दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
विमल, बढ़का और चिरई बुंदेलखंड के उन गांवों में रहते हैं, जहां खोदने से भी पानी नहीं निकलता। वैसे बुंदेलखंड में पानी की कमी एक पुरानी खबर की तरह है, जो सालभर अखबारों की सुर्खियों में बनी रहती है। ये सच्चाई अब यहां के पुरुषों के लिए श्राप बन गई है। कुछ युवा 40 की उम्र के बाद भी कुंवारे हैं। दूसरे वो हैं जिन्हें शादी के बाद पत्नियां छोड़कर चली गईं।
“समाचार दर्पण२४” टीम पानी की किल्लत से जूझ रहे चित्रकूट के 10 गांवों में पहुंची। हमने इन गांवों में ‘जल जीवन मिशन’ की हकीकत जाननी चाही, तो कुछ दुखभरी कहानियां अपने आप हमारी आंखों के सामने आ गईं। चलिए पहले इन कहानियों से रूबरू होते हैं, फिर आंकड़ों के जरिए सूखे बुंदेलखंड की सच्चाई जानेंगे।
3 गांवों की 3 कहानियां…
पहला गांव: गोपीपुर में पानी की वजह से 50% युवा कुंवारे
मनिकपुर के गोपीपुर गांव में 5,000 लोगों की आबादी है। यहां रहने वाले 250 परिवार पीने के पानी के लिए मात्र 1 कुएं पर निर्भर हैं। ये कुआं गांव से 2 किलोमीटर दूर पड़ता है। वहां से साइकिल पर, बैलगाड़ी से और कंधे पर लादकर लोग पानी लाते हैं। गांव की महिलाओं का पूरा दिन पानी भरने में ही बीत जाता है। पानी के लिए इस जद्दोजहद के कारण गांव के 50% युवा कुंवारे हैं।
गोपीपुर के रहने वाले विनय यादव 4 भइयों में इकलौते हैं, जिनकी शादी नहीं हुई है। तीनों भाई काम की तलाश में बाहर गए और उनका ब्याह भी हो गया। विमल गोपीपुर में ही रह गए और किसानी करने लगे। 35 साल बाद भी आज विनय कुंवारे हैं।
विनय कहते हैं, “हमारे लिए तीन-चार रिश्ते आए, लेकिन जब लड़की वालों ने पानी की समस्या देखी तो शादी कैंसिल कर दी। कहने लगे कि बिटिया दिनभर पानी ही भरती रहेगी, तो क्या फायदा यहां शादी करने से। अब हमने शादी की उम्मीद ही छोड़ दी है।”
पानी की वजह से आपकी 3 बार शादी टूटी, क्या लोग इस बात पर हंसते हैं? हमारे सवाल पर उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- हम फालतू बातों पर ध्यान नहीं देते।
दूसरा गांव: करौंहा में 11 सरकारी हैंडपंप 10 खराब
करौंहा गांव चित्रकूट के सबसे पिछड़े गांवों में से एक है। यहां 2017 से बाद से 11 सरकारी इंडिया मार्का नल लगवाए गए, लेकिन केवल एक ही चालू हालत में है। गांव के बाहर पुराना कुआं है। इसमें बरसात के दौरान पानी भर जाता है। ग्रामीण अब प्यास बुझाने के लिए इसी के भरोसे हैं। यहां की आबादी 7,500 है।
करौंहा पंचायत के निवासी बढ़का के दोनों छोटे भाई बाहर काम करने गए, तो उनकी शादी हो गई, लेकिन वो 48 साल बाद भी कुंवारे हैं। घर में 2 बहुएं हैं, इसलिए अब वो चौखट पर बनी छोटी कोठरी में रहते हैं।
बढ़का कहते हैं, “साहब एक तो हम गरीब हैं, ऊपर से पानी की समस्या। पांच बार लड़की वाले आए, लेकिन घर की औरतों को बाहर से पानी ढोता देख रिश्ता तोड़ दिया। कहने लगे कि हम नहीं देंगे अपनी लड़की। टाइम से शादी हो गई होती तो हमारे में 2-3 बच्चे होते।”
माइक देखकर बढ़का फिर हंसते हुए कहते हैं, “अब उम्र हो गई है साहब। औरत मिले चाहे न मिले। हमें कॉलोनी दिलवा दीजिए। कम से कम चैन से सो तो पाएंगे।”
तीसरा गांव: चितघटी में 1 कुआं 10 साल से लोगों की प्यास बुझा रहा
चितघटी गांव में दो साल पहले प्रधान ने 4 चार हैंडपंप लगवाए थे, लेकिन सभी का पानी नीचे चला गया है। 10 मिनट चलाने पर भी पानी नहीं आता। गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर बना कुआं 10 साल से लोगों की प्यास बुझाने का जरिया बना हुआ है। गांव में 400 लोग रहते हैं। सभी सुबह लाइन में लगकर बारी-बारी कुंए से पानी साइकिल पर लादकर ले जाते हैं। यहां कभी-कभी पानी के लिए लड़ाई भी हो जाती है।
चितघटी के रहने वाले बोधन के भाई चिरई पानी के कारण गांव छोड़कर पंजाब चले गए। 32 साल बाद शादी न होने पर लोगों की बातें सुन-सुनकर चिरई परेशान हो गए। एक दिन वो रोजगार की तलाश में गांव छोड़कर पंजाब चले गए।
अपने भाई के बारे में बताते हुए बोधन कहते हैं, “घर पर नल न होने और डेढ़ किलोमीटर पानी ढोकर लाने के चलते 2 बार हमारे भाई की शादी टूट गई। इन सब बातों से वो इतना परेशान हो गया कि एक दिन घर छोड़कर पंजाब चला गया। जाते-जाते चिरई कह के गया था कि बाहर जाकर नौकरी करूंगा। पैसा रहेगा तो शादी भी हो जाएगी।”
पानी की समस्या देख शादी के बाद पत्नी छोड़कर चली गई
हम चित्रकूट के पाठा इलाके के 10 गांवों में गए और सूखे के हालत को करीब से देखा। इन गांवों में रहने वाली महिलाओं को कई किलोमीटर दूर जाकर कुंए से पानी भरकर लाना पड़ता है। महिलाओं ने बताया कि उनका आधा दिन पानी भरने में ही निकल जाता है। यहां कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें पानी की कमी के कारण उनकी पत्नियों ने छोड़ दिया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."