसार, कंपनी ने भूसा चारा और उद्यान विभाग में भी आपूर्ति के नाम पर अनियमितताएं की हैं, जिनकी जानकारी मिलते ही सीडीओ ने मामला दर्ज कराया।
फिर भी कर्मचारी क्यों कार्यरत हैं?
चौंकाने वाली बात यह है कि जब कंपनी ब्लैकलिस्टेड हो चुकी है और उसके विरुद्ध आपराधिक गबन की कार्यवाही चल रही है, तो इसके द्वारा नियुक्त कर्मचारियों का कार्यरत रहना कई सवाल खड़े करता है।
पूर्व जिलाधिकारी शुभ्रांत शुक्ल और तत्कालीन सीडीओ महेंद्र सिंह को स्थिति की पूरी जानकारी थी। इसके बावजूद नवागंतुक जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय और सीडीओ अमित आसेरी ने कैसे इन कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र जारी कर दिए, यह एक बड़ा रहस्य है।
मिलीभगत और वसूली का खुलासा
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, इन कर्मचारियों से कुछ जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा वसूली की जा रही है। यह कर्मचारी न केवल अवैध रूप से कार्य कर रहे हैं, बल्कि मनरेगा योजनाओं में भी भारी धांधली में लिप्त हैं।
इन पर फर्जी माप पुस्तिकाएं (एम.बी.) तैयार कर सरकारी धन को ठिकाने लगाने का आरोप है। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि जब सेवा प्रदाता कंपनी की वैधानिकता ही समाप्त हो गई है, तो इनके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य भी अवैध श्रेणी में आता है।
शासनादेशों की खुली अवहेलना
यह स्पष्ट है कि इन अवैध कर्मचारियों से कार्य लिया जाना, शासन के निर्देशों की खुलेआम उपेक्षा है। बावजूद इसके, न तो इन कर्मचारियों को रोका जा रहा है और न ही उनकी जवाबदेही तय की जा रही है।
अब सबसे बड़ा सवाल…
जब सुपर फास्ट कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है, और वह ब्लैकलिस्टेड हो चुकी है, तो आखिर किसकी सह पर इसके कर्मचारी आज भी कार्यरत हैं? क्या यह प्रशासनिक मिलीभगत का नतीजा है या फिर भ्रष्टाचार की कोई और परत?
अब यह देखना बेहद अहम होगा कि जिला प्रशासन इस गंभीर मामले को संवेदनशीलता से संज्ञान में लेता है या फिर यह अवैध कर्मचारी इसी तरह सरकारी धन को लूटते रहेंगे?