अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
शहरों की सड़कों, फुटपाथों, मंदिर और दरगाहों के आसपास आमतौर पर मासूम बच्चे आपको भीख मांगते हुए नजर आते होंगे, लेकिन जिले में मासूमियत की आड़ में भीख मांगने का गोरखधंधा जोरों पर है. कुछ बच्चे पेट पालने की चाहत में भीख मांगते हैं तो कुछ को इस धंधे में जबरन धकेल दिया जाता है. यही वजह है कि इन दिनों धार्मिक स्थलों पर भी मासूमों को भीख मांगते हुए आसानी से देखा जा सकता है.
जिन हाथों में किताबें और खिलौने होने चाहिए, वो हाथ अक्सर सड़कों पर भीख मांगते दिखाई देते हैं. सरकार और संस्थाओं की कार्रवाई व चिंतन के बाद भी मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. वहीं बाल भिक्षावृत्ति के मामले दिन प्रति- प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. जहां एक ओर बाल संरक्षण आयोग बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए तमाम कवायद कर रहा है, बावजूद इसके बाल भिक्षावृत्ति को रोकना आयोग के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. क्योंकि बाल संरक्षण आयोग की ओर से किए जा रहे प्रयासों के बावजूद सड़कों और धार्मिक स्थलों के बाहर बच्चे भीख मांगते नजर आ रहे हैं.
जिसकी मुख्य वजह यही है कि परिजन खुद सीमित संसाधनों और आर्थिक अभाव के चलते अपने बच्चों से भी मंगवा रहे हैं. बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष गीता खन्ना ने कहा कि सड़कों पर भीख मांग रहे बच्चों का जब रेस्क्यू किया जाता है और उनसे बातचीत की जाती है तो पता चलता है कि वह बच्चे स्कूलों में पढ़ाई करते हैं. यानी, बच्चों से बातचीत में जानकारी मिली कि वो बच्चे दिन में स्कूल जाते हैं और उनके परिजन शाम को उन्हें एक्स्ट्रा इनकम के लिए भीख मंगवाते हैं. साथ ही कहा कि रेस्क्यू किए गए बच्चों के परिजनों से भी इस बाबत बातचीत की जाती है कि यह उम्र उनके पढ़ने-लिखने की है ना कि भीख मांगने की.
हर भीख की थाली का तय है किराया
जिन थालियों में बच्चे भीख मांगते हैं उन थालियों का किराया निर्धारित होता है. पांच रूपये में एक थाली किराए पर दी जाती है. तीन थाली लेने पर तीन रूपये का डिस्काउंट दिया जाता है. यानि तीन थालियां 12 रूपयें में किराए पर मिलती हैं. इस थाली में कुछ फूल और भगवान की फोटो या प्रतिमा रहती है.
दिनों के हिसाब से बदल जाते हैं भगवान
चाइल्ड राइट एक्टविस्ट नरेश पारस ने बताया कि किराए पर मिलने वाली थालियों में दिनों के हिसाब से हर रोज भगवान बदल जाते हैं. भीख मांगने वाले को कोई दिक्कत न हो इसे ध्यान में रखते हुए गैंग का सरगना थालियों में दिनों के हिसाब से भगवान को फोटो बदल देते हैं. सोमवार को शिवजी, मंगलवार को हनुमान जी, गुरूवार को सांई बाबा, शनिवार को शनिदेव आदि भगवानों की फोटो उपलब्ध करा दी जी हैं.
पार्क और चौराहे होते हैं निशाना
भीख मांगने के लिए बच्चे बड़े ही संवेदनात्मक रूवैया प्रयोग करते हैं. इसे लिए पार्क और चौराहे इनकी पहली पसंद होते हैं. बच्चे फोटो वाली थालियां लेकर पार्क और चौराहों पर लोगों से भीख मांगते हैं. इतना ही नहीं चौराहे के सिग्नल पर रुकने वाली गाड़ियां भी इनके टारगेट पर होती हैं.
सर्व शिक्षा अभियान के तहत वर्ष छह से 14 वर्ष के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा पाना मौलिक अधिकार है. इसके बाद शहर में कई बच्चे मंदिर, रेलवे स्टेशन व अन्य स्थानों पर भीख मांग भविष्य व बचपन दोनों नष्ट कर रहे हैं. जिम्मेदार अफसर इन्हें देखकर भी अनजान बने हैं. प्रत्येक वर्ष स्कूल चलो अभियान के तहत हर साल बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने के लिए प्रेरित किया जाता है, लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग की यह कार्रवाई महज कागजों तक ही सीमित रह जाती है. बच्चों को सही समय पर स्कूली शिक्षा न मिल पाने से उन्हें अन्य कामों में परिवार के लोग लगा देते हैं. गांव-देहात में तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं. बच्चे भी खेती तथा अन्य कामों में लगा दिये जाते हैं.
दिल्ली की सड़कों पर करीब 60,000 भिखारी हैं. उनमें से एक तिहाई की उम्र 18 साल से कम है.
देश के दूसरे हिस्सों से ग़रीबी से बचने की कोशिश में बच्चे दिल्ली आते हैं और यहां भीख मांगने लग जाते हैं. इनमें से कुछ घर से भाग कर आते हैं और कुछ परिवार के साथ रहकर भीख मांगते हैं.
ज़्यादातर बाल भिखारी व्यस्त चौराहों, बाज़ारों, धार्मिक स्थलों और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर होते हैं. व्यस्त जगहों पर भीख मांगने से उन्हें ज़्यादा पैसे मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
कई ग़रीब परिवार मानते हैं कि उनके पास बच्चों को भीख मांगने में लगाने के अलावा और कोई चारा नहीं है.
सोनू एक गुरुद्वारे में अपनी मां के साथ रहता है और पड़ोस के इलाक़े में भीख मांगता है. सोनू को अपने पिता के बारे में पता नहीं है. उसे हर रोज़ करीब 50 रुपए मिल जाते हैं.
पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि हर साल हज़ारों बच्चों को घर से अगवा कर लिया जाता है और उन्हें भीख मांगने पर मजबूर किया जाता है. इस फ़ोटो में एक छोटी सी बच्ची दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में भीख मांगती दिख रही है.
बाल अधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इन बच्चों को भूखा रहने पर मजबूर किया जाता है ताकि वो कमज़ोर दिखें और उन्हें सहानुभूति मिल सके. बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ‘भीख माफ़िया’ बच्चों को विकलांग बना देता है क्योंकि विकलांग बच्चों को ज़्यादा भीख मिलती है.
सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक इनमें से कई बच्चे नशीली दवाओं के आदी बन जाते हैं और यौन शोषण के भी शिकार होते हैं. इन बच्चों की सुरक्षा और इनकी हालत में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने कोई क़ानून नहीं बनाया है.
55 साल पुराने एक क़ानून के मुताबिक दिल्ली सहित भारत के कई शहरों में भीख मांगना ग़ैर क़ानूनी है और पुलिस ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है जो भीख मांगता पाया जाए. सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक पुलिस इस क़ानून का इस्तेमाल अकसर ग़रीबों और ख़ास तौर पर बाल भिखारियों के ख़िलाफ़ करती है.
बचपन बचाओं आन्दोलन के सदस्यों के मुताबिक वेस्ट बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश के अलावा बिहार में भी बाल तस्करों का जाल फैला है. जो विभिन्न राज्यों से बच्चों को बेचने के लिए लाते हैं. ग्राहक पहले से ही तैयार रहते हैं. रेलवे स्टेशन पर डिलवरी दी जाती है. पिछले दिनों ऐसा ही गैंग मेरठ में पकड़ा भी गया था. बच्चे गायब होने का कारण चाइल्ड सुरक्षा संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार, 85 फीसदी बच्चे पढ़ाई में असफल होने और परिजनों के सपनों को पूरा न कर पाने के चक्कर में घर छोड़ते हैं. 10 फीसदी बच्चों का अपहरण होता है, जबकि पांच फीसदी किशोर प्यार के चक्कर में भी घर छोड़ देते हैं.
Author: samachar
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