चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी होने के साथ-साथ राज्य के विभिन्न जिलों से आने वाले भिखारियों के लिए भी प्रमुख केंद्र बन गई है। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि लखनऊ की सड़कों, बाजारों और चौराहों पर सात जिलों के हजारों लोग भीख मांग रहे हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या बहराइच जिले के भिखारियों की है। इनमें महिलाओं के अलावा छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं, जो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं।
भिखारियों की संख्या का खुलासा: 9228 लोग भीख मांगते मिले
नगर विकास विभाग, जिला प्रशासन, डूडा (DUDA) और एक निजी संस्था द्वारा किए गए इस सर्वे में यह सामने आया कि लखनऊ में कुल 9228 लोग भीख मांग रहे हैं। इससे पहले 3916 भिखारियों की पहचान की गई थी, लेकिन जब सर्वेक्षण को और विस्तार दिया गया, तो 5312 नए भिखारी और सामने आए। इस तरह, राजधानी में कुल 9228 भिखारी पाए गए, जिनमें से लगभग आधे यानी 4800 लोग अकेले बहराइच जिले से हैं।
किन जिलों से आ रहे हैं सबसे ज्यादा भिखारी?
सर्वेक्षण में शामिल अधिकारियों के अनुसार, लखनऊ में भीख मांगने वालों की सबसे अधिक संख्या बहराइच से आई है। इसके अलावा लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली और लखनऊ के ही कुछ हिस्सों से भी भिखारी आए हैं।
बहराइच बना सबसे बड़ा ‘भिखारी आपूर्तिकर्ता’
विशेष रूप से बहराइच जिले से सबसे अधिक लोग भीख मांगने के लिए राजधानी लखनऊ आते हैं। गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता इस समस्या के मुख्य कारण माने जा रहे हैं। प्रशासन का कहना है कि इन भिखारियों के पुनर्वास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
भिखारियों को लेकर 200 से अधिक मीटिंग, लेकिन समस्या जस की तस
भिखारियों की समस्या को हल करने के लिए पिछले तीन वर्षों में 200 से अधिक उच्च स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं। लखनऊ मंडल की कमिश्नर डॉ. रोशन जैकब स्वयं इस मुद्दे को लेकर सक्रिय हैं और हर दो महीने में एक बार समीक्षा बैठक कर रही हैं। इसके अलावा, जिलाधिकारी (DM), नगर आयुक्त, महापौर और डूडा के अधिकारी भी इस संबंध में कई बार मीटिंग कर चुके हैं। इसके बावजूद, भिखारियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि यह समस्या और अधिक गंभीर होती जा रही है।
बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने की कोशिश नाकाम
सरकार और जिला प्रशासन ने लखनऊ में भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रयास किए। 256 बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूलों में कराया गया। उन्हें किताबें, ड्रेस और कॉपी-किताबें भी दी गईं। बाल सेवा योजना के तहत उनके बैंक खातों में हर महीने निश्चित धनराशि भी भेजी जा रही है। लेकिन दुर्भाग्य से, इनमें से अधिकतर बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं।
शुक्रवार को एक प्रमुख अखबार द्वारा की गई पड़ताल में पता चला कि नामांकन के बावजूद ये बच्चे अभी भी चौराहों पर भीख मांगते हुए देखे जा सकते हैं। इस पर जिलाधिकारी विशाख जी ने बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) को निर्देश दिया है कि इन बच्चों की नियमित निगरानी की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि वे स्कूल जाएं।
सरकारी योजनाओं पर पानी फिर रहा है
सरकार की मंशा भले ही भिखारियों के पुनर्वास और बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। प्रशासन की सभी कोशिशों के बावजूद, भिखारियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। इसके अलावा, सरकारी स्कूलों में दाखिल बच्चों की शिक्षा भी अधर में लटकी हुई है, क्योंकि वे स्कूल जाने के बजाय सड़कों पर भीख मांगने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
समस्या का समाधान क्या हो सकता है?
1. रोजगार के अवसर बढ़ाना – भिखारियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके कौशल विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
2. सख्ती से पुनर्वास कार्यक्रम लागू करना – सरकार को चाहिए कि वह भिखारियों को पुनर्वास केंद्रों में भेजे और सुनिश्चित करे कि वे दोबारा भीख न मांगें।
3. शिक्षा का कड़ाई से पालन – जिन बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया गया है, उनके लिए विशेष निगरानी तंत्र बनाया जाए ताकि वे स्कूल से जुड़ें रहें।
4. गांवों में जागरूकता अभियान – जिन जिलों से सबसे ज्यादा भिखारी आ रहे हैं, वहां जागरूकता अभियान चलाकर इस समस्या की जड़ को खत्म करने की कोशिश की जानी चाहिए।
लखनऊ में सात जिलों के हजारों भिखारियों की मौजूदगी एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है। खासकर बहराइच से आने वाले भिखारियों की संख्या चौंकाने वाली है। सरकार और प्रशासन ने इस समस्या के समाधान के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन उनका प्रभाव अब तक सीमित ही रहा है। जरूरत है कि इन योजनाओं को सख्ती से लागू किया जाए और भिखारियों को भीख मांगने के बजाय रोजगार और शिक्षा से जोड़ा जाए, ताकि इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सके।
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Author: मुख्य व्यवसाय प्रभारी
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