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November 22, 2024 10:38 pm

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कादर खान : बेहद गरीबी में गुजरा बचपन, “हफ्ते में सिर्फ तीन दिन खाया खाना ; बेहतरीन और शिक्षाप्रद डायलॉग सुनें वीडियो ? में 

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टिक्कू आपचे की रिपोर्ट 

कादर खान… एक्टिंग के महारथी, कॉमेडी में माहिर और कलम के भी उतने ही दमदार। कई फिल्मों में बेहतरीन डायलॉग्स लिखे। 300 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय से छाप छोड़ी और बॉलीवुड में छा गए लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं रहा। बचपन इतनी ज्यादा गरीबी में बीता कि हफ्ते में तीन दिन भूखे रहकर ही गुजारा करना पड़ता था लेकिन मां ने कादर खान की पढ़ाई नहीं छूटने दी। पढ़ाई के साथ-साथ कादर खान बचपन में मिमिक्री भी खूब करते थे और यही टैलेंट उन्हें जिंदगी में आ ले गया लेकिन आश्चर्य की बात है कि 5 दशक सिनेमा को देने वाले कादर खान के हिस्से ज्यादा अवॉर्ड नहीं आए हालांकि उनके निधन के एक साल बाद 2019 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया।

कादर की मौत ना हो जाए इसलिए पूरा परिवार भारत आ गया

कादर खान का जन्म अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। उनके पिता अब्दुल रहमान, अफगानिस्तान के रहने वाले थे और उनकी मां इकबाल बेगम, ब्रिटिश इंडिया से थी। कादर खान के जन्म के पहले उनके 3 बड़े भाई भी हुए पर सभी की 8 साल तक मौत हो गई थी। कादर के जन्म के बाद उनकी मां इस बात से डर गई थी कि कादर की भी मौत ना हो जाए तो इसी वजह से उनका पूरा परिवार अफगानिस्तान से भारत आ गया। भारत आने के बाद कादर खान का पूरा परिवार मुंबई की एक बस्ती में जाकर बस गया।

कादर का बचपन मां-बाप की लड़ाई और तलाक देखते हुए बीता

बस्ती में आए दिन खून और मारपीट होता रहता था। कादर खान के पिता को ये सब पसंद नहीं था जिस कारण कादर का बचपन मां-बाप की लड़ाइयां और तलाक देखते हुए बीता। तलाक के बाद कादर के ननिहाल वालों ने उनकी मां की जबरदस्ती दूसरी शादी करा दी। ननिहाल वालों का मानना था कि कम उम्र में तलाक हो जाने के बाद कादर और उनकी मां का ख्याल कौन रखेगा। साथ ही ये भी उस समय समाज में औरत का अकेला रहना भी गलत माना जाता था। दूसरी शादी हो जाने के बाद भी कादर के घर के हालात सुधरे नहीं और गरीबी भी कम नहीं हुई।

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कादर का बचपन मां-बाप की लड़ाई और तलाक देखते हुए बीता

बस्ती में आए दिन खून और मारपीट होता रहता था। कादर खान के पिता को ये सब पसंद नहीं था जिस कारण कादर का बचपन मां-बाप की लड़ाइयां और तलाक देखते हुए बीता। तलाक के बाद कादर के ननिहाल वालों ने उनकी मां की जबरदस्ती दूसरी शादी करा दी। ननिहाल वालों का मानना था कि कम उम्र में तलाक हो जाने के बाद कादर और उनकी मां का ख्याल कौन रखेगा। साथ ही ये भी उस समय समाज में औरत का अकेला रहना भी गलत माना जाता था। दूसरी शादी हो जाने के बाद भी कादर के घर के हालात सुधरे नहीं और गरीबी भी कम नहीं हुई।

भीग मांगकर किया गुजारा, हफ्ते में 3 दिन खाते और 3 दिन बिना खाए रहते

कादर के प्रति उनके सौतेले पिता का व्यवहार ठीक नहीं था। घर के हालात भी बद से बद्तर थे। खाने का ना राशन होता और ना ही कमाई का कोई जरिया। इसी वजह से कादर के सौतेले पिता उन्हें 10 किलोमीटर उनके पहले पिता के पास 2 रुपए मांगने के लिए भेजते थे। इसके साथ ही वो मस्जिद में जाकर भीख भी मांगते थे पर इन सबसे से भी परिवार का गुजारा सही ढंग से नहीं हो पाता था। आलम ये था कि कादर का पूरा परिवार सप्ताह में 3 दिन खाता और 3 दिन बिना खाए रहता। कादर को ये सारी चीजें बहुत परेशान करती थी।

कादर के बचपन को मां ने ही सवांरा था

बचपन से ही कादर की मां का सपना था कि वो अच्छे से पढ़ाई-लिखाई करके एक बड़े आदमी बने। लेकिन घर की गरीबी उनको बहुत परेशान करती थी। उनके दोस्त भी उनसे कहा करते थे कि क्या रखा है इस पढ़ाई-लिखाई में। हम लोगों के साथ चलकर मजदूरी करो। गरीबी से तंग आकर कादर भी दोस्तों की बातों में आ गए थे और अपनी सारी किताबों को फेंक दिया था। जब ये बात उनकी मां को पता चली, तब वो कादर से बहुत नाराज हुई और कहा कि घर की गरीबी तुम्हारे इस कमाई से कम नहीं होगी। तुम सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और इसी पढ़ाई से जब बड़े आदमी बन जाओगे, तो गरीबी खुद ही खत्म हो जाएगी।

कादर खान की आंखों के सामने मां ने दम तोड़ा था

कादर को मां की बात दिल तक लगी और वो अपनी फेंकी हुई किताबों को वापस ले आए। साथ ही मां से वादा भी किया कि वो अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे। कादर के जीवन को संवारने में उनकी मां का सबसे बड़ा हाथ था। उनकी मां ही थी जो उनके हर कदम में सही राय दिया करती थीं। पर मां का साथ लंबे समय तक कादर के साथ नहीं था। उनकी मां को एक गंभीर बीमारी थी, लेकिन उन्होंने इस बीमारी की भनक कभी भी कादर को नहीं लगने दी। एक दिन कादर जैसे ही घर आए, उन्होंने देखा कि उनकी मां खून की उल्टियां कर रही हैं। ये देखकर कादर के होश उड़ गए। उन्होंने मां से पूछा कि ये क्या है और तुमने मुझे इस बारे में क्यों नहीं कुछ बताया था। मां ने जवाब दिया कि ये कुछ भी नहीं पर उनकी उल्टियां रुक नहीं रही थी। ये देखकर कादर आनन-फानन में डॉक्टर को लेने चले गए। अस्पताल जाकर उन्होंने डाॅक्टर को मां की हालात के बारे में बताया और साथ चलने को कहा। डॉक्टर ने साथ चलने को मना कर दिया। बहुत मनाने के बाद भी जब डॉक्टर नहीं माने, तब कादर ने उन्हें फिल्मी अंदाज में उठाकर घर ले आए। कादर जैसे ही घर पहुंचे तो देखा कि मां की सांसे चलनी बंद हो चुकी थीं। घबराते हुए उन्होंने डॉक्टर से मां का चेकअप करने के लिए कहा।

डॉक्टर ने मां का चेकअप किया और कहा कि अब वो इस दुनिया में नहीं हैं। इस बात से कादर पूरी तरह से टूट गए। कम उम्र में मां के साए से दूर होने का ही नतीजा है कि फिल्मों में लिखे गए उनके डायलॉग में मां की कमी साफ झलकती है।

कब्रिस्तान जाकर फिल्मी डायलॉग्स की नकल करते थे कादर

बचपन से ही कादर खान को नकल करने की आदत थी। वो कब्रिस्तान में जाकर दो कब्रों के बीच बैठ खुद से बातें करते हुए फिल्मी डायालॅग्स बोलते थे। वहीं एक शख्स दीवार की आड़ में खड़े होकर उनको देखते थे। वो शख्स थे अशरफ खान। अशरफ उस समय अपने एक स्टेज ड्रामा के लिए 8 साल के लड़के की तलाश में थे। उन्होंने कादर को नाटक में काम दे दिया। और यहीं से कादर खान की किस्मत बदल गईं।

पढ़ाई में भी बेहद होशियार थे कादर खान

मां के चले जाने के बाद भी कादर ने उनसे किया हुए वादे को पूरा और ड्रामा करने के साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। कादर पढ़ाई में बेहद होशियार थे। उन्होंने मुंबई के इस्माइल युसुफ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। कादर मुंबई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर भी थे।

ड्रामा दिखाने के लिए दिलीप साहब के सामने रखी थी 2 शर्त

पढ़ाने के साथ ही कादर खान थिएटर से भी जुड़े रहे। उन दिनों उनका एक ड्रामा ताश के पत्ते बहुत फेमस हुआ था। दूर-दूर से लोग उनके इस ड्रामे को देखने के लिए आया करते थे। इसी दौरान एक दिन कादर कॉलेज में पढ़ा रहे थे, तभी उनके पास अचानक दिलीप कुमार का कॉल आया। कादर ने कॉल उठाया और उधर से आवाज आई कि मैं दिलीप कुमार बोल रहा हूं और मैं भी आप के ड्रामे ताश के पत्ते को देखना चाहता हूं। इधर कादर एक दम शांत। दिलीप कुमार का नाम सुनते ही उनके हाथ पांव ठंडे पड़ गए थे। कुछ समय बाद कादर ने दिलीप साहब को जवाब दिया। उन्होंने कहा कि आप बेशक आ कर ड्रामा दे सकते है पर इसके लिए मेरी कुछ शर्त है। उन्होंने कहा कि आपको ठीक समय पर ड्रामा देखने के लिए आना होगा क्योंकि गेट बंद होने के बाद वो दोबारा नहीं खोला जाता और दूसरा ये कि आपको पूरा ड्रामा बैठ कर देखना होगा। कादर खान के इन दोनों शर्तों को दिलीप साहब ने मान लिया और दूसरे दिन समय से आधे घंटे पहले ही वो ड्रामा देखने के लिए पहुंच गए। साथ ही उन्होंने पूरा ड्रामा देखा।

दिलीप साहब ने दिया था फिल्मी ब्रेक

दिलीप साहब को कादर खान का ये ड्रामा बहुत पसंद आया और शो खत्म होते ही उन्होंने स्टेज पर इस बात की अनाउंसमेंट कर दी कि वो फिल्मों में कादर खान को काम देंगे। इसके बाद दिलीप ने कादर को दो फिल्मों में साइन किया।

एक्टिंग के अलावा स्क्रिप्ट राइटिंग का भी किया काम

एक स्क्रिप्ट राइटर के रूप में कादर खान का करियर तब शुरू हुआ जब नरिंदर बेदी ने उनके द्वारा लिखे गए थिएटर प्ले को देखा और उन्हें इंदर राज आनंद के साथ जवानी दीवानी की स्क्रिप्ट लिखने के लिए कहा , जिसके लिए कादर खान को 1500 रुपये मिले थे। 1970 और 80 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों के लिए कहानियां लिखीं।

अमिताभ बच्चन को सर जी नहीं बोलना, कादर खान को महंगा पड़ा

कादर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक दिन साउथ इंडियन फिल्म डायरेक्टर ने उन्हें फिल्मों के कुछ डायलॉग के बारे में बात करने को बुलाया था। इसके बाद डायरेक्टर ने कहा कि आप सर जी से नहीं मिले। कादर खान ने कहा कि कौन सर जी। डायरेक्टर ने अमिताभ बच्चन की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये हैं सर जी। कादर खान हैरान रह गए पर उन्होंने वहां कुछ बोला नहीं।

दरअसल, फिल्मी इंडस्ट्री में उस समय हर कोई अमिताभ बच्चन को सर जी कहकर बुलाने लगा था। लेकिन कादर खान का कहना था कि मैं कैसे उनको सर जी कह सकता हूं। वो मेरे लिए एक दोस्त और छोटे भाई के जैसे हैं। इसका यही नतीजा हुआ कि आखिरी समय में कादर खान ना कोई फिल्म मिली ना ही किसी फिल्म का डायलॉग लिखने को मिला।

लाइलाज बीमारी बन गई मौत की वजह

कादर खान जीवन के अंतिम दिनों में सुप्रान्यूक्लियर पाल्सी बीमारी से जूझ रहे थे, जो कि एक लाइलाज बीमारी है। सांस लेने में तकलीफ के कारण उन्हें 28 दिसंबर 2018 को कनाडा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वो अपने बेटे-बहू के पास इलाज कराने के लिये लिये आये थे। इसके बाद 31 दिसंबर, 2018 को कनाडा में कादर खान का निधन हो गया था।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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