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मथुरा

जय गुरूदेव मंदिर मे चल रहा है पांच दिवसीय सत्संग मेला

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ठाकुर धर्म सिह ब्रजवासी की रिपोर्ट

मथुरा। मधुर चार दिसंबर से जय गुरूदेव आश्रम पर चल रहे पांच दिवसीय वार्षिक भंडारा सत्संग मेला के चौथे दिन राष्ट्रीय उपदेशक बाबूराम यादव और राजेश ने श्रद्धालुओ को सम्बोधित किया।

बाबा जय गुरूदेव महाराज अपने सत्संग मे बताया करते थे कि शाकाहार-सदाचार मधनिषेध और आध्यात्मिक वैचारिक क्रान्ति के प्रचार मे की गई तन, मन, धन की मेहनत व्यर्थ नही जायेगी। इस भंडारा पर्व पर जो जन उपस्थित लोगो ने देखा वह शाकाहारी धर्म के प्रचार का परिणाम है। दादा गुरू ने बाबा जय गुरूदेव महाराज को जो आदेश और आशीर्वाद जीवो को जगाने के लिए दिया यह पूरी तरह से सफल रहा।

पुज्य पंकज महाराज भी अपने गुरू के आदेश का पालन बहुत ही तेजी से कर रहे है। निरन्तर शाकाहार-सदाचार और आध्यात्मिक जन जागरण की वैचारिक क्रान्ति को लाने के लिए सत्संग दौरा कर रहे है।इसी क्रम मे 14 दिसंबर से उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली,गुजरात और कर्नाटक की 76 दिवसीय दौरा पर निकल रहे है।आने वाले समय मे यह वैचारिक क्रान्ति देश के कोने-कोने मे फैल जायेगी। आगे वह समय जा रहा है जब मालिक, प्रभु के सच्चे संदेश और शान्ति पाने के लिए लोग भागकर मथुरा और बाबा जय गुरूदेव की जन्म भूमि खितौरा आयेगे। पूज्य महाराज ने दो-दो लोगो को इस वैचारिक क्रान्ति से जोड़ने की अपील किया है।

उपदेशक बाबूराम ने प्रेम न बाडी उपजे, प्रेम न हाट बिकाय, “राजा प्रजा जेहि रूचे शीश देहि ले जाय आपा मेट जीवन मरै तो पावै करतार” पंक्ति को उद्भृत करते हुये कहा कि प्रभु यानि भगवान को प्राप्त करने के लिए अपने अन्दर प्रेम, दया पैदा करना पड़ता है। प्रेम ऐसी वस्तु है। जो खेत मे पैदा नही होती और न ही बाजार मे मिलती है।संत महात्मा प्रेम, दया के महासागर होते है। अपने मान, प्रतिष्ठा और अंहकार के गर्दन को महापुरुषो के चरणो मे जो भी अमीर, गरीब, छोटा,बड़ा चढा देगे और उनके आदेशो का पालन करेगे उनके अन्दर प्रेम खिलता है। प्रेम का रंग सदैव एक रूप बना रहना गुरू की कृपा पर निर्भर करता है। जब प्रेम खिलता है। तो सद्बुद्धि और सुमित आती है।

उपदेशक राजेश ने “ममै वासे जीव लोके जीव भूता सनातन “पंक्ति को उद्भृत करते हुए बताया कि गीता मे जीव को भगवान का अंश बताया है।जो अजर अमर है सुर दुर्लभ मानव तन बेकार चला जा रहा है।क्योकि हम अपने को शरीर मानकर, इस शरीर के लिए रात दिन काम करते है। हम कौन है।इस बात की जानकारी नही है। संत महात्मा बताते है कि आप शरीर नही हो आत्मा हो। जब हमको यह जानकारी हो जायेगी कि हम आत्मा है और इस शरीर मे बंद है तो आत्मा के लिए किसी को साथी बना लेगे और उसके लिए चौबीस घंटे मे से कुछ समय बचाकर देने लगेगे।जब हम अपने आप यानि आत्मा को जान लेगे, तो परमात्मा को भी जान जायेगे।इस बात की जानकारी महापुरुषो मे जाने पर मिलेगी। पढाने वाले को मास्टर साहब कहते है जब जीवात्मा शरीर छोड़ती है तो लोग कहते है कि फला मास्टर साहब चले गये, जबकि शरीर जमीन पर सामने रहती है।इससे स्पष्ट होता है कि शरीर मे रहते वाली आत्मा जब तक है, तभी तक इसका मूल्य है। इसीलिए इसमे रहने वाली आत्मा को जानने पहचानने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे मानव जीवन सफल हो जायेगा। मथुरा मे धर्म कांटे के पास है मंदिर।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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