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जिंदगी एक सफरव्यक्तित्व

ऐसे ही नहीं धाकड़ नेता कहलाते थे मुलायम सिंह यादव… बड़े बड़ों को पटखनी दी है…सादर श्रद्धांजलि ??

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मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव को पहलवान वाला दर्जा मिला हुआ। वह पहलवान, जिसने खम ठोंक कर राजनीति की। सियासी अखाड़े में अपने विरोधियों को हमेशा चित किया। चिर विरोधी को ऐसी पटखनी दी कि सियासत के सूरमा दोबारा खड़ा हो पाने की स्थिति में भी नहीं आ पाए हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस लंबे समय तक सत्ता में बनी रही। मुलायम सिंह यादव ने मंडल कमीशन की राजनीति से उपजे सामाजिक समीकरण के ताने-बाने को ऐसे जोड़ा कि लगभग तीन दशक बाद भी पार्टी यूपी की राजनीति में अपनी जगह तलाशने की कोशिश करती दिखती है। मुलायम सिंह यादव ने माय (Muslim + Yadav) समीकरण को मजबूत कर यूपी की राजनीति को एक अलग आकार दिया। वहीं, वर्ष 1990 में कार सेवा के लिए अयोध्या आए राम भक्तों पर हुए गोली कांड को लेकर भी उनकी चर्चा हमेशा होती रही। आज उनके जन्म जयंती के मौके पर प्रदेश और देश उन्हें याद कर रहा है।

अयोध्या कांड ने यूपी की राजनीति को दो पाटों में बांट दिया। एक वर्ग मुलायम समर्थक बन गया दूसरा दूर मुलायम विरोधी के तौर पर देखा जाने लगा। मुलायम विरोधी खेमा बार-बार बदलता रहा। कभी वह वर्ग मायावती के पाले में गया तो 2014 में केंद्र की सत्ता में नरेंद्र मोदी के आगमन के बाद यह वर्ग भारतीय जनता पार्टी की तरफ जुड़ता दिखा। तमाम परिस्थितियों में मुलायम हमेशा प्रासंगिक बने रहे। यही कारण रहा कि विरोध की राजनीति के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के तमाम दिग्गज मुलायम सिंह यादव के खिलाफ अंतिम समय तक बयान देने से बचते रहे। यूपी की राजनीति का पहलवान ऐसे ही नहीं उन्हें कहा जाता है।

साढ़े पांच दशक तक चर्चा के केंद्र में मुलायम

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से आने वाले मुलायम सिंह यादव करीब साढ़े पांच दशक तक राजनीति की चर्चा के केंद्र में बने रहे। वे तीन बाद प्रदेश के सीएम रहे। चौथी बार समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत में आई तो उन्होंने वर्ष 2012 में अपने पुत्र अखिलेश यादव को सीएम बनाकर केंद्र की राजनीति में खुद को सीमित कर लिया। मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस विरोधी राजनीतिक सोच के साथ सियासी अखाड़े में कदम रखा। राम मनोहर लोहिया के सानिध्य में उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना। चौधरी चरण सिंह ने उन्हें सियासी बुलंदी तक पहुंचाया। पहलवानी के अखाड़े से राजनीति के मैदान तक मुलायम हमेशा मजबूत खिलाड़ी बने रहे।

1939 में हुआ था जन्म

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को इटावा के सैफई गांव में हुआ। उनके पिता का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मारुति देवी था। मुलायम के पिता किसान थे। मुलायम को बचपन से ही पहलवानी का शौक था। उन्होंने कुश्ती के कई दांव सीखे। उनके चरखा दांव की चर्चा तो सियासी महकमे तक में होती रही है। चरखा दांव में फंसने वाला कोई भी पहवान कभी भी मुलायम से पार नहीं पा सका था। कुछ यही हाल उन्होंने सियासी विरोधियों का किया। जो भी उनके चरखा दांव में फंसा, कभी भी उनके सामने खड़ा नहीं हो पाया। यूपी की राजनीति से केंद्र तक मुलायम ने अपनी राजनीति का लोहा मनवाया। देश के रक्षा मंत्री बने। लेकिन, प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।

15 साल की उम्र में जेल यात्रा

मुलायम सिंह यादव ने महज 15 साल की आयु में पहली बार जेल यात्रा की। दरअसल, देश की आजादी के बाद बागडोर कांग्रेस के पास थी। पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने। इसके साथ ही देश में समाजवाद का आंदोलन शुरू हो गया। डॉ. राम मनोहर लोहिया इसकी अगुआई कर रहे हैं। किशोर मुलायम सिंह यादव को भी यह भाने लगा। कांग्रेस विरोध के आंदोलनों में वे शामिल होने लगे। डॉ. लोहिया ने वर्ष 1954 में नहर रेट आंदोलन शुरू किया। 24 फरवरी 1954 को यूपी में इस आंदोलन का असर दिखा। जगह- जगह प्रदर्शन होने लगे। उस समय सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए नेताओं को जेल में डालना शुरू किया।

डॉ. लोहिया और उनके समर्थकों के जेल जाने के बाद लोगों का विरोध शुरू हो गया। इटावा में भी प्रदर्शन शुरू हो गया। नत्थू सिंह और अर्जुन सिंह भदौरिया के नेतृत्व में प्रदर्शन हुआ। प्रशासन ने जुलूस में शामिल करीब 2000 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जेल भेज दिया गया। इसमें 15 वर्षीय मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे।

मुलायम को राजनीति में लाने वाले रहे नत्थू सिंह

मुलायम सिंह यादव के स्वभाव में ही लीडरशिप क्वालिटी थी। इसे स्थानीय नेता नत्थू सिंह ने पहचाना। मुलायम की पहलवानी के नत्थू हुए। इसके बाद उन्होंने मुलायम की राजनीतिक यात्रा में सहयोग दिया। नत्थू सिंह ने अपनी परंपरागत विधानसभा सीट जसवंत नगर छोड़ी। यहां से मुलायम सिंह यादव को टिकट दिलाने के लिए डॉ. लोहिया के यहां पहुंच गए। नत्थू सिंह की सिफारिश पर डॉ. लोहिया ने जसवंत नगर से मुलायम का टिकट फाइनल कर दिया। इसके बाद राजनीति के मैदान में उतरे मुलायम ने अपने पहले ही दांव में कांग्रेसी दिग्गज को पटखनी दे दी। 28 साल के मुलायम यूपी विधानसभा के सबसे युवा विधायक चुने गए।

मीसा के तहत गिरफ्तार हुए थे मुलायम

वर्ष 1975 में इमरजेंसी लगाए जाने का विरोध मुलायम सिंह यादव ने जोरदार तरीके से किया। मीसा के तहत 27 जून 1975 को उन्हें भालेपुरा गांव से गिरफ्तार किया गया। वहां वे जमीन विवाद का मामला सुलझाने गए थे। जनवरी 1977 तक करीब 18 महीने मुलायम को जेल में रहना पड़ा। इस दौरान मुलायम का सभी काम उनके भाई शिवपाल यादव ने संभाला। इमरजेंसी हटने के बाद पूरा विपक्ष एकजुट था। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी का गठन किया गया। देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी। उन्होंने कई राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया। यूपी में चुनाव के बाद रामनरेश यादव मुख्यमंत्री बने। रामनरेश कैबिनेट में मुलायम को जगह मिली। वे सहकारिता मंत्री बनाए गए। वर्ष 1980 में मुलायम लोक दल के अध्यक्ष चुने गए। यह बाद में जनता दल का हिस्सा बन गई। 1982 में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बने।

पहली बार 1989 में मिली सीएम की कुर्सी

मुलायम सिंह यादव ने यूपी सीएम की कुर्सी वर्ष 1989 में पहली बार संभाली। यह सरकार अधिक टिक नहीं पाई। 24 जनवरी 1991 को मुलायम सरकार गिर गई। मुलायम ने इसके बाद जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन किया। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम और मायावती की पार्टी बसपा से हाथ मिलाया। 1992 के बाबरी विध्वंश के बाद हिंदुत्व की लहर के बीच प्रदेश में नारा गूंजा ‘मिले मुलायम- कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’। चुनावी मैदान में यह समीकरण सफल रहा। कल्याण सिंह दोबारा सीएम नहीं बन पाए। मुलायम जरूर दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए।

5 दिसंबर 1993 को मुलायम सिंह ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली। हालांकि, यह सरकार भी पांच साल नहीं चल सकी। बसपा ने समर्थन वापस ले लिया। 2 जून 1995 को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हो गया। इसके बाद मुलायम और मायावती के बीच की दूरी बढ़ गई। दरअसल, मुलायम सरकार की सहयोगी बसपा ने समर्थन वापसी के लिए गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई थी। मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में हंगामा कर दिया। गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम सरकार गिर गई। मायावती बीजेपी के समर्थन से सीएम बन गईं।

कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश

देश की राजनीति को बदलने में राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद ने बड़ी भूमिका निभाई। भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया। राम मंदिर के मुद्दे को एक प्रकार से नई ऊर्जा से मुलायम सिंह यादव ने ही भरा। वह भी अपने एक फैसले के जरिए। दरअसल, 30 अक्टूबर 1990 को रामभक्तों ने अयोध्या में कारसेवा की घोषणा की थी। हजारों की संख्या में कारसेवक बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे। सीएम मुलायम सिंह यादव ने तब एक ऐसा फैसला लिया, जिसने प्रदेश और देश की राजनीति की दिशा ही बदल दी। मुलायम सरकार ने सख्त फैसला लेते हुए कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। अयोध्या की सड़कें रामभक्त कारसेवकों के खून से लाल हो गईं। इस घटना ने मुलायम की छवि को ही बदल कर रख दिया।

मुलायम की छवि हिंदू विरोधी नेता की बन गई। हिंदूवादी संगठनों ने उन्हें मुल्ला मुलायम कहना शुरू किया। वहीं, मुलायम ने इस छवि के जरिए मुस्लिम समाज में अपनी नई पार्टी की पकड़ को मजबूत कर लिया। कभी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक मुस्लिम अब मुलायम खेमे के साथ था। वहीं, यादव समाज उनके साथ पहले ही खड़ा था। ऐसे में प्रदेश की राजनीति में उन्होंने माय समीकरण को स्थापित कर दिया। घटना के एक साल बाद मुलायम सरकार चली गई, लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंश के एक साल बाद वे फिर सीएम की कुर्सी पर थे।

गेस्ट हाउस कांड के बाद बदली स्थिति

मुलायम सिंह यादव की गेस्ट हाउस कांड के बाद स्थिति बदली। वे सियासत के ताकतवर नेता बनकर उभरे। 1996 में मैनपुरी से पहली बार चुनकर वे लोकसभा पहुंचे। केंद्र में किस पार्टी को बहुमत नहीं मिलने पर मुलायम सिंह यादव किंगमेकर की भूमिका में दिखे। थर्ड फ्रंट की सरकार में वे रक्षा मंत्री बनाए गए। हालांकि,यह सरकार 1998 में गिर गई। मुलायम ने 29 अगस्त 2003 को तीसरी और आखिरी बार सीएम पद की शपथ ली। वे 11 मई 2007 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2004 से 2014 के बीच यूपीए सरकार के मददगार के तौर पर उनकी भूमिका दिखी। 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी के वापस आने के संसद में दिए गए बयान की भी खासी चर्चा होती रही है। अखिलेश यादव उनके निधन के बाद उनकी राजनीति को आगे बढ़ाने का प्रयास करते दिख रहे हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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