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November 23, 2024 6:17 am

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मौत के घर से जिंदा वापस आनेवाले सजायाफ्ता अपराधी से अपनों को खोने वाले पूछ रहे सवाल, बच्चों को किसने मारा?

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

मेरठ: सेक्टर 31 के निठारी गांव स्थित डी-5 कोठी के आसपास एक के बाद एक नर कंकाल मिलने से लोगों की रूह कांप उठी थी। जांच शुरू हुई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। लापता 18 बच्चों और एक कॉल गर्ल की हत्या की बात सामने आई। जांच का जिम्मा सीबीआई को दिया गया। डी-5 कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और नौकर सुरेंद्र कोली आरोपी बने, 16 केस में ट्रायल शुरू हुआ। फांसी की सजा कई केस में सुनाई गई। अब करीब 17 साल बाद हाई कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया। इस फैसले के बाद सोमवार को पीड़ित परिवार के साथ आसपास के लोग खंडहर हो चुकी D-5 कोठी के पास पहुंचे तो उनका दर्द छलक गया। एक पीड़ित पिता ने गुस्से में कोठी पर ईंट फेंके। पीड़ित माता पिता का दुख और गहरा हो गया। वहां पहुंचे अपनों को खोने वालों ने कहा कि 17 साल बाद भी हम लोगों को न्याय नहीं मिला। निठारी कांड में अपने बच्चों को खाने वाले पैरंट्स का लगभग एक ही सवाल है कि अगर पंढ़ेर और कोली निर्दोष हैं तो उनके बच्चों को किसने मारा है?

निठारी कांड के मुख्य अभियुक्त सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को इलाहाबाद हाईकोर्ट के बरी करने के आदेश पर जल्लाद पवन कुमार उर्फ पवन जल्लाद आश्चर्य व्यक्त किया है। बता दें पवन जल्लाद वही शख्स हैं, जिन्हें 2015 में सुरेंद्र कोली को मेरठ जेल में फांसी पर चढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई थी। उनका कहना है कि एक सजायाफ्ता अपराधी, जिसकी दया याचिका को राष्ट्रपति खारिज कर चुके हैं, उसे छोड़ दिया गया। ये परेशान करने वाला है।

फांसी के लिए की गई अपनी तैयारियों को याद करते हुए पवन ने मीडिया को बताया, “मैंने फांसी तंत्र को व्यवस्थित रखने के लिए 10 दिनों तक काम किया था क्योंकि 70 के दशक के मध्य से मेरठ जेल में कोई फांसी नहीं हुई थी।” वह कहते हैं, “मुझे याद है कोली की फांसी बस होने ही वाली थी। मैं फंदा खींचने ही वाला था कि एक घंटे पहले हाईकोर्ट का आदेश आ गया, जिसमें उसकी फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया।”

उन्होंने कहा कि एक दोषी को रिहा होते देखना दुखद है। “मुझे याद है, उसकी मृत्यु से पहले केवल एक घंटा बचा था। मैं सितंबर 2015 में कोली के जीवन को समाप्त करने के लिए लीवर खींचने वाला था, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के कारण वह मेरे फंदे से बचने में कामयाब रहा। हाईकोर्ट ने उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।”

कौन हैं पवन जल्लाद?

बता दें पवन चौथी पीढ़ी के जल्लाद हैं। उन्होंने ही 2020 में निर्भया मामले के चार दोषियों को फांसी दी थी। पवन के परदादा लक्ष्मण राम अंग्रेजों के लिए काम करते थे, उन्होंने ही भगत सिंह को फांसी दी थी। उनके दादा कल्लू ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के हत्यारों को सूली पर चढ़ाया था। उनके पिता मम्मू 19 मई, 2011 को अपनी मृत्यु तक 47 वर्षों तक राज्य के जल्लाद थे। पवन 2013 में यूपी जेल निदेशालय के अनुचर के रूप में शामिल हुए।

पवन कहते हैं कि एक जल्लाद के रूप में मैं समाज से बुराई को दूर करता हूं। यह मेरा कर्तव्य है और मुझे इस बात पर बहुत गर्व है कि मेरे परिवार को जघन्य अपराधों के अपराधियों के जीवन को समाप्त करने के लिए चुना गया है। जल्लादों के परिवार के लिए ऐसी कोई प्रशिक्षण नियमावली नहीं है। मैं अपने दादाजी की मदद करता था, जिससे मुझे कठिनाइयां सीखने में मदद मिली। यह एक तकनीकी प्रक्रिया है। फांसी के समय उपकरण सही होना चाहिए। प्रक्रिया की सावधानीपूर्वक योजना बनानी होगी। हमें मरने वाले व्यक्ति की पीड़ा को लम्बा नहीं खींचना चाहिए, भले ही वह सबसे बड़ा अपराधी हो। इसलिए, दोषी के वजन, रस्सी की ताकत और मंच के उस हिस्से को रास्ता देने वाले लीवर जहां दोषी खड़ा होता है, हर चीज का ध्यान रखना पड़ता है। लटकाना दुर्लभ है, इसलिए वही उपकरण अक्सर दशकों के बाद भी उपयोग में आता है।

सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलना चाहिए

हालांकि, पवन को इसके साथ ही अपनी कम आय का अफसोस भी है। पवन को रिटेनर के तौर पर 7,500 रुपये मासिक मिलते हैं। वह कहते हैं कि भुगतान की गई राशि एक परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। इसे अब बढ़ना चाहिए और मुझे सभी लाभों के साथ सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलना चाहिए। आखिरकार मैं गंदा काम कर रहा हूं।

शबनम का तो डेथ वारंट नहीं आया

इससे पहले पवन जल्लाद 2021 में स्वतंत्र भारत में पहली बार एक महिला शबनम अली (38) को फांसी देने की तैयारी कर चुके थे। शबनम को अपने प्रेमी और साथी सलीम की मदद से अपने परिवार के सात सदस्यों की गला काटकर हत्या करने का दोषी ठहराया गया था, क्योंकि उसके रिश्तेदारों को उनका रिश्ता मंजूर नहीं था। वह याद करते हुए कहते हैं, “मुझे मथुरा जेल में शबनम और सलीम को फांसी देने की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था लेकिन डेथ वारंट कभी नहीं आया। मुझे बताया गया कि उसने मृत्युदंड से बचने के लिए अभी तक अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल नहीं किया है।”

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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