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संपादकीय

‘तिरंगे’ ने आज़ादी की फिज़ाएं ही रंगीन कर दी हैं

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अनिल अनूप 

आज 15 अगस्त है…देश का स्वतंत्रता दिवस…। इस बार का स्वतंत्रता दिवस विशेष और ऐतिहासिक है। भारत की आज़ादी की 75वीं वर्षागांठ…यकीनन देश ने एक लंबा, ऊबड़-खाबड़ सफर तय किया है। किसी भी लोकतांत्रिक देश का यह कालखंड बेहद महत्त्वपूर्ण होता है। कहावत थी कि भारत तो सुई तक नहीं बना सकता। गोरे अंग्रेज सपने देखते थे कि जिस देश में गरीबी, भुखमरी है, विभाजन का रक्तपात जारी है, चारों तरफ विरोधाभास और अस्थिरताएं हैं, उस देश की आज़ादी का मोहभंग जल्दी ही होगा और भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन होगा। शायद अंग्रेजों को आज़ादी की पूर्व रात्रि में ‘वंदे मातरम्’ के उद्घोष और अद्र्धरात्रि का शंखनाद नहीं सुनाई दिए होंगे! हमारे नेतृत्व और जनता ने पसीना बहाया, आंदोलन किए, अपने अलग-अलग हिस्से एकजुट किए, आज़ादी की जिद को जि़न्दा रखा और भारत आज़ादी की 75वीं सालगिरह जी रहा है। अभी से आज़ादी के शताब्दी-वर्ष के प्रारूप भी बनने शुरू हो गए हैं। लक्ष्य लगभग तय हैं। सुई तो न जाने कितनी पीछे छूट चुकी है, आज भारत हवाई जहाज, मिसाइल से लेकर उपग्रह तक बनाने में सक्षम है। हम परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र हैं। हम विश्व की 5-6वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। अंतरिक्ष हमारे लिए एक सामान्य गन्तव्य है।

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आज हम दूसरे देशों के उपग्रह अंतरिक्ष तक ले जाने में भी सक्षम हैं। अंतरिक्ष, मंगल ग्रह, चांद पर हमारा राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ शान और आत्मनिर्भरता के स्वाभिमान के साथ लहरा रहा है। आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक, उत्तर से पूर्वोत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक और दक्षिण से उत्तर तक भारत एक अखंड, गणतांत्रिक और संप्रभु राष्ट्र है। ‘तिरंगे’ में सजा भारत पहली बार एकजुट और खूबसूरत देश लग रहा है। ‘तिरंगे’ ने आज़ादी की फिज़ाएं ही रंगीन कर दी हैं। असंख्य घरों, गली-मुहल्लों, दुकान-दफ्तरों पर ‘तिरंगा’ इठलाते हुए झूम रहा है। यह है भारत का गौरव, गर्व, सम्मान…! जिस कश्मीर में बच्चों के हाथों में पत्थर थमा दिए जाते थे, आतंकवाद की गोलियां बरसती थीं, चप्पे-चप्पे पर साजि़शें थीं, वहां घाटी में भी, डल झील के शिकारों पर, सडक़ों पर उमड़ती यात्राओं के हाथों में ‘तिरंगा’ देखकर मन भावुक हो उठा। यही नहीं, देश के विभिन्न हिस्सों में मस्जिदों और मदरसों की प्राचीरें, मुंडेरें ‘तिरंगामय’ सजाई गईं। इस्लामी होठों पर ‘वंदे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष सुन बड़ा सुकून मिला। यह देश की एकता, अखंडता, विविधता की मिसाल है। सुकून मिला कि भारत आज भी गुलदस्ते-सा मुल्क है। बेशक आज ‘राष्ट्रीय उत्सव’ का मौका है। आज़ादी के भाव को शिद्दत से जिएं। जरा पुराने और बुजुर्ग लोगों से समझने की कोशिश करें कि एक गुलाम आदमी और एक स्वतंत्र, संवैधानिक नागरिक की जि़न्दगी में बुनियादी फर्क क्या है? जो विस्थापित हुए थे, जिन लाखों लोगों की हत्याएं कर दी गईं, जो क्रांतिवीर देश की आज़ादी के लिए ‘शहीद’ हो गए, जरा उनकी पीड़ा साझा करने और महसूस करने की कोशिश करें। वे घाव आज भी रिस रहे हैं। आज हम 140 करोड़ से अधिक भारतीय एक व्यापक परिवार हैं, एक समान हैं, संविधान ने हमें मौलिक और संवैधानिक अधिकार दिए हैं। हम अपनी सरकारें चुन सकते हैं और नालायक चेहरों को खारिज भी कर सकते हैं।

हम में से कोई भी देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सरीखे शीर्ष संवैधानिक पदों तक पहुंच सकता है। यह देश हमारा है। इसकी खूबियां और कमियां भी हमारी साझा हैं। आज भी करीब 25 करोड़ भारतीय गरीबी-रेखा के तले जीने को अभिशप्त हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रपट के मुताबिक 2021 में 22 करोड़ से ज्यादा भारतीय कुपोषित थे। यह विश्व की कुपोषित जनसंख्या का करीब 29 फीसदी है। 33 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। ये आंकड़े कम-ज्यादा तो संभव हैं, लेकिन इन्हें नकारा नहीं जा सकता। धीरे-धीरे ये अभिशाप कम हो रहे हैं, स्थितियां संवर रही हैं, उम्मीद है कि इन दुरावस्थाओं से आज़ादी के जश्न भी हम मनाएंगे। भारत दूध, गेहूं, चावल और खाद्यान्न में विश्व में पहले या दूसरे स्थान का देश है। हमें इस पर भी गौरवान्वित महसूस करना चाहिए कि आज़ाद भारत ने कितना लंबा रास्ता तय किया है, लिहाजा हम भुखमरी पर अंतरराष्ट्रीय आकलन को स्वीकार करने की मन:स्थिति में नहीं हैं। बहरहाल स्वाधीनता का दिन मुबारक हो, बधाई और ‘जय हिंद’। इस बार आजादी के दिवस पर घर-घर झंडे फहराए जाएंगे। यह पहला अवसर है कि आम आदमी भी अब झंडा फहरा सकता है। आजादी के अमृत महोत्सव पर आम आदमी का जोश देखते ही बनता है। हम आजाद हुए हैं, तो आजादी का जश्न भी मनाने का अधिकार रखते हैं। तिरंगा आम आदमी में देश के प्रति प्रेम का संचार करता है। इस प्रथा को हर साल मनाया जाना चाहिए। हर नागरिक को यह भी याद रखना है कि आजादी का भाव अक्षुण्ण बनाए रखना भी हमारा फर्ज है।

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