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भक्तों की भीड़ से पटी दिखती अयोध्या, दिखा रही है अलग-अलग रूप ; जहां कण-कण में राम, बदल रहा वो धाम… 

रामचरितमानस विवाद के बीच अयोध्या में माहौल दिख रहा है बड़ा बदलाव

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

अयोध्या: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े स्तर पर बदलाव की कोशिश चल रही है। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अपने कुनबे और वोट बैंक को समेट कर रखने की कोशिश में जुटी हुई है। वहीं, दूसरी तरफ विपक्षी दल भाजपा के कोर वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिशें लगातार कर रहे हैं।

सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य का रामचरितमानस पर आया बयान उसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इन तमाम राजनीतिक विवाद और और जोड़-तोड़ की कोशिशों के बीच क्या जमीनी स्तर पर इन विवादों का असर हो रहा है? या फिर, जो कोशिशें हो रही हैं, वे लखनऊ के राजनीतिक महकमे तक सिमट रही हैं? ये बड़े सवाल बने हुए हैं।

इन सवालों का जवाब जानने एनबीटी ऑनलाइन की टीम प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या पहुंची। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए श्रीराम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर बड़े फैसले के बाद से अयोध्या की स्थिति बदल गई है। राम की पैड़ी से लेकर सरयू नदी के तट तक और अयोध्या की गलियों से लेकर हनुमानगढ़ी मंदिर तक माहौल बिल्कुल बदला हुआ दिख रहा है।

कभी छावनी में बदली रहने वाली अयोध्या अब भक्तों से पटी है। मंदिर का निर्माण जोरों से चल रहा है। निर्माण को देखने और रामलला के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। अयोध्या का बदला माहौल बताता है कि भक्तों में कोई भेद नहीं सब एक हैं। रामलला को एक बार देख लेने का जुनून युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक दौड़ा देता है।

अस्थाई मंदिर में विराजमान रामलला को देखकर आंखों से छलकते आंसू उन तमाम विवादों से परे भक्ति के उस पराकाष्ठा तक पहुंचाते हैं, जहां ईश्वर से मनुष्य का मिलन होता है। यही अयोध्या है, जिसे कभी युद्ध में जीता नहीं जा सकता, मानी जाने वाली। भक्तों की श्रद्धा से सराबोर। करुणासागर की भक्ति में अनंत गोते लगाती। एक बार फिर इसी अयोध्या के जीवन चरित पर सवाल उठाए जा रहे हैं। लेकिन, भक्तों के बीच ऐसा कोई सवाल या ऊहापोह नहीं दिखता। अयोध्या की ग्राउंड रिपोर्ट तो कुछ यही कहती है।

रमे रामे मनोरमे…

ऊं राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने। श्रीराम तारक मंत्र का पाठ करते सरयू तट पर आए बिहार के सीतामढ़ी निवासी अवधेश राम कहते हैं कि रामचरितमानस की बात क्यों करते हो? राम की बात करो। भगवान विष्णु के सहस्र नामों के पूण्य फल इस एक नाम से मिल जाते हैं। आप रामचरितमानस को लेकर बैठे हो। क्यों कर रहे हो ऐसा? पहले राम मंदिर बनने में बाधक बने। अब राम का नाम लेने वालों से आपको बैर है।

बहराइच से आए मिथिलेश और नीरज कहते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य राजनेता हैं। राजनीति ही करेंगे। वे सवाल करते हैं कि जब भाजपा में थे। सरकार में थे। मंत्री थे। उस समय तो उन्हें रामचरितमानस में कोई खोट नजर नहीं आया। अब उन्होंने पार्टी बदली। सत्ता में नहीं हैं। पावर नहीं है। फिर उन्हें रामचरितमानस में खोट नजर आ रहा है।

हालांकि, दोनों कहते हैं कि रामचरितमानस का मुद्दा गांवों में चर्चा का विषय तो बन रहा है। लेकिन, एक बड़ा वर्ग इस पूरी राजनीति के खिलाफ है। उनके कारण पूरी पार्टी को नुकसान होगा। नीरज कहते हैं कि महर्षि बाल्मीकि रचित रामायण संस्कृत में है। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस की भाषा सरल है। सबकी समझ में आती है। राम का नाम लेने के लिए उपयोगी भी। वे सवाल करते हैं, क्या स्वामी प्रसाद मौर्य आम जनमानस को समझ में आने वाली राम नाम की पुस्तक को प्रतिबंधित कराकर लोगों को राम से दूर करना चाहते हैं। ऐसा ही प्रयास पहले भी उनकी पार्टी की ओर से हुआ। अब वे भी इसी को आगे बढ़ा रहे हैं।

ऊं चंदनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम

सरयू नदी में स्नान के बाद आसन जमाए पुजारी आपको अपने पास बुलाते हैं। एक पंडित चंदन लगाते हुए मंत्र पढ़ते हैं, ‘ऊं चंदनस्यश महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा।’ फिर बताते हैं, अब तो ये तट गुलजार है। हर समय लोग आते रहते हैं। दिन कोई भी हो सरयू नदी में स्नान करने आने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हमलोगों की स्थिति भी सुधर रही है।

पहले भी लोग आते थे, संख्या कम थी। तनाव ज्यादा था। माहौल बदला है तो स्थिति पलटी है। रामचरितमानस विवाद को पूरी तरह से राजनीतिक बताते हुए वे कहते हैं कि राम के चरित्र को जो समझ नहीं सकता, वही इस प्रकार के विवाद खड़े कर सकता है। राम राज में कोई न नीच था। न ऊंची जाति का। सरयू सबका उद्धार करती हैं। यहां आने वाले यजमानों से हम थोड़े पूछते हैं, किस जाति से हो। यहां आने वाला हर कोई राम भक्त है। राम को मानने वाले राम पथचर को इस दुनिया में रहने वाले प्राणि अलग-अलग करके कैसे देख सकते हैं?

एक ही नारा, एक ही नाम…

हनुमानगढ़ी मंदिर के बाहर भारी भीड़ है। प्रसाद की दुकानों के एजेंट आपको अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। जूता-चप्पल, बैग सब सुरक्षित रखने की गारंटी। दुकान में जाइए, प्रसाद लीजिए। सामान रखिए। प्रसाद की कई वेराइटी उपलब्ध है। आपको जो पसंद हो। दुकानदार कहते हैं, पहले तो इधर ऐसे आ ही नहीं सकते थे। पूरा रोड जाम रहता था। संकड़ी गलियां थीं। अब चौड़ी हो गई हैं। हालांकि, शिकायत भी। हमारा दुकान भी बड़ा था, टूट गया। चौड़ीकरण में। रामपथ का निर्माण हो रहा है। उसमें भी बड़ी संख्या में दुकानें टूटी हैं। सड़क चौड़ी हुई तो इधर-आना जाना जरूर आसान हो गया है। प्रसाद-फूल लेकर मंदिर की ओर बढ़ते ही भारी भीड़। मंदिर की सीढ़ियों पर लंबी लाइन लगी है। सुरक्षाकर्मी मंदिर की सुरक्षा में तैनात।

बैच में श्रद्धालुओं को भगवान के दर्शन के लिए भेजा जा रहा है। एक भक्त आवाज लगाता है, ‘एक ही नारा, एक ही नाम’। सभी एक सुर में बोलते हैं, ‘जय श्री राम, जय श्रीराम’। रह-रहकर गूंजते नारे माहौल को भक्तिमय बनाते हैं। गोंडा से आए नरेश और विनय बताते हैं, सुबह ही घर से बाइक से निकल गए थे। देखिए 10 भी नहीं बजा और पहुंच गए। भगवान के दर्शन करेंगे। रामचरितमानस विवाद पर कहते हैं, ये सब नेताओं की बातें हैं। अगर किसी को कोई परेशानी है तो वह कोर्ट जाए। ऐसे आस्था से खिलवाड़ क्यों? ये लोग भगवान को भी राजनीति में घसीट रहे हैं।

राम राम जय सीताराम

हनुमानगढ़ी से आप राम जन्मभूमि मंदिर की तरफ बढ़ेंगे तो एक हुजूम आपके साथ जाता दिखेगा। राम नाम की रट सहज ही लगती रहती है। दशरथ महल, कनक भवन होते जब आप रामलला के पास पहुंचेंगे तो आपको लॉकर वाले अपनी तरफ आकर्षित करेंगे। रामलला के दरबार में आप फोन, बैग, कैमरा या फिर अन्य कोई सामान लेकर नहीं जा सकते। तभी एक कहता है, 11:20 हो गए। 10 मिनट बाकी है। फिर मंदिर में प्रवेश बंद हो जाएगा। आनन-फानन में लोग बैग लॉकर में जमा करते हैं। और फिर शुरू होती है दौड़। रामलला को देखने के लिए। अपनी आंखों में प्रभु श्रीराम के बाल रूप को धर और भर लेने के लिए। तमिलनाडु से वी. थन्नुवु पेथुराज भी अपने परिवार के साथ दर्शन को आए हैं। 85 साल की मां साथ में हैं। व्हील चेयर पर। वे कहती हैं, जल्दी चलो। मुझे अभी देखना है। एक घंटे इंतजार नहीं कर सकती। तीन पोस्ट पर चेकिंग के बाद रामलला का दरबार।

भगवान श्रीराम के बाल रूप को देखते ही उस बूढ़ी आंखों से निकलते आंसू बताते हैं, भक्ति की पराकाष्ठा क्या होती है? भक्त जब अपने भगवान से मिलता है, तो उसकी अवस्था क्या होती है? जीवन तर जाने सा अहसास। पेथुराज कहते हैं, अयोध्या के भगवान बालक हैं। हमारे यहां तो युवक राम आए थे। वहां से लंका गए थे। राम देश के कण-कण में हैं। जनमानस में हैं। यह अहसास आपको अयोध्या में आए भक्त सहज ही करा देंगे। रामचरितमानस विवाद पर वे नेताओं को पहले ग्रंथ के सही रूप से पढ़ने और समझने की सलाह देते हैं। वहीं, बनते भव्य मंदिर को देखकर कहते हैं, एक बार और आना पड़ेगा। यही अनुभूति अन्य भक्तों में भी देखने को मिलती है। कहीं, बजता गीत राम, राम जय सीता राम माहौल को आनंद के सागर में डुबाता हुआ प्रतीत होता है।

… और रामशिला को बस छू लेने भर की होड़

रामलला के दर्शन के बाद कारसेवकपुरम में रखे गए रामशिला को देखने जाने वालों की भीड़ भी कम नहीं है। अयोध्या के ग्रामीण इलाकों से भी लोग इसे देखने पहुंच रहे हैं। हनुमानगढ़ी के सामने मेन रोड पर पहुंचने बाद ई-रिक्शा पर सवार मालती देवी और प्रमिला देवी मिलती हैं। बातचीत के क्रम में बताती हैं, नेपाल से शालीग्राम पत्थर आया है। देखने जा रहे हैं। गांव की सभी महिलाएं देख आई हैं। देश-दुनिया से लोग आ रहे और हम ही न देखें, ऐसा कैसे होगा? कारसेवकपुरम में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों को तराशने का काम तेजी से चल रहा है। वहीं, नेपाल से लाए गए दो शालीग्राम पत्थर को विशेष घेरे में रखा गया है। देखकर हर कोई जय-जयकारे के नारे लगाता है।

श्रावस्ती से हनुमान पताखा लेकर पहुंचे युवा विनीत कुमार कहते हैं, यहां तो आना ही था। प्रभु श्रीराम जिस पत्थर से आकार लेंगे, उसे देखकर खुद को धन्य समझेंगे। हम अपने बच्चों और उनके बच्चों को बताएंगे, हमने इतिहास को बनते देखा है। रामशिला को देखने के बाद हर होई उस पर अपने सिर टिकाता है। छूता है और खुद को धन्य मानता है। इन सबके बीच रामचरितमानस पर मचा राजनीतिक संग्राम और विवाद दूर, कहीं दूर छिटका दिखता है। एक वर्ग को फायदा दिलाता हुआ।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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