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समाज

लडकियों की सौदेबाजी, कुप्रथा के खिलाफ आखिरी पुकार, सिहर जाती है रुह, ऐसी प्रथाओं के कारण

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सुरेंद्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट

राजस्थान के नागौर जिले में 21 वर्षीय सुमन ने आत्महत्या कर ली थी, और उसके द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट में उसने समाज और आटा-साटा की कुप्रथा को अपनी मौत का जिम्मेदार बताया। उसने अपने भाइयों को यह कसम भी दी कि वे अपनी बहन की चिता पर अपना घर नहीं बसाएंगे। दैनिक भास्कर की टीम ने इस कुप्रथा के बारे में गहन पड़ताल की और पाया कि यह प्रथा राजस्थान के कई गांवों में प्रचलित है। 

आटा-साटा एक ऐसी कुप्रथा है जिसमें लड़कियों की सौदेबाजी तीन से चार परिवारों के बीच होती है, ताकि उनके नाकारा और उम्रदराज बेटे की शादी हो सके और परिवार के अन्य लड़कों की भी शादी सुनिश्चित हो सके। इस प्रथा के तहत लड़कियों की जिंदगी खराब हो जाती है, खासकर जब उन्हें उनके जन्म से पहले ही सौदेबाजी का हिस्सा बना दिया जाता है। अगर बेटी नहीं होती तो रिश्तेदार की बेटी को जबरदस्ती इस शर्त पर दिया जाता है कि बदले में उन्हें भी बेटी मिलेगी।

आटा-साटा प्रथा का असर

  1. लड़की के बदले लड़की का लेन-देन : माता-पिता अक्सर अपने बेटे की शादी के लिए यह शर्त रखते हैं कि अगर वे अपनी बेटी देंगे तो उनकी बेटी की शादी उनके बेटे से करेंगे। इस तरह लड़की के बदले लड़की का लेन-देन होता है।
  2. उम्र के अंतराल को नजरअंदाज करना : इस प्रथा में अक्सर लड़के और लड़की के बीच उम्र के अंतराल को भी नजरअंदाज कर दिया जाता है। कई बार 21 साल की लड़की की शादी 40 साल के व्यक्ति से कर दी जाती है।
  3. लड़कियों की शादी रोकना : कई मामलों में परिवार अपने बेटे की शादी के लायक होने तक अपनी बड़ी बेटी की शादी रोक देते हैं। जब बेटा शादी लायक हो जाता है, तब बड़ी बेटी की आटा-साटा के बदले शादी कर दी जाती है।
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इस आटा-साटा की ही देन है कि कई परिवार वाले अपनी बेटी की शादी तब तक नहीं करते, जब तक उनका बेटा भी शादी के लायक ना हो जाए। जब लड़का भी शादी के लायक हो जाता है, तो माता-पिता दोनों बच्चों की शादी आटा-साटा से करवा देते हैं।

कई मामलों में यह अदला-बदली बचपन में ही कर दी जाती है। जब लड़कियां बड़ी होती हैं और उन्हें इस बारे में बताया जाता है तो वे सदमे में चल जाती हैं। कई हिम्मत रखकर इसे तकदीर मान लेती हैं। कई साहस जुटाकर परिवार-समाज के ख़िलाफ़ जाकर दूर भाग जाती हैं। वहीं, सुमन जैसी कई लड़कियां इससे हारकर अपना जीवन ही ख़त्म कर लेती हैं।

ऐसे ही स्याह किस्से राजस्थान से लगातार सामने आ रहे हैं। कई गांवों में फैली यह कुप्रथा लड़के-लड़कियों का जीवन ख़राब कर दे रही है। बहुत से लोगों का मानना है कि इस प्रथा के कारण लड़की ढूंढने में परेशानी नहीं होती। दहेज लेन-देन की दिक्कत भी नहीं होती। लेकिन, अपनी सहूलियत के चक्कर में परिवार लड़की को भूल जाता है और उसे जीवन भर ऐसे रिश्ते को ढोना पड़ता है, जिसे वह तनिक भी नहीं चाहती। इस प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठनी शुरू हुई है, लेकिन जिस ताकत से उठनी चाहिए, वैसा अब भी नहीं हो पाया है।

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आटा-साटा प्रथा के कारण उत्पन्न विवाद

– नागौर की सुमन की मौत के अलावा, इस प्रथा के कारण कई और दर्दनाक घटनाएं सामने आई हैं। जैसे, सालावास में आटा-साटा प्रथा के तहत शादी के बाद दो परिवारों में विवाद हुआ और एक युवती के अपहरण और मारपीट की घटना सामने आई।

– बाड़मेर जिले में अर्जियाना गांव में उम्रदराज लड़के की शादी के बदले में जब लड़की के परिवार ने अपनी बेटी की शादी का दबाव बनाया, तो लड़की की हत्या कर दी गई।

– जयपुर में मालवीय नगर में आपसी विवाद के बाद पुलिस जांच में आटा-साटा प्रथा का पता चला।

– बाड़मेर जिले के मायलावास गांव में एक लड़की ने उम्रदराज व्यक्ति से शादी करने से इंकार किया, तो उसे और उसके परिवार को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा।

बेटियों की घटती संख्या और बेरोजगारी

लड़कों की बेरोजगारी और कम पढ़ाई के चलते आटा-साटा प्रथा का मुख्य कारण राजस्थान में लड़कियों की कमी है। ऐसे समाज में जहां लड़कियां कम हैं, वहां लड़की के बदले लड़की की शर्त रखी जाती है। कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार लड़कों को दुल्हन नहीं मिलती, इसलिए वे अपनी बहन के बदले आटा-साटा करके शादी करते हैं।

इस प्रकार, आटा-साटा प्रथा लड़कियों की जिंदगी को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है और इसे समाप्त करने की सख्त जरूरत है।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

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