समाज

बेटे की बेरुखी ने तोड़ा पिता का दिल – जिंदगीभर का इंतजार, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं आया संतान

WhatsApp Image 2025-04-21 at 21.38.46_2d56b35c
WhatsApp Image 2025-04-21 at 21.38.45_3800383c
IMG-20250425-WA0005
IMG-20250425-WA0006
previous arrow
next arrow
155 पाठकों ने अब तक पढा

“हिमाचल प्रदेश के सरकाघाट में एक बुजुर्ग पिता ने बेटे के इंतजार में अस्पताल में दम तोड़ दिया, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए भी संतान नहीं पहुंची। यह हृदयविदारक कहानी उन माता-पिताओं की पीड़ा दर्शाती है, जिन्हें संतान की उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।”

एक पिता के लिए उसकी संतान सिर्फ उसका वारिस नहीं, बल्कि उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी पूंजी होती है। वह अपने सारे सपने, इच्छाएं और भविष्य अपने बच्चों पर न्योछावर कर देता है। लेकिन जब वही संतान अपने माता-पिता को भूल जाए, तो यह दर्द असहनीय हो जाता है। ऐसी ही एक दिल दहलाने वाली घटना हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सरकाघाट में सामने आई, जहां एक बुजुर्ग पिता ने अपने बेटे की राह देखते-देखते दम तोड़ दिया। दुखद बात यह रही कि अंतिम संस्कार के लिए भी बेटा नहीं पहुंचा।

बेटे के इंतजार में बीत गई जिंदगी

सरकाघाट की ग्राम पंचायत जमनी के गांव जनीहण में रहने वाले 72 वर्षीय धर्मचंद बीते चार महीने से नागरिक अस्पताल में भर्ती थे। उनकी तबीयत काफी खराब थी, लेकिन उन्हें एक ही उम्मीद थी – कि उनका बेटा आएगा, उनका हाल पूछेगा, उन्हें सहारा देगा। पर ऐसा नहीं हुआ। बेटा, जो पंजाब में रहता था, उसे पिता की गंभीर हालत की जानकारी दी गई, फिर भी उसने आने की जहमत नहीं उठाई।

यह सिर्फ धर्मचंद की कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों माता-पिताओं की व्यथा है, जो अपने ही बच्चों के प्यार और साथ की उम्मीद में जिंदगी बिता देते हैं, मगर अंत में उन्हें अकेले ही दुनिया छोड़नी पड़ती है।

गांववालों ने निभाया इंसानियत का फर्ज

जब धर्मचंद का निधन हुआ, तो शाम तक भी उनका कोई स्वजन नहीं पहुंचा। ऐसे में गांववालों और पंचायत के लोगों ने आगे आकर अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी निभाई। पंचायत प्रधान ज्ञान चंद, उपप्रधान सुभाष, चौकीदार जगदीश, वार्ड सदस्य रणजीत सिंह और पूर्व उपप्रधान बृजलाल अस्पताल पहुंचे और नगर परिषद तथा अस्पताल कर्मियों की मदद से सरकाघाट मोक्षधाम में धर्मचंद का अंतिम संस्कार किया।

"एक बुजुर्ग पिता अस्पताल के बिस्तर पर अकेले बैठे हैं, दरवाजे की ओर आशा और दुखभरी निगाहों से देख रहे हैं। कमरे में एक नर्म रोशनी जल रही है, और पास की टेबल पर एक धुंधली पारिवारिक तस्वीर रखी है, जो उनकी तन्हाई को दर्शाती है। पृष्ठभूमि गर्म और ठंडे रंगों के मिश्रण से भावनात्मक गहराई को उजागर करती है।"

अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारियों की आंखें नम थीं। चार महीने तक उन्होंने धर्मचंद की सेवा की, मगर दुख इस बात का था कि उनके अपने ही उन्हें कंधा देने तक नहीं आए।

क्या सच में इतना स्वार्थी हो गया है समाज?

आज के दौर में रिश्ते सिर्फ जरूरतों तक सीमित होते जा रहे हैं। जब तक माता-पिता संतान की जरूरतें पूरी कर सकते हैं, तब तक वे महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन जैसे ही वे कमजोर हो जाते हैं, उन्हें बोझ समझ लिया जाता है।

धर्मचंद की कहानी उन सभी बेटों के लिए एक सबक है, जो अपने माता-पिता को अनदेखा कर रहे हैं। यह सोचने की जरूरत है कि अगर आज हम अपने माता-पिता का साथ छोड़ देंगे, तो कल हमारे साथ क्या होगा?

इस घटना ने समाज के उस कड़वे सच को उजागर किया है, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। माता-पिता हमारी जड़ों की तरह होते हैं – वे हमें सहारा देते हैं, हमें बढ़ने का अवसर देते हैं। लेकिन अगर जड़ों को ही काट दिया जाए, तो पेड़ अधिक दिनों तक खड़ा नहीं रह सकता।

धर्मचंद की तरह कोई और बुजुर्ग इस पीड़ा से न गुजरे, इसके लिए हमें अपने अंदर संवेदनशीलता लानी होगी। अपने माता-पिता के साथ समय बिताइए, उनका सम्मान कीजिए और उन्हें वह प्यार दीजिए, जिसके वे हकदार हैं।

➡️राकेश सूद की रिपोर्ट

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close