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हार हजम, तीन बार सीएम.. सियासत के बहुत बड़े जादूगर अशोक गहलोत 

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आनंद शर्मा की रिपोर्ट 

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 3 मई 2023 को 72 साल (Ashok Gehlot News) के हो गए हैं। 46 साल के राजनैतिक जीवन में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। अभी अशोक गहलोत ने प्रदेश कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता हैं। वे तीन बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, तीन बार कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव, तीन बार केंद्रीय मंत्री और तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री (Rajasthan News in Hindi) रहे हैं। गहलोत को राजनीति का ‘जादूगर’ यूं ही नहीं कहा जाता है। उनकी राजनैतिक सोच और दूरदृष्टि के कारण वे प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं (Rajasthan Congress) में हैं। देश के किसी भी राज्य में जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव होते हैं तो कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत को वहां चुनाव प्रचार के लिए जरूर भेजते हैं।

चार बार हारे लेकिन हौसला नहीं डिगा

अशोक गहलोत कभी हार नहीं मानने वाले नेता हैं। भले ही कांग्रेस सत्ता में आने में कामयाब हो या ना हो लेकिन गहलोत ने कभी हार नहीं मानी। अशोक गहलोत स्वयं चार बार चुनाव हारे हैं लेकिन उन्होंने अपने हौंसले को कभी गिरने नहीं दिया। कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में गहलोत खुद कहते हैं कि सबसे पहले उन्होंने संगठन का चुनाव लड़ा, तब वे 4 वोट से हार गए थे। बाद में छात्रसंघ सचिव का चुनाव लड़ा तो करीब 400 वोटों से चुनाव हार गए थे। आपातकाल के बाद वर्ष 1978 में जोधपुर की सरदार शहर विधानसभा सीट से पहली बार एमएलए का चुनाव लड़ा। लेकिन इस चुनाव में भी गहलोत को करीब चार हजार (4329) वोटों से हार गए। 1989 के लोकसभा चुनावों में भी अशोक गहलोत को हार का सामना करना पड़ा।

गांधी परिवार के सबसे करीबी नेता

राजनैतिक करियर के शुरुआती दिनों में भले ही अशोक गहलोत को हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन उन्होंने अपने हौंसले को टूटने नहीं दिया। उनकी महत्वकांक्षाएं बड़ी थीं। उन्हें पता था कि उनकी मंजिल अभी दूर है। वे एक जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर मेहनत करते रहे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान गहलोत गांधी परिवार से जुड़ गए थे। गहलोत का गांधी परिवार से बहुत नजदीक से लगाव है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी फिर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी गहलोत का काफी करीबी संबंध रहा है।

5 बार सांसद और 5 बार विधायक का जीते चुनाव

1978 के विधानसभा चुनाव में हारने के बावजूद गांधी परिवार ने अशोक गहलोत पर भरोसा जताते हुए उन्हें 1980 के लोकसभा चुनावों में जोधपुर से टिकट दिया। इस चुनाव में अशोक गहलोत ने 52 हजार 519 वोटों से जीत हासिल की। इस जीत से गहलोत के राजनैतिक करियर के सुनहरे दिनों की शुरुआत हो गई। बाद में गहलोत 1984, 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनावों जीत हासिल की। सांसद रहते हुए गहलोत को तीन बार केंद्रीय मंत्री बनने का भी मौका मिला।

विधायक बने बिना ही सीएम चुने गए गहलोत

वर्ष 1998 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला था। इस दौरान गहलोत लोकसभा सांसद थे लेकिन गांधी परिवार ने गहलोत को राजस्थान भेजा और मुख्यमंत्री की कुर्सी संभला दी। बिना विधायक बने ही गहलोत विधायक दल के नेता बने गए थे। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद साल 1999 में एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराए गए। कांग्रेस के एक विधायक से इस्तीफा दिलाकर करवाए गए उपचुनाव में अशोक गहलोत ने जीत दर्ज की और विधायक बन गए। बाद में साल 2003, 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों में गहलोत ने लगातार जोधपुर की सरदार शहर विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की। 1998 के बाद साल 2008 और 2018 में गहलोत को फिर से मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

बेटे की हार से भी नहीं टूटे गहलोत

2019 के लोकसभा चुनावों में अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर सीट पर चुनाव मैदान में उतारा गया। वैभव के सामने बीजेपी से गजेंद्र सिंह शेखावत प्रत्याशी थे। मोदी लहर के चलते वैभव गहलोत को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। बेटे की हार के बावजूद गहलोत निराश नहीं हुए। उन्हें पता है राजनैतिक सफर किसी भी नेता के लिए आसान नहीं होता है। हर तरह के साम, दाम, दंड, भेद का सामना करना पड़ता है। वर्तमान में वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के दूसरी बार अध्यक्ष हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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