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खास खबर

अपराधी, परिचितों, अपरिचितों के अंतहीन अत्याचारों से कब तक जूझती रहेंगी महिलाएं? पढ़िए इस रिपोर्ट को 

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

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हाल ही में पीलीभीत में आठ माह की गर्भवती पत्नी को बेरहम पति ने मोटर साइकिल के पीछे बांध कर घसीटा। जीवनसाथी द्वारा क्रूरता की सीमा पार करने वाली इस घटना में पत्नी के साथ गाली-गलौज और मारपीट तो हुई ही, उसका जीवन छीन लेने के इरादे से उसे मोटर साइकिल के पीछे हाथ बांध कर काफी दूर तक घसीटने की हैवानियत की गई।

बीते दिनों दिल्ली की सड़कों पर एक लड़की के क्षत-विक्षत शरीर को कई किलोमीटर तक घसीटने का भयावह मामला सामने आया था। इस बर्बरता में पुलिस की जांच में आरोपियों ने स्वीकार किया कि वे जानते थे कि एक लड़की गाड़ी के नीचे फंसी है। बावजूद इसके, उसे पूरी तरह कुचल डालने के लिए ही कई किलोमीटर तक घसीटते रहे। इन वीभत्स घटनाओं ने विकृत मानसिकता का चिंतनीय पहलू उजागर किया है।

ऐसी ही हिंसक प्रवृत्ति दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष के साथ हुई घटना में भी दिखती है। यह आम महिलाओं का मनोबल तोड़ने वाली बात है कि महिला सुरक्षा के हालात का जायजा ले रहीं दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष को भी दुर्व्यवहार झेलना पड़ा।

गौरतलब है कि हाल ही में एम्स के पास हुए इस वाकये में पहले एक कार चालक ने आयोग की अध्यक्ष को कार में बैठने को कहा। मना करने पर वह दुबारा मुड़ कर आया और फिर बैठने को कहा। नशे की हालत में उनसे छेड़छाड़ भी की। अध्यक्ष ने जब उसे पकड़ा, तो गाड़ी के शीशे में उनका हाथ बंद कर चालक ने घसीटने का प्रयास किया। ऐसे में घर से बाहर निकलने वाली हर महिला के मन का असुरक्षा और संशय से घिर जाना लाजिमी है।

अपरिचित महिलाओं के साथ तो ऐसी घटनाएं हो ही रही हैं, पारिवारिक रंजिश और प्रतिशोध लेने की मंशा से भी ऐसे मामले देखने में आते हैं। पिछले दिनों हसनपुर खंड के गांव टप्पा में चुनावी रंजिश के चलते सरपंच के घर पर गांव के ही एक परिवार के छह से ज्यादा लोगों ने ट्रैक्टर चढ़ा दिया। ट्रैक्टर ने सरपंच के बुजुर्ग पिता और उनकी तेरह वर्षीय बेटी को कुचल दिया। घटना में उनकी बेटी घायल हो गई, बुजुर्ग पिता की जान चली गई। गौरतलब है कि सरपंच चुनाव में हार के बाद रंजिश के चलते इस घटना को अंजाम दिया गया।

विडंबना है कि नियम-कायदों से परे, अपने मन-मुताबिक कुछ भी न होना, लोगों में एक अनियंत्रित क्रोध को जन्म दे रहा है। बीते दिनों एटा के ग्रामीण क्षेत्र में भी रंजिश के चलते महिला को ट्रैक्टर से रौंदने की अमानवीयता की गई।

गौरतलब है कि ग्राम समाज की जमीन पर उपले रखने को लेकर दो पक्षों में हुए विवाद के कारण की गई बर्बरता में मौके पर ही महिला की मौत हो गई। दूर-दराज गांवों से लेकर महानगरों तक ऐसी घटनाओं ने चिंताजनक स्थितियां पैदा कर दी हैं। यह कैसा आक्रोश है, जो शिक्षित सजग युवाओं से लेकर ग्रामीण जनों तक सभी को अपनी चपेट में ले रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकतर मामलों में आक्रोश की यह आंच महिलाओं का ही जीना दुश्वार करती है।

चिंताजनक है कि ऐसे वाकए अनजाने हुई कोई दुर्घटना भर नहीं हैं। सोच-समझ कर किसी इंसान को कुचलने की यह विकृत मानसिकता हिंसा का उन्मादी रूप है, जिसमें न अपने-पराए का अंतर समझ आता है और न ही सही-गलत की समझ बाकी रहती है। जबकि समाज को इन घटनाओं का हर पक्ष भीतर तक झकझोर जाता है।

बिना किसी गलती के राह चलते रौंद दिए जाने का भय एक नया डर पैदा कर रहा है। असल में, ऐसा परिवेश देश के हर हिस्से की महिलाओं का मनोबल तोड़ता है। शिक्षित-सजग महिलाओं के हौसलों को भी ठेस पहुंचाता है। ऐसे में सार्वजनिक परिवेश में डर का यों साए की तरह साथ रहना किसी भी समाज में कानून-व्यवस्था की विफलता ही कही जाएगी। साथ ही विकृत मानसिकता वाले लोगों की बढ़ती हिम्मत भी समाज और कानून दोनों के लिए चिंताजनक है।

दुखद है कि हमेशा से ही स्त्री पीड़ा और भय के एक अजीब वातावरण में जी रही होती है। कानून, समाज और घर-परिवार, सब बेबस नजर आते हैं। न बदलाव की कोई उम्मीद, न त्वरित कार्रवाई की व्यवस्था और न ही दोषियों को कड़ी सजा दिए जाने के उदाहरण। हाल के बरसों में महिलाओं के शोषण और दुर्व्यवहार की घटनाओं की सूची में रौंदने-घसीटने के वाकए भी जुड़ गए हैं।

ऐसी घटनाओं के आंकड़े बढ़ रहे हैं, जिनमें रंजिश के चलते किसी महिला को जानबूझ कर कुचल दिया गया। किसी घटना के गवाहों या पीड़ित के परिजनों को सोच-समझ कर वाहन से रौंदने के वाकए भी सामने आ चुके हैं। गांव-कस्बे हों या महानगर, क्रोध और प्रतिशोध का भाव इस हद तक बढ़ गया है कि मामूली रंजिश में भी लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।

इन घटनाओं की बढ़ती संख्या बताती है कि अब नैतिकता का कोई मापदंड नहीं बचा है। कहीं बदला लेने का भाव है, तो कहीं सबक सिखाने की सोच। बेवजह का आक्रोश और नैतिक पतन ऐसी अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।

विडंबना ही है कि कभी नशा, तो कभी सामंतवादी सोच का दंभ, किसी की जान का कोई मोल ही नहीं समझता। अधिकतर घटनाओं में नशे की हालत में ऐसी दुर्घटनाएं और दुर्व्यवहार होता है। ऐसे में शराब के सेवन का बढ़ता चलन कई मोर्चों पर चिंता का विषय बन गया है। इस आदत की बढ़ती सामाजिक स्वीकार्यता और खुलापन इसे बढ़ाने वाला भी साबित हो रहा है।

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के एक साझा सर्वेक्षण के मुताबिक देश में लगभग सोलह करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं। अफसोस कि देश और परिवार की रीढ़ माने जाने वाले युवा वर्ग के बहुत से पुरुष शराब पीने के बाद हुई हिंसा या दुर्घटनाओं में न केवल अपनी जान गंवाते, बल्कि दूसरों का जीवन भी जोखिम में डालते हैं।

कभी नशे की हालत में किसी अपराध में भागीदार बनते हैं, तो कभी यौन शोषण को अंजाम देते हैं। आए दिन घटने वाली कोई न कोई घटना इस बात की पुष्टि भी करती है।

शोध पत्रिका ‘ड्रग एंड अल्कोहल रिव्यू’ में लैंगिक अपराध और शराब के संबंध पर किए गए सर्वेक्षणों के नतीजे बताते हैं कि लैंगिक अपराध के लगभग आधे मामले नशे की हालत में होते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में शराबनोशी की बड़ी भूमिका है। इतना ही सामंती सोच का दंभ भी ऐसी वारदातों के पीछे है।

किसी को चुनाव में हार स्वीकार नहीं, तो कोई किसी परिवार से रंजिश निकालने के फेर में ऐसी बर्बरता कर रहा है। कहना गलत न होगा कि हर बार महिलाओं का मन-जीवन ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस विकृत मानसिकता का दंश झेलता है। साथ ही, ऐसी घटनाएं मानवीय मोर्चे पर पिछड़ते समाज को भी सामने रख रही हैं।

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