google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
इतिहास
Trending

….तो इसलिए इसको कहते हैं “नवाबी शहर”

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

जावेद अंसारी की रिपोर्ट 

लखनऊ,  लखनऊ और नवाब एक दूसरे के पर्याय जैसे हैं। लखनऊ को पुराने लोग नखलऊ भी कहते हैं। अवध के नवाबों ने बड़ी संजीदगी से लखनऊ को संवारा है। लखनऊ की संस्कृति हो या यहां की जीवन शैली से जुड़े किस्से, नवाबी रंगत उसमें जरूर मिलती है। यहां की इमारतों में भी नवाबों की कहानियां छिपी हैं। दरअसल, शहर को नायाब बनाने में नवाबों का अहम योगदान रहा, जिस कारण से भी इसे नवाबों की नगरी कहते हैं।

शहर में जो भी पर्यटक आता है, वह भूलभुलैया जरूर जाता है। इमामबाड़ा की भूलभुलैया को नवाब आसिफुद्दौला ने बनवाया था। इसके निर्माण के पीछे भी अनूठी सोच रही है। अकाल में लोगों की मदद के लिए भूलभुलैया का निर्माण करवाया गया था। आसफुद्दौला के समय में दौलतखाना, रेजीडेंसी, बिबियापुर कोठी और चौक बाजार समेत कई अन्य प्रमुख इमारतें बनीं।

नवाबी परंपरा की शुरूआत 1720 में मानी गई है। तब सआदत खां ने लखनऊ में अपना साम्राज्य बसाया। यहीं से लखनऊ में शिया मुसलमानों की परंपरा की शुरूआत मानी जाती है। लखनऊ में सफदरगंज, गाजीउद्दीन हैदर, नसीरुद्दीन हैदर, शुजाउद्दौला, मुहम्मद अली शाह और नवाब वाजिद अली शाह आदि ने शासन किया। नवाब आसफुद्दौला के समय में राजधानी फैजाबाद से लखनऊ लाई गई।

इतिहासविद रवि भट्ट के अनुसार, एक बार मुगल बादशाह अकबर द्वितीय (1806-37) ने भारत के अंग्रेज गर्वनर जनरल लार्ड हेस्टिंग्स को एक औपचारिक मुलाकात के दौरान अपने सामने बैठने की अनुमति नहीं दी। जिससे नाराज होकर अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसने अवध के सातवें शासक नवाब गाजीउद्दीन हैदर (1814-27) को भड़काया कि वह मुगलों की अधीनता अस्वीकार कर स्वयं को स्वतंत्र बादशाह घोषित कर दे और अंग्रेज इसमें उसकी सहायता करेंगे।

इस आश्वासन के आधार पर नवाब गाजीउद्दीन हैदर, जिनकी राजधानी लखनऊ थी ने 19 अक्टूबर 1819 को अपने आप को स्वतंत्र बादशाह घोषित कर दिया तथा अपने नाम के सिक्के निकलवाकर इस घोषणा पत्र के साथ भारत के मुगल बादशाह के पास भेज दिया। शहर के जर्रे जर्रे में नवाबी के किस्से घुले हैं।

लखनऊ अपनी विरासत में मिली संस्कृति को आधुनिक जीवनशैली के संग बड़ी सुंदरता के साथ आज भी संजोये हुए है। यहां के समाज में नवाबों के समय से ही ‘पहले आप’ वाली शैली समायी हुई है। हालांकि वक्त के साथ अब बहुत कुछ बदल चुका है, लेकिन यहां की एक तिहाई जनसंख्या इस तहजीब को आज भी संभाले हुए है। इसके अलावा लखनवी पान तो यहां की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इसके बिना तो लखनऊ अधूरा सा लगता है। 

70 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की
Back to top button
Close
Close