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दुखदाई ; इन मासूमों की कहानियां रुलाती नहीं सन्न कर देती हैं 

भूख चेहरों पे लिए चांद से प्यारे बच्चे, बेचते फिरते हैं गलियों में गुब्बारे

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राकेश तिवारी की रिपोर्ट 

उप्र के 1065 घरों की तकदीर बन गए हैं ये मासूम बच्चे। इन घरों के मुखिया न बुजुर्ग हैं न जवान। अनाथ बच्चे खुद इन परिवारों के मुखिया हैं। वे खून-पसीने की कमाई से छोटे भाई-बहनों, बीमार मांओं को पाल रहे हैं। श्रम विभाग ने पिछले 45 दिन में 30 जिलों का सर्वे कर इन परिवारों को तलाशा है। उन्हें बाल श्रमिक विद्या योजना में शामिल कर तमाम सुविधाएं देने की पहल हुई है।

कानपुर में ऐसे 37 परिवार मिले हैं। इनकी कहानियां रुलाती नहीं, सन्न कर देती हैं। यह बच्चे संघर्ष के अघोषित ब्रांड एंबेसडर हैं। पहली कहानी गोपाल नगर के राज की। उम्र 11 साल। पिता सूरज ठेला लगाते थे। तीन साल पहले एक्सीडेंट में मौत हो गई। मां सुधा इस कदर बीमार पड़ी कि चलना दुश्वार है। बहन जया 9 साल की है। स्कूल नहीं जाती। कक्षा दो तक पढ़ा राज श्याम नगर के एक कारखाने में काम कर घर चला रहा है।

कच्ची बस्ती दादानगर का अनुज 12 साल का है। किराए की कोठरी में रहता है। पिता सात साल पहले गुजर गए। मां रज्जो की किडनी खराब है। तीन साल से वह कोई काम नहीं कर पाती। नौ साल का भाई आकाश दिव्यांग है, चल नहीं पाता। बहन अंशिका सात साल की है। पेट की मजबूरी श्रम कानूनों को क्या समझेगी? अनुज एक कारखाने में 125 रुपये रोज पर काम करता है। कक्षा दो के बाद उसने स्कूल नहीं देखा। मजदूर पिता का यह बच्चा वंशनुगत पेशे में न जाता तो क्या करता?

नत्थूपुरवा का नानू। उम्र 13 साल। पिता उन्नाव की टेनरी में काम करते थे। पांच साल पहले एक्सीडेंट ने छीन लिया। कक्षा तीन में किताबों से नाता टूटा। पिता के मालिक ने हल्का काम दिया पर एक दिन टेनरी में छापा पड़ गया। मालिक ने नानू को छिपा कर निकाल दिया। तब से बाहर मजदूरी से रोटी कमाता है। मां के गाल ब्लेडर में पथरियां भरी हैं। वह दर्द से कराहती है। सात साल की बहन कीर्ति दिव्यांग है। रावतपुर की प्रिया तो दुनिया में तन्हा बची है। मां-पिता, भाई-बहन कोई नहीं बचा। 15 साल की यह बच्ची मौसी के पास ठिकाना पा गई लेकिन अपना खर्च सिलाई करके चला रही है।

श्रम विभाग परिवार के मुखिया बने ऐसे बच्चों को बाल श्रमिक विद्या योजना में पंजीकृत कर अन्य योजनाओं का भी लाभ दिलाने जा रहा है। यह सर्वे रिपोर्ट श्रमायुक्त और शासन को भेजी गई है। योजनाओं की मदद मिले तो शायद यह बच्चे भी कभी गुनगुनाएं… किताबों से निकल कर तितलियां ग़ज़लें सुनाती हैं, टिफि़न रखती है मेरी मां तो बस्ता मुस्कुराता है।

इन जिलों में मिले परिवार चलाने वाले बच्चे

अमेठी में 4, अयोध्या में 4, सुल्तानपुर में 6, बाराबंकी में 80, लखनऊ में 72, हापुड़ में 6, बुलंदशहर में 7, गाजियाबाद में 11, मुरादाबाद में 27, जौनपुर में 25, गाजीपुर में 49, वाराणसी में 21, फतेहपुर में 4, प्रयागराज में 31, कौशाम्बी-प्रतापगढ़ में 7-7, सोनभद्र में 28, मिर्जापुर में 35, बदायूं में 59, बरेली में 55, बहराइच में 100, गोण्डा में 100, श्रावस्ती में 50, बलरामपुर में 67, बलिया में 29, गोरखपुर में 76, फिरोजाबाद में 35, मैनपुरी में 4 , आगरा में 29 और कानपुर नगर में 37 बच्चे।

श्रम विभाग, राज्य समन्वयक बाल श्रम, सैय्यद रिजवान अली ने कहा कि श्रम विभाग के सर्वे में 1065 परिवार चाइल्ड हेडेड पाए गए हैं। यह बाल मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते रहे हैं। उन्हें बाल श्रमिक विद्या योजना और अन्य योजनाओं से जोड़ कर मदद की जा रही है। सभी का पुनर्वास होगा। बच्चों को 1000 और बच्चियों को 1200 रुपये की आर्थिक सहायता शुरू की गई है। विधवा मां को पेंशन, पीएम आवास योजना घर, शिक्षा योजनाओं का लाभ दिलाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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