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November 22, 2024 2:16 pm

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अजन्मे बच्चों का भ्रूण परिक्षण ; पूर्वाग्रह पर विश्वास या संवेदनहीनता की हद पार? 

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

समाज में ऐसी धारणाओं की वजह से न जाने कितनी मुश्किलें अपने जटिल स्वरूप में कायम हैं, जिनका तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं होता। किसी परिवार में बेटी के जन्म को लेकर उसकी मां को जिम्मेदार मानना भी एक ऐसी ही धारणा है, जिसकी वजह से न जाने कितनी महिलाओं को परिवार और समाज में मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

बहुत सारे लोग पहले से कायम इस तरह की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं और इस वजह से किसी महिला को अपमानित या प्रताड़ित करने से भी नहीं हिचकते। ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं, जिनमें ऐसे दुराग्रह के कारण परिवार की प्रताड़ना से तंग आकर किसी महिला ने आत्महत्या कर ली या उसकी हत्या कर दी गई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसे ही एक मामले में समाज को आईना दिखाया है कि बेटी के जन्म को लेकर प्रचलित धारणाएं विज्ञान के लिहाज से एक झूठ पर आधारित हैं।

दरअसल, ऐसे पूर्वाग्रहों पर विश्वास करने वाले लोग न तो तथ्यों को खोजने-जानने का प्रयास करते हैं, न ही अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं। आमतौर पर वे निराधार बातों को भी सच मान कर किसी महिला के खिलाफ अक्सर संवेदनहीनता की हद पार कर जाते हैं। यही वजह है कि अदालत ने ऐसे लोगों को शिक्षित करने की जरूरत बताई है, जो अपने ‘वंश वृक्ष को सुरक्षित रखने’ की जिम्मेदारी अपनी बहुओं पर थोपते और उन्हें प्रताड़ित करते हैं।

ऐसा करते हुए विज्ञान के इस बुनियादी सिद्धांत पर गौर करना जरूरी नहीं समझा जाता कि अजन्मे बच्चे के लिंग निर्धारण के लिए पुरुष का गुणसूत्र जिम्मेदार होता है, न कि महिला का। गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय में दहेज मामले की सुनवाई के दौरान एक महिला के परिजनों ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी को उसके ससुराल वाले दहेज की मांग करने के साथ-साथ इसलिए भी प्रताड़ित करते थे कि उसने दो बेटियों को जन्म दिया था। लगातार यातना से परेशान होकर पीड़ित महिला ने आत्महत्या कर ली थी।

अव्वल तो बेटी के बजाय बेटा पैदा होने की इच्छा पालना ही अपने आप में लैंगिक भेदभाव का स्रोत है और यह किसी समाज के सोच के स्तर पर पिछड़े होने का सबूत भी है। दूसरे, विज्ञान के विकास के इस चरम दौर में भी लोग अपने पूर्वाग्रहों के बरक्स वैज्ञानिक हकीकतों से मुंह चुराते रहते हैं। हालांकि यह स्कूली शिक्षा के दौरान ही बच्चों को पढ़ाया-बताया जाता रहा है कि महिला के भीतर सिर्फ एक्स-एक्स गुणसूत्र होते हैं, जबकि पुरुषों में एक्स और वाई, दोनों गुणसूत्र होते हैं।

अंडाणु एक्स या वाई गुणसूत्र से जुड़ता है या नहीं, इसी पर लड़के या लड़की का जन्म निर्भर होता है। मगर तथ्यों को जानना-समझना लोगों को जरूरी नहीं लगता कि गर्भवती महिला बेटे को जन्म देगी या बेटी को, यह उसके पति के गुणसूत्र पर निर्भर होता है। पारंपरिक या जड़ आख्यानों से तैयार प्रतिगामी मानसिकता की वजह से इस वैज्ञानिक सच से अनजान या इसकी अनदेखी करते हुए लोग कई बार बेटी को जन्म देने के लिए बहू को अलग-अलग तरीके से अपमानित करते, यातना देते हैं।

विवाह के बाद दहेज की अतृप्त मांग करके प्रताड़ित करना इसका एक नतीजा होता है, जबकि कई बार इसके पीछे धारणागत जड़ताएं होती हैं। इस लिहाज से दिल्ली उच्च न्यायालय ने महिलाओं के खिलाफ सदियों से कायम एक सामाजिक जड़ता के खिलाफ वैज्ञानिक दृष्टि से समाज को एक जरूरी सच की ओर ध्यान दिलाया है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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